लिंगानुपात को लेकर हैल्थ विभाग सतर्क, पंजाब-राजस्थान सीमा से सटे इलाकों में कड़ा पहरा

Edited By Isha, Updated: 11 Aug, 2019 04:33 PM

health department cautious about sex ratio

जिले में अब ङ्क्षलगानुपात के मामले में सुधार दिखने लगा है। हालांकि, पूर्व में स्थिति इतनी बेहतर थी कि सिरसा ने पूरे प्रदेश में अव्वल स्थान हासिल किया था लेकिन सीमावर्ती इलाकों में ‘पकड़’ ढीली होने से

सिरसा (भारद्वाज): जिले में अब ङ्क्षलगानुपात के मामले में सुधार दिखने लगा है। हालांकि, पूर्व में स्थिति इतनी बेहतर थी कि सिरसा ने पूरे प्रदेश में अव्वल स्थान हासिल किया था लेकिन सीमावर्ती इलाकों में ‘पकड़’ ढीली होने से स्थिति डांवाडोल हो गई थी जिसे अब बामुश्किल से सुधार लिया गया है। चूंकि स्वास्थ्य विभाग की ओर से अपनी इस पकड़ को मजबूत बनाने के लिए पंजाब-राजस्थान सीमा से सटे इलाकों में अपना पहरा कड़ा कर दिया। 

यही कारण है कि अब कुछ हद तक लिंगानुपात में सुधार हुआ है। ओवरऑल रिपोर्ट तो अभी ठीक नहीं है मगर जून-जुलाई माह की बात करें तो स्थिति ओवरऑल रिपोर्ट से बेहतर है। विभाग द्वारा तैयार किए गए ब्यौरे के अनुसार जनवरी से जुलाई तक ओवरऑल 1000 लड़कों के पीछे 886 का आंकड़ा है मगर जून और जुलाई में स्थिति सुधरकर 917 का अनुपात रह गया है। 

यह थी स्थिति
दरअसल, ङ्क्षलगानुपात के मामले में पूरे हरियाणा अन्य प्रदेशों से कहीं पिछड़ा हुआ था। वर्ष 2012 से लेकर वर्ष 2015 तक स्थिति काफी ङ्क्षचताजनक थी। वर्ष 2015 में प्रदेश की भाजपा सरकार ने बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ मुहिम का आगाज करके विभागीय अधिकारियों को इस दिशा में सार्थक कदम उठाने के लिए प्रेरित किया और उचित दिशा निर्देश जारी किए गए। सरकारी रिपोर्ट के अनुसार जिला सिरसा में इस मुहिम से पूर्व मसलन वर्ष 2012 में एक हजार लड़कों के पीछे लड़कियों की अनुपातिक स्थिति 839 थी। वर्ष 2013 में यह आंकड़ा 889 तक पहुंचा। वर्ष 2014 में 900 हुआ तो वर्ष 2015 में स्थिति सुधरते हुए 915 तक अनुपात पहुंच गया। इसी प्रकार वर्ष 2016 में भी परिणाम सार्थक हासिल हुए और 1000 लड़कों के पीछे 935 लड़कियों की संख्या हो गई थी। वर्ष 2017 में अनुपात 928 हुआ तो वर्ष

018 में 935 का अनुपात हो गया था। 
यह भी एक हकीकत
ङ्क्षलगानुपात के मामले में जिला सिरसा के लिहाज से अगर बात करें तो एक हकीकत ये भी है कि बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ मुहिम से पहले अनुपातिक स्थिति काफी बिगड़ी हुई थी। खासकर ग्रामीण अंचल क्षेत्रों में कोख का भेद लगाने के बाद कन्याओं को कोख में ही मरवा दिया जाता था और इसका असर ङ्क्षलगानुपात पर पड़ता चला गया। मुहिम शुरू होने के बाद न केवल अनुपात सुधरा अपितु इसके बूते स्वास्थ्य विभाग ने भागदौड़ करके जहां उन अल्ट्रासाऊंड पर छापा मारकर बेनकाब किया जहां कोख का भेद दिया जाता था। प्रशासनिक कार्रवाई का डर लोगों के जहन में बस गया और कन्याएं कोख में पलने लगी। यही कारण रहा कि सिरसा ने पूरे प्रदेश में एक अलग पहचान बनाई। 

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