मानेसर जमीन घोटाले में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, हुड्डा की बढ़ी मुश्किलें

Edited By Punjab Kesari, Updated: 13 Mar, 2018 11:37 AM

manesar land scam

मानेसर जमीन घोटाले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला किया है। अदालत ने 24 अगस्त 2007 के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें भूपेंद्र सिंह हुड्डा की कांग्रेस सरकार ने जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया खत्म कर दी थी। उस जमीन के लिए बिल्डरों को दिए गए लाइसेंस...

दिल्ली(ब्यूरो): मानेसर जमीन घोटाले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला किया है। अदालत ने 24 अगस्त 2007 के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें भूपेंद्र सिंह हुड्डा की कांग्रेस सरकार ने जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया खत्म कर दी थी। उस जमीन के लिए बिल्डरों को दिए गए लाइसेंस रद्द हो गए हैं और जमीन वापस हरियाणा अरबन डिवेलपमेंट अथॉरिटी और एचएसआईआईडीसी को मिल गई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस मामले में अधिकार का इस्तेमाल गलत नीयत से किया गया है। सीबीआई तमाम पहलुओं और दलालों के रोल की जांच करे। हरियाणा सरकार अपनी लैंड यूज, कॉलोनी लाइसेंस आदि पॉलिसी दोबारा देखें।

200 किसान परिवारों को मुआवजा मिलने का रास्ता साफ
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से लगभग 200 किसान परिवारों को मुआवजा मिलने का रास्ता साफ हुआ है। कोर्ट ने आदेश दिया है कि 27 अगस्त 2004 से लेकर 29 जनवरी 2010 के बीच खरीदी गई जमीन हरियाणा सरकार के हुडा और एचएसआईआईडीसी के अधीन रहेगी। इस दौरान बिल्डरों को दिए गए चेंज ऑफ लैंड यूज के लाइसेंस भी हुडा और एचएसआईआईडीसी के अधीन रहेंगे। 97 पन्नों के आदेश में कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि किसी भी सूरत में किसानों से जमीन के बदले मिली कीमत में से कुछ भी वापस नहीं लिया जाएगा। किसान जमीन की कीमत से असंतुष्ट हों तो वे रेफरेंस कोर्ट जा सकते हैं। 

किसानों को बैलेंस का भुगतान करेंगी हरियाणा सरकार
कोर्ट ने कहा है कि अगर बिल्डरों ने जमीन सस्ते दाम पर खरीदी है तो किसानों को बैलेंस का भुगतान हरियाणा सरकार करेगी। अगर किसी को रेफरेंस कोर्ट द्वारा तय कीमत से ज्यादा पैसे मिले हुए हैं, तो वे उनसे वापस नहीं लिए जाएंगे। इस प्रक्रिया में निजी बिल्डरों ने किसानों से जमीन खरीदने और निर्माण पर जो खर्च किया है, उसके रिकवरी के लिए वे हरियाणा सरकार के हुडा और एचएसआईआईडीसी के पास आवेदन करें। ये दोनों एजेंसियां अपने तय नियमों के अनुसार जमीन की खरीद के रेट और निर्माण की लागत के आंकलन के हिसाब से भुगतान करेंगी। जमीन का रेट इस समय के दौरान पहली बार हुए जमीन सौदे के हिसाब से तय होगा। 

SC ने HC को मामले का निपटारा करने को कहा
इस संबंध में पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट में भी मामला चल रहा है इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट को भी दो महीने में पूरे मामले का निपटारा करने के लिए कहा है। कोर्ट ने सीबीआई को भी तेज गति से कार्यवाही करने का निर्देश दिया है। रामेश्वर नाम के व्यक्ति ने याचिका दायर की थी, जिसमें प्रदेश सरकार पर बिल्डरों के साथ मिलीभगत का आरोप लगाया था। याचिका में प्रदेश सरकार द्वारा चौधरी देवीलाल इंडस्ट्रियल टाउनशिप के लिए गांव मानेसर, नखड़ोला और नाहरपुररूपा में भूमि अधिग्रहण के नाम पर बिल्डरों को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि पूरे मामले में सरकार की भूमिका संदेह के घेरे में है। सरकार ने अपनी शक्ति का दुरुपयोग करके बिल्डरों को लाभ पहुंचाया है। 

उल्लेखनीय है कि 27 अगस्त 2004 को सरकार ने मानेसर और आस-पास तीन गांवों की 1315 एकड़ भूमि पर अधिग्रहण से संबंधित सेक्शन-4 लागू कर दिया था। सरकार ने 12.5 लाख रुपए की दर से मुआवजा निर्धारित किया। सेक्शन लागू होते ही किसान व भूमि मालिक डर गए और बिल्डर सक्रिय हो गए। इन गांवों में पहले जिस जमीन की कीमत 25 लाख रुपए एकड़ थी, वहीं 25 अगस्त 2005 को 688 एकड़ जमीन पर सेक्शन 6 लागू होते ही औसतन 40 लाख रुपए की दर से बिल्डरों ने खरीदनी शुरू कर दी। बिल्डरों को पता था कि सरकार अधिसूचना वापस लेगी। सरकार के 24 अगस्त 2007 को भूमि अधिग्रहण की अधिसूचना रद्द करने से कुछ ही दिन पहले प्रॉपर्टी की कीमत 80 लाख रुपए एकड़ से अधिक हो गई। अधिसूचना रद्द होते ही जमीन की कीमत 1.2 करोड़ प्रति एकड़ को पार कर गई। इस दौरान 22 कंपनियों ने 444 एकड़ जमीन की खरीद कर ली। अकेले आदित्य बिल्डवेल (एबीडब्ल्यू इंफ्रास्ट्रक्चर) ने 248 एकड़ जमीन की खरीद की। सेक्शन 4 से 6 के दौरान 60 रजिट्रियां हुईं। कुल 114 रजिस्ट्रियां गलत ठहराई गई हैं। इसके अलावा सरकार ने अधिसूचना की अवधि में एक दर्जन से अधिक कंपनियों को ग्रुप हाउसिंग स्कीम के तहत लाइसेंस दिया। 
200परिवारों को मुआवजा मिलने का रास्ता साफ, असंतुष्ट किसान रेफरेंस कोर्ट जा सकते हैं।


 

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