एचएसएससी घोटाला: मोबाइल लोकेशन खोल सकती है बड़ा राज

Edited By Rakhi Yadav, Updated: 16 Apr, 2018 09:06 AM

mobile location can open big secret

हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग में हुए घोटाले को लेकर जिस तरह से आयोग की भूमिका को सरकार नकार रही है। उससे कहीं न कहीं दाल काली नजर आ रही है। 25 अगस्त को पंचकूला में हुई आगजनी के दौरान मामले में गिरफ्तार किए गए 3 आरोपियों ....

चंडीगढ़(ब्यूरो): हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग में हुए घोटाले को लेकर जिस तरह से आयोग की भूमिका को सरकार नकार रही है। उससे कहीं न कहीं दाल काली नजर आ रही है। 25 अगस्त को पंचकूला में हुई आगजनी के दौरान मामले में गिरफ्तार किए गए 3 आरोपियों ने अपने वाहनों के जलने की एफ.आई.आर. 5 दिन बाद आधे घंटे में एक साथ दर्ज करवाई।

सरकार ने भी आरंभ में इन आरोपियों के वाहन जलने की बात सार्वजनिक नहीं की थी। एक आरोपी रोहतास ने एस.आई.टी. की पूछताछ में बताया कि वह आयोग के दफ्तर के सामने अपनी एक्टिवा खड़ी करने के बाद किसी काम से हाईकोर्ट गया था। जबकि हाईकोर्ट की बार एसोसिएशन ने 24 अगस्त को ही अगले दिन वर्क सस्पेंड रखने का निर्णय ले लिया था।

सोशल मीडिया पर सी.एम. के पूर्व ओ.एस.डी. जवाहर यादव लगातार इस बात की पैरवी कर रहे हैं कि घोटाले में सिर्फ कुछ कर्मचारी शामिल रहे है। आयोग के सदस्यों से लेकर चेयरमैन तक को वे लगातार क्लीन चिट देते आ रहे है। सरकार के मंत्रियों से लेकर सी.एम. तक की ओर से इस मामले में चुप्पी-सी साधी हुई है। हाल ही में जवाहर यादव ने यह स्पष्ट किया है कि जिन 3 कर्मचारियों के वाहन जले थे उनकी एफ.आई.आर. पंचकूला थाने में 30 अगस्त, 2017 को ही दर्ज करवाई गई थी।

इन एफ.आई.आर. के नंबर 398, 399 और 400 है। इसका मतलब साफ है कि तीनों लोगों ने एफ.आई.आर. एक साथ दर्ज करवाई है। तीनों एक सीरियल में महज आधे घंटे की अवधि में दर्ज हुई है। जो इस बात का संकेत दे रही है कि तीनों ने 5 दिन तक आयोग के दफ्तर में नहीं होने की बात पक्की करने के लिए एफ.आई.आर. दर्ज करवाना उचित नहीं समझा। पंचकूला में कर्फ्यू के दौरान उनके वाहन आयोग के दफ्तर के पास पहुंचना संदेह के दायरे में आ रहा है। बाद में तीनों का एक साथ एफ.आई.आर. दर्ज करवाना भी यह साबित कर रहा है कि तीनों एक साथ आयोग के दफ्तर में गए होंगे।

सूत्र बताते हैं कि इस बड़े कांड में सत्ता पक्ष के कुछ बड़े नेताओं और आयोग की भूमिका होने के बावजूद उन्हें बचाने के लिए बड़ा खेल खेला जा रहा है। ऐसा इसलिए किया जा रहा है कि सरकार पर इस भ्रष्टाचार के छींटे नहीं पडऩे पाएं। चूंकि जांच मुख्यमंत्री की टीम कर रही है इसलिए सी.एम. से बाहर मामले की जांच रिपोर्ट नहीं जा सकती। सरकार न्यायिक जांच करवाने के मूड में जरा भी नजर नहीं आ रही।

बड़ा सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या इस प्रकरण को मामूली ऑप्रेटर और छोटे कर्मचारियों ने ही अंजाम दिया था। एस.आई.टी. की जांच के अनुसार डाटा एंट्री ऑप्रेटर पुनीत ही तैयार रिजल्ट की सील तोड़कर रिजल्ट देखता था। इसके बाद फिर से रिजल्ट को सील कर देता था। यहां सवाल यह उठ रहा है कि रिजल्ट को सील करने के बाद उस पर आयोग के चेयरमैन और सदस्यों के साइन होते हैं। सील तोडऩे के बाद दोबारा से सील करने के बाद साइन कौन करता था, यह बात भी समझ से परे नजर आ रही है।

वहीं, अगर पकड़ा गया आरोपी रोहतास उस दिन हाईकोर्ट ही गया था तो एस.आई.टी. उसकी मोबाइल लोकेशन से वास्तविकता का पता लगा सकती है। बहरहाल देखना यह होगा कि एस.आई.टी. मामले का खुलासा करने में कितना वक्त लगाती है और उसके हाथ किस-किस की गर्दन तक पहुंच पाते है। 
 

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