सरकारी अनदेखी की पराकाष्ठा: आज तक नहीं बना स्वतंत्रता सेनानियों के इतिहास का ग्रंथ

Edited By Shivam, Updated: 23 Jan, 2020 01:44 AM

the culmination of the government s neglect

हरियाणा में एक कहावत है कि 12 साल बाद तो कुरड़ी की भी सुनी जाती है लेकिन आजादी की लड़ाई में अपना योगदान देने वाले स्वतंत्रता सेनानियों तथा उनके परिजनों के यह कहावत भी झूठी साबित हो रही है। एक तरफ जहां केंद्र सरकार द्वारा सैनिकों व उनके आश्रितों को...

करनाल (शर्मा): हरियाणा में एक कहावत है कि 12 साल बाद तो कुरड़ी की भी सुनी जाती है लेकिन आजादी की लड़ाई में अपना योगदान देने वाले स्वतंत्रता सेनानियों तथा उनके परिजनों के यह कहावत भी झूठी साबित हो रही है। एक तरफ जहां केंद्र सरकार द्वारा सैनिकों व उनके आश्रितों को सरकार दरबार में मान-सम्मान दिए जाने के सर्कुलर जारी कर रही है वहीं वर्ष 1977 में तत्कालीन सरकार द्वारा स्वतंत्रता सेनानियों व आजाद हिंद के सिपाहियों के विवरण पर आधारित ग्रंथ प्रकाशित करने के आदेशों पर 50 साल बाद भी अमल नहीं हुआ है।

इस बात को लेकर स्वतंत्रता सेनानी व उनके परिजनों में प्रदेश सरकार के प्रति नाराजगी है। सरकार 1977 के बाद से लेकर आज तक 30 बार सेनानी परिवारों से फोटो व इतिहास मांग चुकी है लेकिन आज तक इतिहास संकलन को लेकर कुछ भी काम नहीं हुआ है। देश की आजादी की लड़ाई में हरियाणा से करीब 5500 स्वतंत्रता सेनानियों ने भाग लिया था। जिसमें दो हजार से अधिक आजाद हिंद फौज के सेनानियों थे। अधिकतर स्वतंत्रता सेनानी इस इतिहास पुस्तिका के सृजन के इंतजार में स्वर्ग सिधार चुके हैं। प्रदेश में इस समय केवल 10 स्वतंत्रता सेनानी जिंदा हैं, जबकि 399 स्वतंत्रता सेनानियों की विधवाएं अभी जिंदा हैं जो इस इतिहास को देखना चाहती हैं। 

कैथल जिले के गांव नरड़ से आजाद हिंद फौज के स्वतंत्रता सेनानी मनीराम की विधवा फुलादेवी के अनुसार 8 दिसंबर 1977 के निदेशक हरियाणा राज्य अभिलेखागार ने आजाद हिंद फौज के सेनानियों को इतिहास बनाने के लिए पत्र लिखकर जीवन संबंधी सूचना भेजने के लिए कहा था। पत्र में लिखा था कि हरियाणा राज्य अभिलेखागार आजाद हिंद फौज के स्वतंत्रता सेनानियों का इतिहास बनाएगी। आजाद हिंद फौज के स्वतंत्रता सेनानियों को सूचनापत्र के साथ एक फार्म भी भेजा था तथा उसे भरकर जमा करवाने को कहा गया था।

ऐसे पत्र कई बार आए लेकिन उनके परिणाम कभी नहीं आए। हरियाणा स्वतंत्रता सेनानी एवं उत्तराधिकारी संघ के सदस्य ओमप्रकाश ढांडा, सुरेंद्र डूडी, सुरेंद्र जागलान, राजेश व रमेश ने बताया कि पिछले 5 साल से उनकी पेंशन में कोई भी वृद्घि नहीं की गई है। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा इस संबंध में दावे तो किए जाते हैं लेकिन धरातल पर कार्रवाई कुछ नहीं हो रही है। स्वतंत्रता सेनानियों व उनके परिजनों को केवल 26 जनवरी और 15 अगस्त को ही याद किया जाता है। 

उन्होंने कहा कि हरियाणा प्रदेश को छोड़कर दूसरे कई प्रदेशों में स्वतंत्रता सेनानियों के परिजनों को नौकरियों में आरक्षण मिल रहा है। हरियाणा प्रदेश में स्वतंत्रता सेनानी परिजनों को नौकरियों में आरक्षण नहीं मिल रहा है।  

बगैर सदस्यों के चल रही है समीति
मनोहर सरकार ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान हरियाणा स्वतंत्रता सेनानी सम्मान समिति का भी पूरी तरह से गठन नहीं किया।  स्वतंत्रता सेनानी लालती राम को चेयरमैन बनाया गया मगर लालती राम अधिक बुजुर्ग होने के कारण सुनने व चलने में भी असमर्थ हैं। आज तक वाइस चेयरमैन और समिति का एक भी मेंबर नहीं बनाया गया है। 1966 के बाद हरियाणा के इतिहास में पहली बार बिना मेंबर की समिति काम कर रही है।

जो राजनीतिक कारणों से गए जेल उनका बना ग्रंथ
हरियाणा स्वतंत्रता सेनानी एवं उत्तराधिकारी संघ के सदस्यों ने कहा कि जो लोग आपातकाल के दौरान पॉलीटिकल मूवमेंट में जेल गए थे, सरकार द्वारा उन्हें स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा देकर बकायदा एक ग्रंथ का प्रकाशन कर दिया गया है जबकि स्वतंत्रता सेनानियों जिन्होंने देश की आजादी की लड़ाई लड़ी उनकी तरफ सरकार का कोई ध्यान नहीं। उन्होंने रोष व्यक्त करते हुए कहा कि पॉलीटिकल मूवमेंट में स्वतंत्रता सेनानी बनने वाले हरियाणा के मंत्री व पूर्व मंत्रियों के परिजन हैं।

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