हरियाणा: कम हुआ कोरोना का दौर, अब शुरू होगा चुनावी शोर!

Edited By Manisha rana, Updated: 23 Jun, 2021 08:49 AM

haryana the era of corona has reduced now the election noise will start

किसान आंदोलन व कोरोना संक्रमण के कारण प्रदेश की सियासी गतिविधियों पर लंबे समय से ब्रेक सी लग गई थी, मगर अब हरियाणा में सियासी हलचल एकाएक तेज हो सकती...

चंडीगढ़ (संजय अरोड़ा) : किसान आंदोलन व कोरोना संक्रमण के कारण प्रदेश की सियासी गतिविधियों पर लंबे समय से ब्रेक सी लग गई थी, मगर अब हरियाणा में सियासी हलचल एकाएक तेज हो सकती है। वर्तमान में चूंकि कोरोना संक्रमण की रफ्तार तेजी से कम हो रही है ,ऐसे में राजनीतिक हलचल तेज होने के साथ साथ हरियाणा में चुनावी दौर भी शुरू हो जाएगा । जिससे आने वाला वक्त पूरी तरह से सियासी व चुनावी रंग में रंगा नज़र आएगा। 

उल्लेखनीय है कि हरियाणा में पहली बार नगर परिषद व पालिकाओं के अध्यक्ष पद के चुनाव सीधी प्रक्रिया से होने हैं और स्थानीय निकाय के इन चुनावों के लिए प्रधान पद के आरक्षण को लेकर ड्रा मंगलवार को निकाल लिए गए हैं , जबकि 6200 पंचायतों के ड्रा की प्रक्रिया तीस जून तक पूरी की जानी है। इसके अलावा इसी साल ही ऐलनाबाद का उपचुनाव भी होना है। ऐसे में आने वाला समय हरियाणा की सियासत के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण तो होगा ही , वहीं इन चुनावों को लेकर राजनीतिक गहमागहमी भी तेज हो जाएगी । छोटी सरकार यानी पंचायती राज संस्थाओं व स्थानीय निकायों के चुनाव सितम्बर में होने की संभावना है। छोटी सरकार में अध्यक्ष पद के सीधे चुनाव पहली बार होंगे। ऐसे में यह चुनाव इस बार बड़े नेताओं के लिए भी प्रतिष्ठा का प्रश्र रहेगा और इन चुनावों में इस बार बड़े सियासी चेहरे भी चुनावी जंग में ताल ठोकते दिखाई देंगे।

मेयर चुनावों में दिखी थी बड़े नेताओं की सक्रियता
गौरतलब है कि निकाय चुनावों हेतु 45 नगरपालिकाओं और नगरपरिषद के चेयरमैन पद को लेकर ड्रा मंगलवार को निकाले गए और इन चुनावों को लेकर हरियाणा राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से अधिसूचना आने वाले समय में जारी की जा सकती है। इससे पहले इसी साल पंचकूला, अम्बाला, और सोनीपत में नगर निगम के मेयर को लेकर डायरेक्ट चुनाव हुए थे और इन चुनावों की अहमियत इस बात से भी साफ दिखाई दी कि इन चुनावों में बड़े नेताओं की सक्रिय भूमिका दिखी । अम्बाला में तो पूर्व केंद्रीय मंत्री विनोद शर्मा ने अपनी पत्नी शक्ति शर्मा को चुनावी मैदान में उतार दिया था और वे विजयी भी हुईं। अब भविष्य में होने वाले निकाय चुनावों में भी कई बड़े चेहरे खुद भी मैदान में उतर सकते हैं या अपने पारिवारिक सदस्यों को उतार सकते हैं। सियासी पर्यवेक्षकों का मानना है कि इस साल आने वाले पूरे छह महीने प्रदेश का  सियासी पारा ऊपर रहेगा। क्योंकि अगस्त माह में पंचायती चुनाव हो सकते हैं तो इसके बाद सितम्बर में 45 निकायों के चुनाव संभावित हैं । इसके बाद सितम्बर के महीने में ही ऐलनाबाद का उपचुनाव होने की उम्मीद है।

प्रतिष्ठा का प्रतीक माने जाते हैं छोटी सरकारों के चुनाव
वैसे भी छोटी सरकार अर्थात पंचायती व निकाय चुनाव प्रतिष्ठा के प्रतीक माने जाते हैं। अतीत में होने वाले स्थानीय निकाय के चुनाव में पानी की तरह पैसा बहाया जाता रहा है और रूतबे के इन चुनावों में बड़े नेताओं की भी अहम भूमिका रहती है। स्थानीय विधायक के अलावा बड़े नेताओं के लिए ये चुनाव प्रतिष्ठा का प्रश्र रहते हैं व बड़े नेता भी प्रचार करते दिखे हैं । चूंकि इस बार तो निकाय चुनाव में चेयरपर्सन का चुनाव डायरेक्ट होने के बाद बड़े नेताओं की भूमिका और अधिक बढ़ जाएगी। इसी साल के शुरूआत में हुए अम्बाला, पंचकूला व सोनीपत के चेयरमैन चुनावों में भी इसका असर नजर आया था और बड़े नेताओं के लिए भी ये चुनाव किसी इम्तिहान से कम नहीं रहे। इन चुनावों में विभिन्न दलों के बड़े नेताओं ने प्रचार किया था ।

6 हजार पंचायतों के होने हैं चुनाव
हरियाणा में 6205 सरपंचों  के अलावा 22 जिलों के 416 जिला परिषद सदस्यों, 142 ब्लॉक समितियों के 3002 सदस्यों के पिछली बार जनवरी 2016 में तीन चरणों में चुनाव हुए थे। इस साल 24 फरवरी से पहले पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव नियम के अनुसार करवाए जाने थे। चुनाव आयोग छह माह तक चुनाव को टाल सकता है और विशेष परिस्थिति में इन्हें एक साल तक के लिए टाला जा सकता है। गौरतलब है कि हरियाणा में पंचायत चुनाव खासकर गांव के सरपंच का चुनाव चौधर व रुतबे का प्रतीक माना जाता है। राजनीतिक दल भी इससे अछूते नहीं रहते हैं। बड़े गांवों में तो राजनीतिक दलों का हस्तक्षेप व्यापक पैमाने पर देखने को नजर आता है। यहां पर सरपंची के चुनाव में प्रत्येक वोटर्स की नब्ज टटोलने के साथ ही सभी तरह का शह-मात का खेल चलता है। राज्य चुनाव आयोग की ओर से भी पंचायती चुनाव तय समय पर करवाए जाने को लेकर कवायद तेज कर दी गई है। इस कड़ी में 30 जून तक सभी पंचायतों में आरक्षण के ड्रा निकाले जाने हैं और इसके बाद इन चुनावों को लेकर गांवों में सियासी हलचल पूरी तरह तेजी पकड़ लेगी । 

ऐलनाबाद उपचुनाव को लेकर भी रहेगी गहमागहमी
इसी साल ही सितम्बर के महीने तक ऐलनाबाद का उपचुनाव होने की भी पूरी संभावना है। यह सीट पिछले करीब पांच माह से खाली है। 27 जनवरी को अभय सिंह चौटाला ने अपने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया था। कोरोना के बढ़ते संक्रमण के चलते भारतीय चुनाव आयोग ने पांच मई को ऐलनाबाद विधानसभा सीट का उपचुनाव अनिश्चितकालीन के लिए स्थगित कर दिया था। अब कोरोना का असर कम हो गया है। सूत्रों के अनुसार ऐसे में चुनाव आयोग ऐलनाबाद में भी  उपचुनाव को लेकर अगस्त के अंत में अधिसूचना जारी कर सकता है। भारतीय जनता पार्टी के दूसरे कार्यकाल में यह दूसरा उपचुनाव होगा। इससे पहले नवम्बर 2020 में सोनीपत जिला के बरौदा उपचुनाव में कांग्रेस के इंदुराज नरवाल ने 10,566 वोटों से जीत हासिल की थी। ऐलनाबाद के उपचुनाव को लेकर भी हरियाणा में सियासी गहमागहमी का आलम देखने को मिलेगा। ऐलनाबाद चूंकि एक हॉट सीट है और इस सीट पर लम्बे समय तक देवी लाल परिवार के सदस्य व समर्थक ही विधायक निर्वाचित होते रहे हैं । 1977 से लेकर यहां हुए 10 चुनाव में से एक बार कांग्रेस को जीत मिली है जबकि 9 बार लोकदल-इनैलो को जीत मिली है। रोचक बात ये है कि भाजपा यहां 2014 और 2019 में मुख्य मुकाबले में रह चुकी है , जबकि कांग्रेस तीसरे स्थान पर खिसक गई थी। अब किसान आंदोलन के बाद होने जा रहा यह उपचुनाव सभी दलों के लिए बड़ी चुनौती भरा रहने वाला है।

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