Edited By vinod kumar, Updated: 27 Mar, 2020 05:05 PM
मुसाफिर हूं यारों न घर है ना ठिकाना, हमें चलते जाना है...। किसी पुरानी फिल्म का यह गाना आज सैकड़ों हजारों उन मजदूरों पर बिल्कुल स्टीक बैठ रहा है, जाे अपने घर व प्रदेश को छोडक़र दूसरे राज्याें में रोजी-रोटी की तलाश में आए थे। लेकिन कोरोना वायरस के...
झज्जर(प्रवीण): मुसाफिर हूं यारों न घर है ना ठिकाना, हमें चलते जाना है...। किसी पुरानी फिल्म का यह गाना आज सैकड़ों हजारों उन मजदूरों पर बिल्कुल स्टीक बैठ रहा है, जाे अपने घर व प्रदेश को छोडक़र दूसरे राज्याें में रोजी-रोटी की तलाश में आए थे। लेकिन कोरोना वायरस के चलते देश में किए गए 21 दिनों के लॉकडाउन के चलते न तो उन्हें रोजी-रोटी ही मिल रही है और न ही रहने का स्थान।
हालात यह है कि काम न मिलने के चलते कई परिवार इन दिनों अपने छोटे-छोटे मासूम बच्चों के साथ किसी वाहन की व्यवस्था न होने के चलते पैदल ही अपने प्रदेश की और लौट चले है। ऐसे ही कई परिवार भूखे-प्यासे पैदल ही अपने शहर झांसी जाने के लिए जब रोहतक से झज्जर पहुंचे तो यहां उनकी मदद के लिए दर्जनों हाथ उठे।
यहां रेवाड़ी रोड़ पर स्थित एक वाटिका में इन परिवारों को मदद के लिए उठे हाथों ने भरपेट भोजन कराया। इस दौरान इन परिवारों ने काम और भोजन न मिलने का दुख भी अपनी नम आंखों से बयां किया। इनका कहना था कि बाबू ने न तो काम दियाऔर न ही आराम। यहां तक की रहने का स्थान भी उनके पास नहीं है। जब काम और रहने का स्थान ही उनके पास नहीं है तो अब वह यहां पर रहकर क्या करेंगे।
उन्होंने सरकार से मदद दिए जाने की भी गुजारिश की। उनका कहना था कि यदि सरकार उनके जाने व भोजन की व्यवस्था करा दे तो उनकी यात्रा सुगम हो जाएगी। उन्होंने यह भी कहा कि फिलहाल तो उन्हें इस प्रकार की कोई उम्मीद नजर नहीं आती। लेकिन उन्होंने भी फैसला कर रखा है कि चाहे मदद मिले या न मिले वह अपने गंतव्य का सफर जरूर तय करेंगे। इसके लिए चाहे उनकी जान ही क्यूं न चली जाए।