सिरसा में बढ़ने की बजाय सिमट रहे हैं उद्योग, नहीं बना हौजरी कलस्टर, न ही लगा किन्नू प्रोसेसिंग प्लांट

Edited By Manisha rana, Updated: 31 Mar, 2025 07:40 AM

industries are shrinking instead of growing in sirsa

करीब 4277 वर्ग किलोमीटर में फैले और 3 लाख 90 हजार हैक्टेयर वाला सिरसा जिला पंजाब व राजस्थान के साथ सटा इलाका है। यह इलाका कॉटन काऊंटी के रूप में जाना जाता है।

सिरसा (नवदीप सेतिया) : करीब 4277 वर्ग किलोमीटर में फैले और 3 लाख 90 हजार हैक्टेयर वाला सिरसा जिला पंजाब व राजस्थान के साथ सटा इलाका है। यह इलाका कॉटन काऊंटी के रूप में जाना जाता है। सिरसा जिला में हर साल खरीफ सीजन में 2 लाख हैक्टेयर जबकि फतेहाबाद में 1 लाख हैक्टेयर कॉटन का उत्पादन होता है। इसी संसदीय क्षेत्र के हिस्से जींद के नरवाना में भी 15 हजार हैक्टेयर कॉटन का उत्पादन होता है। सिरसा पूरे प्रदेश में गेहूं उत्पादन में अव्वल है तो सिरसा और फतेहाबाद किन्नू उत्पादन में टॉप पर हैं। बावजूद इसके यहां एक भी अदद कृषि उद्योग नहीं है। कॉटन का हब है, 1 भी स्पिनिंग मिल नहीं है। प्रत्येक चुनाव में यहां पर सियासी दल उद्योग राग अलापते हैं। नेता वादा करते हैं, भूल जाते हैं। ऐसे में यह इलाका उद्योगों में पिछड़ा हुआ है। चिंता की बात यह है  कि बढ़ने की बजाय उद्योगों की संख्या सिमट रही है।

दरअसल सिरसा जिला देश का प्रमुख कपास उत्पादक जिला है। यहां पर कॉटन से संबंधित कारखानों की संभावनाएं हैं। पर हर बार सरकारों ने इसको मुद्दा तो बनाया लेकिन काम नहीं किया। इससे पहले 25 दिसम्बर 2010 को तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने सिरसा को पिछड़ा औद्योगिक जिला घोषित किया था। इसके बाद सरकार बदली तो किरदार बदल गए, लेकिन कैसेट वही पुरानी चलती रही। ऐसे में सिरसा जिला औद्योगिग लिहाज से लगातार पिछड़ रहा है। इस समय जिला में करीब 36 जिनिंग फैक्टरी हैं, जबकि यहां कोई भी स्पिनिंग मिल नहीं है। कुल मिलाकर सिरसा व फतेहाबाद में 60 जिनिंग कारखाने हैं। यहां महज 5 ही मंझोले उद्योग हैं जबकि 2091 कुटीर एवं 64 लघु उद्योग हैं। पर यहां कृषि खासकर कॉटन से संबंधित उद्योग की अच्छी संभावनाएं हैं। केंद्रीय सरकार की ओर से यहां पर हौजरी कलस्टर स्थापित करने की योजना बनाई गई, लेकिन यह सिरे नहीं चढ़ी है। 

स्वयं प्रधानमंत्री ने किया था वादा

देश के प्रधान सेवक की ओर से अक्तूबर 2014 के चुनावी समर में सिरसा को पिछड़ा औद्योगिक इलाका बताते हुए यहां पर कृषि आधारित कारखाने लगाने के वादों की झड़ी लगाई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उस समय सिरसा में चुनावी रैली को संबोधित करने आए थे। इसके बाद 11 जनवरी 2017 में केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी ने पानीपत की रैली में सिरसा में हौजरी कलस्टर बनाए जाने का ऐलान किया पर प्रधान सेवक और मैडम दोनों का वादा अभी अधूरा है। चिंतनीय पहलू यह है कि अभी तक इस आशय की फाइल ही अफसरों की टेबल से आगे नहीं सरकी है। 

यह है 45 फीसदी कॉटन का उत्पादन

दरअसल सिरसा जिला एक कृषि प्रधान क्षेत्र है। इसलिए यहां कृषि आधारित उद्योग ही कामयाब होने की संभावना है। यह इलाका कॉटन काऊंटी के रूप में पहचान रखता है। यहां के किसान पूरे राज्य की 45 फीसदी कॉटन का उत्पादन करते हैं। हर बरस यहां करीब 2 लाख हैक्टेयर में 9 लाख गांठों का उत्पादन होता है। इसी तरह से फतेहाबाद में 1 लाख हैक्टेयर में 4 लाख गांठों का उत्पादन होता है। इसके अलावा सिरसा जिला को सिट्रेस जोन भी घोषित किया गया है। सिरसा व फतेहाबाद में 20 हजार हैक्टेयर में किन्नू के बाग हैं। यहां किन्नू का एरिया प्रदेश में सबसे अधिक है और किन्नू पर आधारित यहां प्रोसेसिंग प्लांट आदि उद्योगों की भी अच्छी संभावनाएं हैं। इसके अतिरिक्त सिरसा जिला एक प्रमुख कपास व धान उत्पादक जिला है और यहां पहले से ही राइस सेलिंग आधारित उद्योग बेहतर माली स्थिति में है। इसलिए इन उद्योगों को स्थापित करने की भी यहां अच्छी खासी संभावनाएं बनती है। 

दड़बी बना मिसाल

इसके साथ ही सिरसा में खेस, दरी, हौजरी, कढ़ाईदार कपड़े, हैंडपॉवरलूम, दस्तकारी आदि उद्योगों की भी अच्छी संभावनाएं हैं। करीब 3 बरस पहले ही यहां के गांव दड़बी में केंद्रीय मंत्रालय की ओर से हौजरी यूनिट लगाई गई थी। यहां पर करीब 22 हौजरी यूनिट में स्वेटर, ट्राऊजर्स, इन्नरवियर आदि तैयार किए जाते हैं। करीब 100 लोगों को रेाजगार मिला हुआ है। पहले सिरसा के गांव संतनगर, करीवाला आदि में हैंडलूम यूनिट भी थीं। पर सरकारी प्रोत्साहन के अभाव के चलते यह बंद हो गई। अब एक बार फिर से सरकार की ओर से यहां पर हौजरी कलस्टर स्थापित करने से कॉटन उत्पादकों के साथ-साथ जिनिंग कारोबार से जुड़े लोगों को एक उम्मीद बंधी है।

अलोप हो रहे उद्योग

सरकारी एवं प्रशासकीय उपेक्षा का ही परिणाम है कि सिरसा में उद्योग बढ़ने की बजाय कम हो रहे हैं। बरस 1997 में  जिला में लघु एवं कुटीर उद्योगों की संख्या 6736 थी। अब यह संख्या 2091 से कम रह गई है। पिछला डेढ़ दशक तीव्र तरक्की वाला रहा है, पर इसी अरसे में सिरसा में 4000 के करीब उद्योग बंद हो गए हैं। सियासतदानों की उदासीनता के चलते उद्योगों को यहां प्रोत्साहन नहीं मिला और यही वजह रही कि प्रति व्यक्ति आय में कभी अव्वल रहा और गेहूं एवं कपास उत्पादन में देश के अग्रणी जिलों में शुमार सिरसा उद्योगों में अभी भी पिछड़ापन लिए हुए है। सिरसा में हर बरस करीब 2 लाख हैक्टेयर में कपास की खेती होती है। 15 हजार हैक्टेयर में किन्नू के बाग हैं। सब्जियों का भी अच्छा खासा रकबा है। इसलिए यहां पर कृषि आधारित उद्योगों की बड़ी संभावनाएं हैं। पर इन संभावनाओं में राजनीतिक इच्छाशक्ति बाधा बनी हुई है। आंकड़ों की बानगी देखें तो पूरे राज्य में 1200 से अधिक बड़े उद्योग हैं। वहीं सिरसा में एक भी नहीं है। यानी प्रदेश में इस लिहाज से सिरसा की हिस्सेदारी 1 फीसदी भी नहीं है। प्रदेश में मध्यम आकार के उद्योगों की संख्या 500 से अधिक है तो सिरसा में मात्र 5 ही है। 

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