अनिल विज के आदेश के बाद पुलिस थानों में दलाली करने वाले लोगों की लिस्ट हुई जारी

Edited By Ajay Kumar Sharma, Updated: 11 Dec, 2022 08:16 PM

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प्रदेश के गृह मंत्री अनिल विज के आदेशों के बाद एकाएक सकते में आए पुलिस अधिकारियों द्वारा बेशक प्रदेश द्वारा थानों में दलाली करने वाले लोगों की लिस्ट जारी कर दी गई है।

चंडीगढ़(चंद्रशेखर धरणी): प्रदेश के गृह मंत्री अनिल विज के आदेशों के बाद एकाएक सकते में आए पुलिस अधिकारियों द्वारा बेशक प्रदेश के हर जिले के थाना-चौकियों में रोजाना घूमने-फिरने, दलाली करने वाले या पुलिस के नाम पर सुविधा शुल्क लेकर अपनी जेबें भरने वाले लोगों की लिस्ट जारी कर दी गई।  बेशक पुलिस अधिकारी इस प्रकार की कार्यप्रणाली पर अमलीजामा पहनाकर सराहना बटोर रहे हो, लेकिन क्या केवल लिस्ट मात्र जारी करने से पुलिस की कार्यशैली में सुधार मुमकिन है ? क्या मात्र लिस्ट जारी करने से पीड़ितों को इंसाफ मिलना तय होगा ? क्या मात्र लिस्ट जारी करने से आम आदमी बेधड़क अपनी समस्या को लेकर थाने चौकियों में सेवा- सुरक्षा और सहयोग की उम्मीद कर पाएगा ? क्या मात्र लिस्ट जारी करने से या केवल इन दलालों का थाने चौकियों में घुसना बैन करने से आगे और दलाल नहीं पैदा होंगे ? या फिर क्या जिले में मात्र इतने ही दलाल सक्रिय हैं, जिनकी सूची जारी हुई है ? यह सब सवाल अवश्य विचारनीय योग्य हैं। क्योंकि असल में इस समस्या की जड़ समाज में फैले हुए अपने आपको समाजसेवी बताने वाले यह दलाल नहीं, बल्कि समस्या की असली जड़ पुलिस विभाग की हर शाखा पर बैठे वह उल्लू है जो गुलिस्ता को उजाड़ने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे। यानि पुलिस विभाग एक ऐसा अड्डा बना हुआ है या यह कहें कि "बस एक ही उल्लू काफी है, बर्बाद गुलिस्तां करने को- हर शाख पर उल्लू बैठा है।  अंजाम ए गुलिस्तां क्या होगा" इसी प्रकार की हालत पुलिस विभाग में बनी हुई है।

 

यह बात केवल हम नहीं कह रहे बल्कि सारे समाज में यह उजागर है। थाने चौकियों में किस प्रकार से पीड़ित पक्ष को ही धमकाया-डराया जाता है,  किस प्रकार से आरोपियों -अपराधियों से मोटे लेन देन कर कानूनी प्रक्रिया को प्रभावित किया जाता है। ऐसे बहुत से मामले प्रदेश के गृह मंत्री अनिल विज के दरबार में भी पहुंचते रहे हैं। जिस पर गृहमंत्री द्वारा तुरंत प्रभाव से थाना चौकी प्रभारियों पर सख्त कार्रवाई के आदेश जारी करते हुए वीडियो सोशल मीडिया पर भी खूब वायरल देखे गए हैं। पुलिस बारे समाज में एक बात प्रचलित है कि हरियाणा पुलिस "रस्सी का सांप और सांप की रस्सी" बनाने में कोई देर नहीं लगाती। इस प्रकार की अगर कार्यशैली पुलिस की है और इस प्रकार की सोच समाज की पुलिस के बारे है तो फिर कैसे मात्र कुछ दलालों की लिस्ट जारी करने से इंसाफ की उम्मीद की जा सकती है।

 

 

हर जिले में हजारों की गिनती में मौजूद है दलाल

 

 

आज की प्रथा यह है कि आम जनमानस के साथ कोई घटना घटने पर सबसे पहले समाज में से कुछ दलालों या सिफारिशों को अपने साथ ले जाने के बाद ही पुलिस थानों चौकियों में कदम रखने की पीड़ित पक्ष हिम्मत जुटा पाता है। आखिर कैसे "सेवा- सुरक्षा और सहयोग" का दावा हरियाणा पुलिस जगह-जगह बैनर छपवा कर करती है, यह एक बड़ा प्रश्न चिन्ह पुलिस कार्यप्रणाली पर लगाता है। मात्र दलालों की लिस्ट जारी करने की औपचारिकता से इस समस्या को जड़ से समाप्त नहीं किया जा सकता। क्योंकि हर जिले में मात्र यही दलाल सक्रिय नहीं है, हर जिले में अगर कहे कि हजारों की गिनती पुलिस से लेनदेन करने वालों की है तो कुछ गलत नहीं होगा। देशवासियों पर जुलम ढाने के लिए और अपनी हुकूमत को बरकरार रखने जैसे तमाम कामों के लिए समाज में टाउट और दलालों का सहारा लिया करते थे। जिन्हें मुखबिर और खास मुखबिर भी कहा जाता था। इसी प्रकार देश की आजादी के 75 साल तथा हरियाणा बनने के 66 वर्ष बीत जाने के बाद आज भी बहुत से अपराधियों को पकड़ने के बाद होने वाली कागजी कार्रवाई में मुखबिर या खास मुखबिर द्वारा इत्तलाह मिलने की बात पुलिस द्वारा लिखी देखी जा सकती है और पुलिस तंत्र में आज भी प्रशासन द्वारा कुछ मौकों पर इस प्रकार के मुखबिर और खास मुखबिर को प्रशंसा पत्र और इनाम स्वरूप कुछ राशि भी देने का सिस्टम जारी है। अगर परोक्ष रूप से कहा जाए कि मुखबिर- खास मुखबिर- टाउट या दलाल में कोई अंतर नहीं है तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। इसके साथ- साथ बड़े स्तर पर बड़े अधिकारियों से मोटा लेन-देन करने वाले कुछ लोग बहुत गर्व से समाज में बैठकर अपने को लाइजनर भी बताते हैं।

 

 

अनिल विज के कड़े आदेशों के बाद भी आखिर क्यों नहीं हुई प्रदेश से नशे की जड़ से समाप्ति ?

 

 

 

दूध-दही का खाना देशभर में हरियाणा की सदा पहचान रहा। कुश्ती-कबड्डी-बॉक्सिंग-भाला फेंक जैसे ताकत के राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय खेलों में हरियाणा ने सबसे अधिक मेडल लाकर भारत की झोली में डाले यानी हरियाणा के सुडौल शरीर ने हमेशा अपनी ताकत से देश का नाम ऊंचा किया। लेकिन हरियाणा के कोने कोने में किस प्रकार से पुलिस की लापरवाही- मिलीभगत ने नशे को बढ़ावा दिया, यह किसी से छिपा नहीं है। प्रदेश के गृहमंत्री इस मामले में हमेशा सख्त रहे। हमेशा ऐसे मामले सामने आने पर एक बड़े आदेश जारी हुए। प्रदेश के गृह मंत्री अनिल विज ने प्रदेश से नशे को जड़ से समाप्त करने के लिए नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो का गठन भी किया। प्रदेश के बेहद वरिष्ठ -ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ पुलिस अधिकारी श्रीकांत जाधव के नेतृत्व में कई आईपीएस लेवल और डीएसपी लेवल के अधिकारियों की नियुक्ति इस ब्यूरो में की गई। बावजूद इसके प्रदेश के कोने-कोने में किस प्रकार से आज भी नशे के सौदागर अपनी जड़ों को मजबूत किए हुए हैं ? किस प्रकार से  गांजा- अफीम - स्मैक - सुल्फा - भूकखी जैसे गंदे नशे प्रदेश की जवानी को खा रहे हैं ? जो नशे के अड्डे एक आम साधारण समाज में रहने वाले व्यक्ति को पता है, आखिर पुलिस इससे अनभिज्ञ कैसे ? कैसे क्षेत्रीय पुलिस इस बड़े कारोबार को नहीं देख पा रही ?कैसे दिन प्रतिदिन नशे के कारोबार करने वाले लोग संपत्ति अर्जित कर रहे हैं ? किस प्रकार से एक बड़ी खेप दूसरे राज्यों से हरियाणा में एंट्री हो रही है ? यह सभी सवाल पुलिस की कार्यशैली को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। इतनी अनदेखी करना कोई साधारण बात नहीं हो सकती। यह सारे प्रश्न खड़े होने का कारण सिर्फ एक मात्र ही नजर आएगा, वह है सुविधा शुल्क।

 

 

पुलिस की लापरवाही के चलते गलत दिशा में ज्यादा संख्या में बच्चे

 

कई बार कई मौकों पर प्रदेश पुलिस की कार्यप्रणाली बेहद विवादास्पद और अपमानजनक भी नजर आती है। जो उम्र बच्चों के खेलने- पढ़ने और आगे बढ़ने की होती है। उस उम्र में पुलिस की कमजोरी- लापरवाही और भ्रष्ट नीति के कारण बड़ी संख्या में बच्चे गलत दिशा पर चलते नजर आने लगे हैं। बच्चों की बढ़ती उम्र में बदलते हार्मोन और हाथों में पहुंचे स्मार्ट फोन के कारण बच्चे उम्र से पहले परिपक्वता की ओर बढ़ रहे हैं और इस दौरान अगर इन बच्चों को बहुत आसानी से देह व्यापार के अड्डे हासिल हो जाए तो यह उनके लिए एक बेहद बुरा दौर होगा। केवल यही नहीं प्रदेशभर में कुछ ऐसे मामले भी सामने आए हैं, जब इस प्रकार का गंदा धंधा करने वाली महिलाएं पुलिस अधिकारी- कर्मचारियों की मिलीभगत से अमीर व्यक्तियों या युवाओं के साथ शारीरिक संबंध बनाने के बाद पुलिस में उनके खिलाफ बलात्कार की शिकायतें देती है और पुलिस अधिकारी, माता-पिता, पत्नी व समाजिक लोकलाज का डरावा और मुकदमा दर्ज करने की धमकी देकर मोटे पैसे खुद ठगते हैं और  आपसी राजीनामा के नाम पर उस महिला को भी मोटी रकम दिलवाई जाती है। अगर ऐसी कार्यशैली हरियाणा पुलिस की है तो फिर कैसी सेवा, कैसी सुरक्षा और कैसा सहयोग ?

 

लग्जरी गाड़ियों और महंगे फोन के शौक कैसे हो पूरे

 

इस पूरी खबर को पढ़कर बेशक पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी इसकी सत्यता पर सवालिया निशान खड़ा करने की कोशिश करें। लेकिन यह बात पुख्ता करने के लिए मात्र थोड़ी नजर घुमाए जाना ही काफी है।आमतौर पर पुलिस के छोटे-छोटे अधिकतर कर्मचारी सिपाही-हवलदार-एएसआई महंगी लग्जरी गाड़ियों का शौक किस प्रकार से पूरा कर रहे हैं ? मान लीजिए कि वह गाड़ियां बेशक लोन पर भी ली गई हो तो थोड़ी-थोड़ी तनख्वाह में किस प्रकार से गाड़ियों की किस्त दे पा रहे हैं ? किस प्रकार से एप्पल जैसे ब्रांडेड महंगे 2-2, 3-3 फोन एक-एक कर्मचारी के हाथ में नजर आने लगा है ? किस प्रकार से थोड़े दिन ही नौकरी करने के बाद महंगे सेक्टर में प्लाट लेकर आलीशान कोठियां बनाने के सपने पूरे हो पा रहे हैं ? आमतौर पर प्रदेश के किसी भी थाना चौकी और खासतौर पर सीआईए में लाइनों में खड़ी लग्जरी महंगी गाड़ियां देखकर यह अंदाजा लगाया जाना कोई मुश्किल बात नहीं कि आखिर इतने धन का उत्पादन कैसे और कहां से हो पा रहा है ? भौतिक सुविधाओं से लैस परिवार का जीवन, ब्रांडेड जूते-कपड़ों रोजाना खानपान के शौक, हाथों में लाखों रुपए के फोन और घर में खड़ी 1-2-3 तक लग्जरी महंगी गाड़ियां कैसे ? यह एक बड़ा सवाल है और बहुत कम बुद्धि वाला व्यक्ति भी इस सवाल का आसानी से उत्तर दे सकता है।

 

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