Edited By Manisha rana, Updated: 02 Dec, 2023 09:55 AM
‘मैं मरा कोन्या, जिंदा सूं’ चिल्ला-चिल्ला कर कहते हुए एक बुजुर्ग को स्वयं को जिंदा साबित करने में 13 साल का वक्त लग गया।
रेवाड़ी (महेंद्र भारती) : ‘मैं मरा कोन्या, जिंदा सूं’ चिल्ला-चिल्ला कर कहते हुए एक बुजुर्ग को स्वयं को जिंदा साबित करने में 13 साल का वक्त लग गया। वह उस समय रो पड़ा, जब सहकारिता मंत्री डॉ. बनवारी लाल ने उसे जिंदा होने का प्रमाण पत्र उसके हाथों में सौंपा। ‘करे कोई भरे कोई’ वाली कहावत गांव खेड़ा मुरार के बुजुर्ग दाताराम पर सौ फीसदी खरी उतरती है। गांव के ही एक अन्य दाताराम की मृत्यु होने पर प्रशासन ने उक्त बुजुर्ग को ही मृत घोषित कर दिया था।
जानकारी के मुताबिक गांव खेड़ा मुरार के अलग-अलग मोहल्लों में दो दाताराम रहते हैं। संयोग से दोनों के पिता का नाम भी बिहारी लाल है। एक दाताराम सेना में कार्यरत था और उसकी वहां वर्ष 2010 में मौत हो गई थी। दोनों दाताराम के पिता का नाम बिहारी लाल होने के कारण प्रशासन ने रिकॉर्ड में उक्त बुजुर्ग दाताराम को मृत घोषित कर दिया। जब वह अपनी पेंशन बनवाने के लिए कार्यालय पहुंचा तो वह यह जानकर आश्चर्यचकित रह गया, जब उसे यह बताया कि वह तो मर चुका है। बुजुर्ग ने कार्यालय अधिकारियों व कर्मचारियों को खूब समझाया कि जिस दाताराम की मौत हुई है, वह मैं नहीं सेना में कार्य करने वाला दाताराम है। मैं तो जिंदा हूं। प्रशासन द्वारा की गई गलती का सुधरवाने के लिए रेवाड़ी व बावल के सभी संबंधित कार्यालयों, जिला उपायुक्त व अन्य उच्चाधिकारियों से गुहार लगाता रहा। लेकिन उसकी कोई सुनवाई नहीं हुई। वह 13 साल तक इसी तरह भटकता रहा। आखिर में उसे उस समय राहत मिली, जब गांव खेड़ा मुरार में ही वीरवार को आयोजित ‘विकसित भारत संकल्प यात्रा-जनसंवाद’ के दौरान मंत्री डॉ. बनवारी लाल ने उसे जिंदा होना का प्रमाण पत्र जारी किया। प्रमाण पत्र मिलते ही उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
13 साल बाद पुन: जिंदा हुआ बुजुर्ग
बुजुर्ग दाताराम ने कहा कि उसे खुशी है कि प्रशासनिक रिकॉर्ड के अनुसार 13 साल बाद वह पुन: जिंदा हुआ है। उसे तत्संबंधी प्रमाण पत्र भी मिल गया है, लेकिन पेंशन बनवाने के लिए उसे अब भी भटकना पड़ेगा। मंत्री को उसकी पेंशन बनवाकर पिछले सालों की पेंशन भी दिलवानी चाहिए। प्रशासनिक गलती का खामियाजा वह क्यों भुगते।
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