कागजों में रैन बसेरे, हकीकत में लटके ताले

Edited By Punjab Kesari, Updated: 27 Nov, 2017 03:49 PM

bad condition of the night shelter

सरकार द्वारा जनता के पैसे से बनाए गए भवनों का उपयोग यदि जनता ही न कर सके तो ऐसे भवन बनाने का क्या फायदा। ये बात हम नहीं कह रहे ये प्रश्न आम जनता सरकार से पूछ रही है। आम जन का कहना है कि भवनों के निर्माण के लिए लाखों रुपए खर्च कर देना कहां की समझदारी...

यमुनानगर(भारद्वाज): सरकार द्वारा जनता के पैसे से बनाए गए भवनों का उपयोग यदि जनता ही न कर सके तो ऐसे भवन बनाने का क्या फायदा। ये बात हम नहीं कह रहे ये प्रश्न आम जनता सरकार से पूछ रही है। आम जन का कहना है कि भवनों के निर्माण के लिए लाखों रुपए खर्च कर देना कहां की समझदारी है। हम बात कर रहे है शहर में बनाए गए रैन बसेरों यानी रात्रि विश्राम गृहों की। यमुनानगर-जगाधरी में अधिकारिक तौर पर 2 रैन बसेरों का निर्माण किया गया है। एक जगाधरी बस स्टैंड पर तो दूसरा यमुनानगर में निरंकारी भवन के सामने सुलभ शौचालय के ऊपर स्थित है। जब इन रैन बसेरों के हालात का जायजा लिया गया तो दोनों रैन बसेरों के दरवाजे पर ताले लटके मिले और न ही कोई कर्मचारी मिला, जोकि इन लटके तालों के बारे में जानकारी दे सके, जबकि रैडक्रास सचिव का दावा है कि रैन बसेरे के लिए कर्मचारी की ड्यूटी लगाई गई है।  

कमरे के अंदर न बिस्तर था न ही कोई बैड
जगाधरी बस स्टैंड के सुलभ शौचालय के ऊपर बने रैन बसेरे के महिला व पुरुष दोनों कमरों पर तले लगे हुए थे। एक खुली खिड़की से झांकने पर देखा कि कमरे के अंदर न कोई बिस्तर था न कोई बेड था। कमरों में अंधेरा छाया हुआ था। टार्च की रोशनी में एक कमरे के एक कोने में कटी-फटी व गंदी दरी जरूर दिखाई दी। इसके अतिरिक्त और कोई सुविधा नजर नहीं आई। कमरे की हालत देखकर लग रहा था कि काफी समय से इसकी सफाई नहीं हुई। मैगा टूरिजम प्रोजैक्ट के अंतर्गत 20 लाख रुपए की लागत से निर्मित सुलभ शौचालय व रात्रि विश्राम गृह का उद्घाटन उस समय रही केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा ने 24 दिसम्बर 2013 को किया था, लेकिन यहां के हालात को देखते हुए यह रैन बसेरा केवल कागजों में ही सीमित होकर रह गया है। इसके कर्मचारी को लेकर जब आसपास के लोगों से बात की तो सभी ने कर्मचारी होने की बात को मना कर दिया। नीचे सुलभ शौचालय पर जो कर्मचारी बैठा था उसने भी कुछ बताने असमर्थता जताई।

कई लाखों से बना रैन बसेरा लग रहा भूतों का डेरा
इसके पश्चात टीम निरंकारी भवन यमुनानगर के सामने बने रैन बसेरे पर पहुंची। वहां पर भी लटके तालों ने स्वागत किया। अंदर कमरे की लाइट जगी हुई थी। खुली खिड़की से झांकर देखा तो 2-3 बिस्तर व टूटे हुए फोल्डिंग पड़े थे जिन पर धूल मिट्टी जमी नजर आ रही थी। बिस्तरों की हालत देखने पर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि कई महिनों से उनका प्रयोग ही नहीं किया गया। कमरों के बाहर गैलरी में गंदगी व पानी का जमावड़ा था। अब सवाल यह उठता है कि जब वहां पर कोई कर्मचारी मौजूद नहीं था तो अंदर की लाइट कैसे जगी। कमरों के बाहर गैलरी में पूरी तरह से गंदगी का आलम था और गैलरी में ही पानी की सुविधा के लिए एक खराब वाटर कूलर अवश्य दिखाई दिया जिस पर भी धूल मिट्टी जमी हुई थी। यहां पर भी महिला व पुरुष कमरों में ताले लगे हुए थे। 19 लाख 13 हजार की राशि से निर्मित यमुना नगर का यह रैन बसेरा किसी भूत के बसेरे से कम नहीं लग रहा था। यहां पर भी कोई कर्मचारी मौजूद नहीं था। जब आस पास कुछ रेहड़ी वालों से पूछा गया तो सभी ने इसकी चाबी के बारे में अनभिज्ञता जाहिर की और कहा कि उन्हें नहीं पता कि चाबी किसके पास है और कौन कर्मचारी यहां पर कार्यरत है।

रैन बसेरे की देखभाल करने वाला कर्मचारी भी नहीं मिला
दोनों ही रैन बसेरों पर कोई कर्मचारी उपलब्ध नहीं था। हालांकि रेड क्रास सचिव के अनुसार एक रैन बसेरा पर एक परमानैंट व एक कर्मचारी की विशेष ड्यूटी लगाई जाती है। लेकिन लगातार 2 दिन रात के समय वहां का दौरा करने के दौरान वहां पर कोई कर्मचारी नहीं मिला। जगाधरी बस स्टैंड पर तो लाइट भी नहीं जगी हुई थी। रैन बसेरे के नीचे बैठे कुछ लोगों ने बताया कि रैन बसेरा तो कभी खुलता ही नहीं है और इसकी चाबी किसके पास है उन्हें नहीं मालूम। इनमें से कुछ व्यक्ति दिव्यांग भी थे। उसे बातचीत करने पर मालूम हुआ कि वे कई दिनों से यहां आकर बैठ जाते हैं और लेकिन कोई व्यवस्था न होने से बेबस होकर रात भी इन्हें खुले आसमान के नीचे ही गुजारनी पड़ती है। सुबह होते ही यहां से चले जाते हैं। 

दोनों रैन बसेरों पर नहीं कोई पर्याप्त सूचना
दोनों ही रैन बसेरों पर कोई बोर्ड नहीं है और न ही कोई सम्पर्क सूत्र लिखा हुआ है जिससे की कोई सम्पर्क कर यहां पर विश्राम के लिए बातचीत कर सके। दोनों ही रैन बसेरों पर किसी प्रकार का कोई रैन बसेरा होने का चिन्ह भी अंकित नहीं था। एक रैन बसेरे पर जरूर हल्के रंग से रैन बसेरा लिखा हुआ था। इसके अतिरिक्तशहर के अधिकतर सार्वजनिक स्थानों अथवा चौकों पर कोई बोर्ड नहीं दिख रहा। जहां पर बोर्ड लगा भी हुआ है वहां पर भी अधिकारियों के नामो को लेकर भी असमंजस की स्थिति है।

न पानी की व्यवस्था न सफाई की उचित व्यवस्था
रैन बसेरों पर किसी प्रकार की कोई पेयजल की व्यवस्था नहीं थी। यदि गर्मी में किसी को रैन बसेरे में रहना पड़े तो वहां पर कमरों में कोई पंखा लगा हुआ नजर नहींं आया। रैन बसेरों के समीप ही गंदगी के ढेर लगे हुए मिले जिन्हें देखकर लग रहा था कि काफी समय से इनकी सफाई नहीं हुई। यमुनानगर रैन बसेरा के गैलरी मेें एक टूटा हुआ वाटर कूलर रखा था। जिसे देखकर कहा जा सकता है कि इसकी किसी भी अधिकारी अथवा कर्मचारी ने सुध नहीं ली।

रैन बसेरा के नाम पर खानापूर्ति, झूठी वाहवाही का केंद्र बने रैन बसेरे
इसके पश्चात टीम रेलवे स्टेशन के नजदीक पहुंची जहां पर अनाश्रित व्यक्तिसड़क पर बने खुले आसमान के नीचे डिवाइडर पर कंबल लपेटकर बैठे व सोते दिखाई दिए। इनसे बातचीत करने पर पता चला कि रैन बसेरे का तो उन्हें पता ही नहींं है लेकिन कभी कभी कुछ साहब लोग आते है और जबरदस्ती उन्हें उठाकर पास ही यमुना गली में बनी एक धर्मशाला के हाल में छोड़ जाते हैं। वे काफी समय से खुले में सोकर अपना जीवन व्यतीत करते हैं। इनमें से कुछ ने कहा कि उन्हें पता चला था कि यमुनानगर में रैन बसेरा भी है तो वे पैदल चलकर उस रैन बसेरे तक पहुंचे लेकिन वहां पर भी जब कोई नहींं मिला तो आस पास ही खुले में कंबल लेकर रात व्यतीत करने पर मजबूर हो गए। गरीब जनता व अनाश्रितों के लिए बनाए गए ऐसे भवन जिनका प्रयोग सही रूप से न हो रहा हो ऐसे भवनों का निर्माण कर केवल वाह-वाह ही लूटना कहां न्याय संगत है। 

ड्यूटी लगाकर किया जाता है औचक निरीक्षण : रैडक्रास सचिव
इस संबंध में रेड क्रास सैके्रटरी रणधीर सिंह का कहना है कि अधिकारिक तौर पर दो रैन बसेरे बनाए गए है। तीसरा रैन बसेरा के लिए यमुना गली में बनी कांशी राम, मक्खन लाल धर्मशाला का हाल सर्दियों में कुछ समय के लिए उपयोग किया जाता है, ताकि रेलवे स्टेशन के पास सड़कों पर रात व्यतीत करने वालों को सुविधा मिल सके। 
दोनों रैन बसेरों पर एक कर्मचारी की स्थायी ड्यूटी लगाई जाती है और एक कर्मचारी की स्पैशल ड्यूटी लगाई जाती है ताकि वहां पर रहने आए व्यक्तियों का रिकार्ड रख सके। समय समय पर रैन बसेरों का निरीक्षण भी किया जाता है।
 

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