डॉक्टर की लापरवाही से बच्ची ने ली आखिरी सांस...देखें धुनाई की Live तस्वीरें

Edited By Updated: 12 Aug, 2016 12:03 PM

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यमुनानगर के वर्कशाप रोड स्थित स्वामी विवेकानंद अस्पताल को बने अभी कुछ दिन ही हुए थे कि अस्पताल विवादों के घेरे में आ गया।

यमुनानगर (हरिंदर सिंह): यमुनानगर के वर्कशाप रोड स्थित स्वामी विवेकानंद अस्पताल को बने अभी कुछ दिन ही हुए थे कि अस्पताल विवादों के घेरे में आ गया।

 

दरअसल, पहले इसी बिल्डिंग में स्कूल चलाया जाता था और अब यहां अस्पताल बना दिया गया। आरोप है कि यहां काबिल डॉक्टर नहीं है और ऐसे में लापरवाही के कारण कई लोगों की जान खतरे में पड़ गई थी।

 

यह है मामला
छोटी लाइन निवासी नंद ज्वैलर्स के संचालक संदीप कुमार की 5 वर्षीय पोती तनवी को भूख नहीं लगती थी। 8 अगस्त को परिवार घर के नजदीक लगते स्वामी विवेकानंद अस्पताल में बच्ची को दिखाने लाए। यहां पर डा. विकास कालड़ा ने बच्ची का ब्लड सैंपल लिया जिसके बाद वे घर चले गए। थोड़ी ही देर में परिजन फिर आए और कहने लगे कि बच्ची की तबीयत खराब हो गई है जिसके बाद उसे दाखिल कर लिया गया। 

 

गलत इंजैक्शन देने का आरोप
परिवार का आरोप है कि अस्पताल में गलत इंजैक्शन देने की वजह से उनकी बेटी की तबीयत बिगड़ी है। गंभीर हालत में डॉक्टर उसे गाबा अस्पताल ले गए जहां पर दिन-प्रतिदिन उसकी तबीयत बिगड़ती चली गई। उसी रात बच्ची को वैंटीलेटर पर लगा दिया तथा बी.पी. 60 तक पहुंच गया और बुधवार अल सुबह बच्ची ने आखिरी सांस ली। परिवार ने बच्ची का अंतिम संस्कार कर दिया। परिवार का कहना है कि इतने बड़े हादसे के बाद भी अस्पताल प्रबंधन ने उनकी सुध नहीं ली।

 

जांच को तैयार संचालक
अस्पताल के संचालक विमल कम्बोज का कहना है कि उनके स्तर पर कोई लापरवाही नहीं है। एक एम.एल. खून फ्रैश सुई से सैंपल के तौर पर लिया गया। न ही उसे कोई इलाज दिया गया और न ही कोई दवाई। ऐसे में लापरवाही का सवाल ही नहीं उठता। उनका यह भी कहना है कि डॉक्टर कालड़ा मृतक बच्ची के पारिवारिक सदस्य की तरह हैं। वह तो 20 घंटे तक भी निजी अस्पताल में भी साथ रहे। बुधवार सायं ही परिवार के 10-12 लोग उनसे मिलने आए थे तब कोई दिक्कत नहीं थी। यदि दिक्कत थी तो परिवार पोस्टमार्टम करवाता, वह हर तरह की जांच के लिए तैयार हैं।

 

कानून अपने हाथ में क्यों लिया: जिलाध्यक्ष
आई.एम.ए. के जिलाध्यक्ष डा. विक्रम भारती का कहना है कि परिवार को कानून हाथ में नहीं लेना चाहिए था। दिक्कत थी तो शिकायत करते। जांच में सबकुछ स्पष्ट हो जाता। 2008 में अस्पताल व मरीज के लिए कानून बना था कि कोई भी कानून को हाथ में नहीं लेगा। मसलन मरीज को दिक्कत है तो वह तोडफ़ोड़ की बजाय शिकायत करे।  मीटिंग में उनके साथ डा. प्रदीप कोहली, डा. राजन शर्मा, डा. डी.के. सोनी, डा. रितु मग्गो, डा. राजेश मग्गो, डा. अजय शर्मा, डा. योगेश जिंदल व डा. सचिन ने भी घटना की निंदा की।

 

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