फसलों के अवशेष जलाने का सिलसिला जारी, खट्टर के शहर करनाल में 235 किसानों पर सबसे ज्यादा मुकद्दमे हुए दर्ज

Edited By Updated: 15 May, 2017 09:31 AM

burn the remains of crops

इसे किसानों की मजबूरी ही कहेंगे कि हरियाणा सरकार के सख्त कानूनी कदम उठाने के बावजूद हरियाणा में किसानों द्वारा फसलों के अवशेष जलाने का सिलसिला कम नहीं हुआ।

चंडीगढ़:इसे किसानों की मजबूरी ही कहेंगे कि हरियाणा सरकार के सख्त कानूनी कदम उठाने के बावजूद हरियाणा में किसानों द्वारा फसलों के अवशेष जलाने का सिलसिला कम नहीं हुआ। वैसे तो राज्य सरकार ने किसानों को जागरूकता अभियान के जरिए जमीनी स्तर पर अवशेष नहीं जलाने के लिए जागरूक किया लेकिन आंकड़े बताते हैं कि किसानों में न तो खास जागरूकता आई और न ही कानून का खौफ है। किसानों की मानें तो गेहूं की खूंटी (नाड़) जलाना शौक नहीं, बल्कि मजबूरी है। किसानों का कहना है कि यदि वह उसे न जलाएं तो जीरी लगाते समय दिक्कत का सामना करना पड़ता है। हालांकि किसानों की इस दलील और मजबूरी से सरकार के साथ-साथ भारतीय किसान यूनियन भी सहमत नहीं है। 

सरकार का कहना है कि समस्या का समाधान है और किसानों को अब नई तकनीक का उपयोग करना चाहिए। पर्यावरण विभाग के आंकड़ों में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के शहर करनाल में 235 किसानों पर सबसे ज्यादा मुकद्दमे दर्ज हुए हैं। करनाल को कृषि विभाग की ओर से मॉडल जिला घोषित किया गया है। खास बात यह है कि फसलों के अवशेष जलाने से रोकने के लिए हरियाणा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और कृषि विभाग की ओर से गोष्ठियों और सैमीनारों पर लाखों रुपए खर्च किए जा चुके हैं। हर साल मार्च महीने में फील्ड के अफसरों की ड्यूटी लगाई जाती है।

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने जारी कर रखी हैं हिदायतें
फसलों के अवशेष जलाने को कानूनन जुर्म बताते हुए राज्य सरकार के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने खास हिदायतें जारी की हैं। बोर्ड के अनुसार बचे हुए भूसों व दानों की हानि और जमीन के लिए जरूरी माइक्रोन्यूट्रिइन्टस नष्ट हो जाते हैं। उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है। अवशेष जलाने से जमीन में नाइट्रोजन की कमी होती है जिससे उत्पादन घटता है। वायु में प्रदूषण फैलता है जिससे दिल और फेफड़ों की बीमारी का खतरा बढ़ जाता है।

सरकार ने बताए समाधान 
सरकार ने खेतों में अवशेष नहीं जलाने के समाधान के कई तरीके बताए हैं। अवशेष को स्ट्रा बेलर, रीपर बाइडर एवं स्ट्रा रीपर के जरिए समुचित उपयोग किया जा सकता है। इस प्रकार मेल्बर, एम.बी. प्लो एवं रोटावेटर के प्रयोग से अवशेष को मिट्टी में मिलाकर कंपोस्ट के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।

अवशेष न जलाने के लाभ 
खेत में अवशेष को मिलाने से नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ती है एवं कम खाद की आवश्यकता होती है। वातावरण शुद्ध रहता है और वायु प्रदूषण से बचाव होता है। मशीनों के प्रयोग से समयानुसार बुआई हो जाती है तथा स्ट्रा बेलर से बनाए गए गट्ठे बायोमास पावर जनरेशन प्लांट को बेचकर आमदनी बढ़ाई जा सकती है।

एन.जी.टी. के आदेशों के बाद हरकत
नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेशों के बाद पर्यावरण के मामले में राज्य सरकार सख्त हो गई है। खेतों में फसलों के अवशेष जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए दोतरफा कार्रवाई चल रही है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और कृषि विभाग जहां जागरूक कर रहा है, वहीं एक्शन भी लिया जा रहा है। बता दें कि एन.जी.टी. पहले ही हरियाणा को डार्क जोन मानते हुए सरकार को कड़ी कार्रवाई के निर्देश जारी कर चुका है।

अब तक 826 मुकद्दमे दर्ज
जिला             मुकद्दमे 
अंबाला             09
भिवानी            00 
फरीदाबाद        01
फतेहाबाद        00
गुरुग्राम           00
हिसार             53
झज्जर           17
जींद               117
कैथल             46
करनाल          235
कुरुक्षेत्र           27
महेंद्रगढ़         00
मेवात           00
पंचकूला        16
पानीपत        32
रेवाड़ी           00
रोहतक         02
सिरसा          136
सोनीपत       126
यमुनानगर    00
पलवल          09
 

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