पत्रकारिता व राजनीति पर आधारित नई पुस्तक 'जनतन्त्र एवं संसदीय संवाद' का लोकार्पण

Edited By Shivam, Updated: 11 Jan, 2020 10:28 PM

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विश्व पुस्तक मेले में वाणी प्रकाशन ग्रुप के स्टॉल 233-252 (हॉल 12ए) में लेखक डॉ. राकेश कुमार योगी की पत्रकारिता व राजनीति पर आधारित नयी पुस्तक ''जनतन्त्र एवं संसदीय संवाद'' का लोकार्पण एवं परिचर्चा की गई। जनतंत्र एवं संसदीय संवाद नामक पुस्तक के...

चंडीगढ़ (धरणी): विश्व पुस्तक मेले में वाणी प्रकाशन ग्रुप के स्टॉल 233-252 (हॉल 12ए) में लेखक डॉ. राकेश कुमार योगी की पत्रकारिता व राजनीति पर आधारित नयी पुस्तक 'जनतन्त्र एवं संसदीय संवाद' का लोकार्पण एवं परिचर्चा की गई। जनतंत्र एवं संसदीय संवाद नामक पुस्तक के लोकार्पण एवं विमर्श के मौके पर केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। मंत्री ने लेखक डॉ राकेश योगी को प्रासंगिक विषय पर लेखन के लिए बधाई दी और कहा कि इस विषय पर गंभीर कार्य की सदैव आवश्यकता है।

इस कार्यक्रम में लेखक व डॉ. राकेश कुमार योगी के साथ, प्रोफ़ेसर सुनील कुमार चौधरी, प्रोफ़ेसर मुकेश कुमार, लोकसभा टीवी के प्रधान संपादक और सीईओ डॉ. आशीष जोशी, न्यूज लॉन्ड्री के सम्पादक अतुल चौरसिया, लोकसभा टी.वी. के सम्पादक श्याम किशोर, लोकसभा टी.वी. के प्रधान निर्माता राजेश झा और प्रोफ़ेसर लाल बहादुर ओझा उपस्थित थे।

वाणी प्रकाशन की निदेशक आदिति माहेश्वरी ने मंच का संचालन करते हुए, लेखक डॉ. राकेश योगी तथा अन्य अतिथियों का स्वागत किया। श्रोताओं की तालियों के बीच 'जनतन्त्र एवं संसदीय संवाद' पुस्तक का लोकार्पण किया गया। आदिति माहेश्वरी द्वारा किताब के लेखक राकेश योगी से प्रश्न पूछा गया कि इस किताब की आवश्यकता क्यों है? 

लेखक राकेश योगी उत्तर में बताते हैं कि समाज में जिस जनतन्त्र की परिकल्पना की जाती रही है, जिस प्रकार का संवाद होता आ रहा है, वह असल में कैसी होनी चाहिए उस आदर्शात्मक स्थिति की परिकल्पना इस पुस्तक में की गई है। वह आगे कहते हैं कि संसदीय विवाद से संवाद की यात्रा का चित्रण इस पुस्तक में है। 

लोकसभा टीवी के प्रधान संपादक और सीईओ डॉ. आशीष जोशी से आदिति माहेश्वरी द्वारा प्रश्न किया गया कि 'इन सत्तर वर्षों में संसद के स्तर में क्या परिवर्तन आया है?' आशीष जोशी पुस्तक के लिए लेखक राकेश योगी को धन्यवाद करते हुए बताया कि इस पुस्तक के लिए साक्षात्कार लेना कितना कठिन था, क्योंकि यह विषय अपने आप में अति महत्वपूर्ण है, जिसमें 'व्यक्त से व्यक्ति' का उल्लेख है। उनके अनुसार संवाद का मूल उद्देश्य, सहमति उतपन्न करना, समाज और राष्ट्र का विकास करना है। वह संसदीय भाषा को भी व्यख्यायित करते हैं। वह संवाद को केवल संवाद रखना, विवाद ना बनने का आग्रह करते हैं।

वाणी प्रकाशन की निदेशक आदिति माहेश्वरी अपना अगला प्रश्न प्रोफ़ेसर लाल बहादुर ओझा से करतीं हैं, कि 'संसदीय संवाद, जनतन्त्र की आदर्श स्थिति से बाहर की वास्तविकता क्या है? लाल बहादुर ओझा अपनी बात कहते हुए कहते हैं कि संवाद, स्वयं से शुरू होकर, सामाजिक रूप लेता है, जिसमें अंतरात्मा का संवाद कहीं पीछे छूट गया है। संवाद में स्वीकृति के भाव को आवश्यक मानते हुए, वह कहते हैं कि भारतीय परम्परा संवाद, मध्यमार्ग की परम्परा है, संसद जिसे भूलती जा रही है। लोकसभा टी.वी. के सम्पादक श्याम किशोर 'संवाद की बिगड़ती परिस्थिती' पर बात करते हुए, संसदीय संवाद को निजी जीवन से अलग मानते है, जहाँ विचारधारा, विषमता बीच में नहीं आती।

प्रोफ़ेसर सुनील कुमार चौधरी संवाद और तर्क उसके बीच में कहीं संसद को ढूंढ़ते हुए कहते हैं कि इस पुस्तक में तीन प्रकार के अनिवार्य परिवर्तनों को उन्होंने पाया है, पहली, पुस्तक में अभाव की बजाए भाव की बात है, दूसरा चिंता के स्थान पर चिंतन और तीसरा विवाद से संवाद की ओर दिशा का वर्णन है। प्रोफेसर मुकेश कुमार इस पुस्तक को वर्तमान समय की चिंता पर केंद्रित मानते हैं। वहीं जनतन्त्रीय संवाद को वह स्वतन्त्रता सँघर्ष की देन मानते हैं, और इसे जवाहरलाल नेहरू, अम्बेडकर, सरदार वल्लभ भाई पटेल की परम्परा से जोड़ते है। परिचर्चा के आखिऱ में वह अपनी पुस्तक के बाहरी आवरण के चित्र में बनी ख़ाली कुर्सी को उस व्यवस्था का प्रतीक मानते हैं, जिसमें संवाद महत्वपूर्ण है।

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