रोडवेज चालक-परिचालकों के लिए खुशखबरी, 8 घंटे से ज्यादा काम लिया तो मिलेगा ओवरटाइम

Edited By Isha, Updated: 04 Feb, 2020 12:53 PM

roadways will have to pay overtime if they take more than 8 hours

रोडवेज चालक-परिचालकों को अब केवल 8 घंटे ही ड्यूटी करनी होगी। यदि रोडवेज प्रबंधन ने उनसे 8 घंटे से ज्यादा काम लिया तो उसके बदले उन्हें ओवरटाइम मिलेगा। रोडवेज निदेशालय ने प्रदेश के सभी..

जींद (राठी) : रोडवेज चालक-परिचालकों को अब केवल 8 घंटे ही ड्यूटी करनी होगी। यदि रोडवेज प्रबंधन ने उनसे 8 घंटे से ज्यादा काम लिया तो उसके बदले उन्हें ओवरटाइम मिलेगा। रोडवेज निदेशालय ने प्रदेश के सभी महाप्रबंधकों को पत्र भेजकर आदेश जारी किए हैं कि वे चालक-परिचालकों से दिन में केवल 8 घंटे ही काम लें। यदि कोई भी चालक या परिचालक लम्बे रूट पर गया हुआ है और उसे 3-4 दिन लग जाते हैं तो उसे ओवरटाइम दिया जाए। इसके लिए सभी रोडवेज महाप्रबंधक मोटर ट्रांसपोर्ट वर्कर्स एक्ट 1961 की अनुपालना करें। सरकार द्वारा ओवरटाइम खत्म करने पर रोडवेज यूनियनों ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी।   

20 नवम्बर 2018 को बंद हुआ था चालक-परिचालकों का ओवरटाइम
रोडवेज में शुरू से ही चालक-परिचालकों को ओवरटाइम दिया जा रहा था। इसके कारण रोडवेज की बसें भी सही तरीके से चलती थी वहीं चालक-परिचालक भी ड्यूटी के प्रति गंभीर रहते थे लेकिन 20 नवम्बर 2018 को प्रदेश सरकार ने रोडवेज में ओवरटाइम खत्म कर दिया और चालक-परिचालकों से प्रतिदिन 8 घंटे काम या पूरे सप्ताह में 48 घंटे ड्यूटी लेने के आदेश जारी किए थे और उसके बाद कर्मचारियों को रैस्ट दिया जाए।

इसके बावजूद रोडवेज प्रबंधन द्वारा चालक-परिचालकों से प्रतिदिन 8 घंटे से ज्यादा काम लिया जा रहा है, वहीं कई रूटों पर तो चालक-परिचालक तीसरे दिन वापस आता है। ऐसे में चालक-परिचालक दिन-रात घर से बाहर रहते हैं, जबकि ड्यूटी उनकी केवल दिन के समय ही निर्धारित है। ऐसे में कई चालक-परिचालक 24-24 घंटे लगातार बाहर ही रहते हैं।  रोडवेज में ओवरटाइम खत्म होने का मुख्य असर ये हुआ था कि रोडवेज की आमदनी घट गई थी। इसके अलावा लंबे रूट भी प्रभावित हो गए थे।

रोडवेज चालक-परिचालकों ने भी काम की गंभीरता को छोड़कर बस केवल 8 घंटे ही ड्यूटी करनी शुरू कर दी और रोडवेज प्रबंधन के पास चालक-परिचालकों द्वारा बसों को बीच रास्ते से ही वापस लाने की शिकायतें आने लगी थी। सप्ताह में 48 घंटे ड्यूटी लेने के बाद डी.आई. कार्यालय को चालक-परिचालकों को रैस्ट देना पड़ता था। इससे डी.आई. कार्यालय के पास चालक-परिचालकों की कमी पड़ गई और बसों को चलाने के लिए चालक-परिचालक ही नहीं मिलते थे। जिससे लोकल रूटों पर छात्र-छात्राओं को समय पर बस न मिलने के कारण काफी परेशानी झेलनी पड़ी थी। उसके बाद धीरे-धीरे रोडवेज प्रबंधन ने व्यवस्था बनाई, तब जाकर रोडवेज व्यवस्था पटरी पर आ पाई थी।

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