Edited By Manisha rana, Updated: 16 Jun, 2024 02:55 PM
यूं तो एक दिन काफी नहीं फादर्स डे मनाने के लिए। हर दिन खास होता है, क्योंकि वही खुशनसीब है इस दुनिया में जिनके सिर पर अपने बड़ों की दुआओं का हाथ है। यह बात व्यक्ति को उम्र के उस पड़ाव पर समझ आती है जब वह स्वयं पिता के उम्र में पहुँचता है। आज हम अपनी...
करनाल : यूं तो एक दिन काफी नहीं फादर्स डे मनाने के लिए। हर दिन खास होता है, क्योंकि वही खुशनसीब है इस दुनिया में जिनके सिर पर अपने बड़ों की दुआओं का हाथ है। यह बात व्यक्ति को उम्र के उस पड़ाव पर समझ आती है जब वह स्वयं पिता के उम्र में पहुँचता है। आज हम अपनी खबर के माध्यम से उस व्यक्ति को अपनी छोटी सी कृतज्ञता व्यक्त करना चाहते हैं जो हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिकाओं में से सर्वप्रथम स्थान पर है। जी हां एकदम सही समझे हमारे पिता। ऐसे तो साल के 365 दिन में से मात्र 1 दिन पिता और बच्चे की आत्मीयता के लिए कुछ भी नहीं। फिर भी यह एक दिन विशेष रूप से फादर्स डे के रूप में मनाए जाने का क्या विशेष कारण है? यह सोचने योग्य है। परंतु आज के दौर में पिता और बच्चों के संबंधों में भावना की अभिव्यक्ति में क्रांतिकारी परिवर्तन देखने को मिलता है। आज जहां एक ओर पिता अपने प्रेम एवं भाव को स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त करता है वहीं बच्चे भी पिता को अपना मित्र मानते हैं, उनसे अपने सुख-दुख एवं सभी प्रकार की बातों को बताकर उनके अनुभव का लाभ उठाने में सफल भी हुए हैं।
वहीं दूसरी ओर कुछ कलयुगी औलाद ऐसी भी है जो अपने माता-पिता को घर से बाहर निकाल देते है और बुजुर्ग दर-दर भटकने पर मजबूर हो जाते है। करनाल का निर्मल धाम ऐसे ही बुजुर्गो से भरा हुआ है, जिन्हें या तो उनके बच्चों ने घर से बाहर निकाल दिया या फिर किसी की अपने पिता से ही नहीं बन पाई। कोई अपना अपमान नहीं सह पाया तो कोई अपना स्वाभिमान अपने बच्चों के कदमों में गिरवी नहीं रख पाया। वक्त के थपेड़ों ने इन बुजुर्गों को इतना मजबूत बना दिया है कि अगर परिवार की याद भी आती है तो आंसूओं का घुंट अंदर ही अंदर पी जाते है और चहेरे पर एक मुस्कुराहट नजर आती है। कुछ बुजुर्ग ऐसे भी है, जो अपने परिवार के साथ रहना चाहते है, लेकिन उन्हें लेने के लिए कोई नहीं आता। आज फादर डे पर सभी अपने पिता के साथ सेल्फी क्लिक करके सोशल मीडिया पर पोस्ट करेंगे और सम्मान का दिखावा करेंगे। असली सम्मान उनका बुढ़ापे में किया जाना चाहिए। ऐसी ही दर्दभरी दास्तां वृद्धाश्रम के बुजुर्गों की जुबानी, पढिए और सोचिए। इनका क्या कसूर था-
मैंने लड़का पैदा करके कितनी बड़ी गलती कर दी
यह वाक्य है उस मोहनलाल जो दिल्ली का रहने वाले है और बीते चार साल से वृद्धाश्रम में रह रहा है। मोहन लाल का कहना है कि वक्त के हालात कुछ ऐसे हो गए थे। घरवालों से कुछ मतभेद ऐसे हो गए थे कि मुझे ओल्डऐज होम में आना पड़ा। जहां पर मान नहीं सम्मान नहीं, प्यार नहीं वहां पर रहना ही नहीं चाहिए। घर में रोटी के दो टुकड़े के अलावा इज्जत मान और मर्यादा की भी जरूरत होती है। अगर हालात ऐसे बन जाते है कि जब आपके बच्चे ही आपके खिलाफ खड़े हो जाए, तो मां-बाप दुश्मन हो ही जाते है। बच्चे मां-बाप की ताकत बनते है, लेकिन मेरे बच्चों ने अपना स्वार्थ चुना। मोहनलाल कहते है कि जब लड़का पैदा होता है तो खुशी का जबरदस्त माहौल रहता है। वह हमारी आंतरिक खुशी होती है, क्योंकि नवजात को नहीं पता होता कि उसके लिए मैं क्या कर रहा हूं। जब बच्चे बड़े होकर बाप के खिलाफ खड़े हो जाते है तो पता चलता है कि यह बच्चा पैदा करके मैंने कितनी बड़ी गलती कर दी। हालांकि मैं अपने बच्चों को दोष नहीं देता, लेकिन शायद मेरे नसीब में यही लिखा था, तो आज मैं यहां पर हूं। हां उन पलों की याद भी आ जाती है जो मैंने अपने परिवार के साथ बिताएं थे, लेकिन उनके साथ गम भी ज्यादा मिलते है। रोना आता है, लेकिन अपने आपको मजबूत करता हूं और मैं नहीं चाहता कि मेरे परिवार का कोई भी सदस्य मेरे आंसुओं को देखे। वे जहां है, वहां रहे। मैं अपने हाल में ठीक हूं।
घर वाले कहते है कमाकर लाओ
बुजुर्ग कुलबीर कुमार करीब छह साल से वृद्धाश्रम में रह रहे है। कुलबीर का कहना है कि मेरे घरवाले कहते है कि कमा कर लाओ, लेकिन मैं बुढ़ा हो चुका हूं, काम होता नहीं है। तीन बच्चे है मेरे, एक लड़का और दो लड़कियां है। मेरा परिवार बड़ा हो, परिवार की जरूरत तो है मुझे, लेकिन उनकी डिमांड सिर्फ एक ही है कि कमाकर लाओ। मैं 79 साल का हूं, कैसे कमाऊं? कभी कभार मिलने के लिए पौते-पौती आ जाते है। वे भी देखते है कि मैं वृद्धाश्रम में हूं, कहीं ना कहीं इन बच्चों के मन भी सवाल उठता होगा कि आखिर हमारे दादा जी यहां क्यों है और हमारे साथ क्यों नहीं रहते? फिर भी बच्चे है वे क्या बोलेंगे। ना तो कभी मेरी पत्नी ने मुझसे कहा है कि घर आ जाओ और ना ही मेरे बेटे ने।
एक पिता की चाहत
समाज के बढ़ते पश्चिमीकरण के परिणाम स्वरूप, वृद्धाश्रम की संख्या में वृद्धि से हम सब दिन प्रतिदिन परिचित हैं। ऐसे में एक पिता अपने बच्चे से मात्र इतना ही चाहता है कि आज उंगली पकड़ कर तेरी तुझे मैं चलना सिखलाऊ, कल हाथ पकड़ना मेरा जब मैं बूढ़ा हो जाऊं।
इस फादर्स डे पर हम सब एक संकल्प लें कि आज से प्रत्येक दिन, पूरे दिन में कम से कम एक बार हम अपने माता-पिता का आशीर्वाद एवं उनका कुशल क्षेम पूछेंगे। उन्हें यह एहसास जरूर कराएंगे कि हम उनके बच्चे हैं और सम्मान पाना उनका अधिकार है। हम गौरवशाली हैं, क्योंकि हमको पिता के रूप में आप मिले हैं।
(पंजाब केसरी हरियाणा की खबरें अब क्लिक में Whatsapp एवं Telegram पर जुड़ने के लिए लाल रंग पर क्लिक करें)