सात माह का समय निकल जाने के बाद भी ऐलनाबाद उपचुनाव में आखिर क्यों की जा रही है लेटलतीफी ?

Edited By vinod kumar, Updated: 17 Aug, 2021 01:54 PM

why is there delay in the ellenabad by election

लगभग पिछले सात महीनों से ऐलनाबाद विधानसभा की सीट रिक्त है और ऐलनाबाद से कोई भी विधायक नहीं है। चूंकि केंद्र की मोदी सरकार द्वारा तीन कृषि कानूनों की खिलाफत करते हुए ऐलनाबाद के विधायक अभय सिंह चौटाला ने 27 जनवरी को अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। तब...

ऐलनाबाद (सुरेंद्र सरदाना): लगभग पिछले सात महीनों से ऐलनाबाद विधानसभा की सीट रिक्त है और ऐलनाबाद से कोई भी विधायक नहीं है। चूंकि केंद्र की मोदी सरकार द्वारा तीन कृषि कानूनों की खिलाफत करते हुए ऐलनाबाद के विधायक अभय सिंह चौटाला ने 27 जनवरी को अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। तब से लेकर आज तक लगभग ऐसी सीट से चुनाव आयोग ने भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। जबकि रिप्रजेंटेशन ऑफ पीपल एक्ट 1951 में स्पष्ट प्रावधान है कि जब भी किसी राज्य की कोई विधानसभा की सीट किसी कारण से रिक्त हो जाती है तो चुनाव आयोग को ऐसी सीट पर छह महीने में चुनाव करवाना जरूरी होता है। लेकिन सात महीने निकल जाने के बाद भी चुनाव आयोग द्वारा ऐलनाबाद विधानसभा चुनाव के लिए किसी भी प्रकार का कोई नोटिफिकेशन न निकालने के पीछे बड़ा कारण क्या है यह तो कानून के विशेषज्ञ ही बता सकते है। 

ऐसे चुनाव को लेकर पंजाब एंड हाईकोर्ट में भी एक जनहित याचिका डाली गई जो कि न्यायालय द्वारा निरस्त कर दी गई। न्यायलय द्वारा निरस्त करने का कारण सम्भवतः कारण सविधान का आर्टिकल 226 भी हो सकता है। भारत के सविधान में यह भी प्रावधान है कि केंद्र सरकार की अनुमति से चुनाव आयोग किसी भी राज्य के विधानसभा की रिक्त हुई सीट को असमय के लिए टाल सकता है और सम्भवतः यह चुनाव भी उसी प्रावधान के तहत लिंगर ऑन किया जा रहा है। 

अब सवाल उठता है कि चुनाव आयोग के आगे भी ऐसी क्या दिक्कतें है कि ऐसे चुनाव को आखिर क्यों टाला जा रहा है और क्यों लेटलतीफी की जा रही है। कारणों की बात करे तो कोरोना संक्रमण भी एक कारण हो सकता है, लेकिन यह कारण आमजन के गल्ले नहीं उतरता। चूंकि कोरोना संक्रमण पर काफी हद तक लगाम लग गई है और सरकार द्वारा भी आमजन को हर प्रकार की छूट दी हुई है। दूसरे कारण में लोग यह कयास लगाते हैं कि चुनाव आयोग पर भी केंद्र व राज्य सरकार का कही न कही दबाव जरूर है कि प्रदेश की बीजेपी सरकार के लिए ऐलनाबाद उपचुनाव गल्ले की फांस है। 

बेशक ऐलनाबाद उपचुनाव प्रदेश सरकार के लिए जीत या हार कोई मायने नहीं रखता, लेकिन दुविधा यह है कि ऐलनाबाद विधानसभा चौधरी देवी लाल का गढ़ माना जाता है। ऐसे में इनेलो के गढ़ को ध्वस्त करना बड़ी टेडी खीर है। इतना ही नहीं प्रदेश में बीजेपी और जजपा गठबंधन सरकार है और जजपा भी इनेलो से निकली हुई एक पार्टी है। दूसरे शब्दों में बीजेपी भी एक ऐसा कार्ड खेलना चाहती है कि यह सीट जजपा के खाते में डाल कर चौधरी देवी लाल के गढ़ को चौधरी देवी लाल के वशंजों से ही फतह करवाना चाहती है। 

मिली जानकारी के अनुसार जजपा नेताओं के लिए भी एक बड़ी दुविधा है कि अगर चौधरी ओम प्रकाश चौटाला ऐलनाबाद से चुनाव लड़ते है तो ऐसे में जजपा कभी भी ऐलनाबाद से चुनाव लड़ना पसन्द नहीं करेगी। हो सकता है लोगो का यह अनुमान गलत भी हो, लेकिन ऐसे अनुमान को नकारा भी नहीं जा सकता। खैर इसके अलावा भी ऐलनाबाद उपचुनाव की लेटलतीफी के अनेकों कारण तो जरूर होंगे. जिस के चलते चुनाव आयोग द्वारा ऐलनाबाद विधनसभा उपचुनाव की घोषणा नहीं की जा रही। 

अलबत्ता कारण कोई भी हो ऐलनाबाद विधानसभा का कोई जनप्रतिनिधि न होने के चलते ऐलनाबाद के लोग अपने आप को ठगा सा महसूस जरूर कर रहे हैं और इस से लोकतन्त्र भी कमजोर होता नजर आता है। क्षेत्र के लोगो की मांग है कि चुनाव आयोग को शीघ्र ही ऐलनाबाद उपचुनाव की घोषणा कर क्षेत्र के लोगों को उन्हें मूलभूत सुविधाएं प्रदत करने के लिए और उनकी नुमाइंदगी करने के लिए उनका नुमाइंदा चुनने का मौका प्रदान करना चाहिए।

 

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