हरियाणा सरकार ने मांगा उत्तराखंड से सहयोग, टोंस नदी पर मिलकर होगा काम...CM सैनी ने उतरखण्ड CM को लिखा पत्र

Edited By Isha, Updated: 15 Jun, 2025 12:23 PM

haryana government sought cooperation from uttarakhand

आदिकाल से ही बंदरपूँछ ग्लेशियर से निकली टौंस नदी प्राचीन सरस्वती नदी प्रणाली का हिस्सा रही है ।अब सरस्वती बोर्ड हरियाणा उत्तराखण्ड सरकार से मिलकर टोंस नदी के भौगोलिक,आर्कियोलॉजिकल

चंडीगढ़: आदिकाल से ही बंदरपूँछ ग्लेशियर से निकली टौंस नदी प्राचीन सरस्वती नदी प्रणाली का हिस्सा रही है ।अब सरस्वती बोर्ड हरियाणा उत्तराखण्ड सरकार से मिलकर टोंस नदी के भौगोलिक,आर्कियोलॉजिकल ,अभिलेख व सांस्कृतिक जानकारी लेने के लिए कार्य आरंभ किया है जिसके बोर्ड के चेयरमैन व मुख्यमंत्री हरियाणा नायब सैनी ने एक पत्र उतरखण्ड सीएम पुष्कर सिंह धामी को लिखकर उपरोक्त जानकारी माँगी हैं जिसको लेकर सरस्वती बोर्ड के डिप्टी चेयरमैन ने टोंस नदी के क्षेत्र का दौरा आरंभ किया है। 

जिसकी जानकारी देते हुए डिप्टी चेयरमैन धूमन सिंह किरमच ने बताया कि हम अभी देहरादून के नज़दीक डाकपथर बैराज जहां टोंस व यमुना नदी का मिलन है वहाँ पर पहुँचे है जहां से रेवेनू रिकॉर्ड से लेकर अन्य जानकारिय भी प्राप्त की जा रही है जिसमें कुछ भूवैज्ञानिकों, भू-आकृति विज्ञानियों और इतिहासकारों-खासकर उत्तर भारत में पैलियोचैनल का अध्ययन करने वालों के बीच यह विषय गहनता से चर्चित है की टोंस ही प्राचीन सरस्वती नदी है।

धूमन अनुसार ऋग्वेद में विस्तृत रूप से वर्णित एक पौराणिक नदी सरस्वती के बारे में व्यापक रूप से माना जाता है कि यह हड़प्पा काल के अंत तक सूख गई थी लेकिन इसकी कोई पुख़्ता जानकारी किसी के पास नहीं लेकिन कई बहु-विषयक अध्ययनों-जिनमें उपग्रह इमेजरी, भू-आकृति विज्ञान और प्राचीन साहित्य शामिल हैं-से पता चलता है कि बंदरपूँछ ग्लेशियर से निकली टोंस नदी सरस्वती नदी की प्रमुख सहायक नदियों में से एक है यहाँ तक कि इसके ऊपरी ग्लेशियर वाला हिस्सा भी सरस्वती नदी का क्षेत्र ही है।

धूमन सिंह ने बताया कि जियोलाजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया व अन्य भौगोलिक जनकारियो के अनुसार सतलुज नदी 10 हज़ार वर्ष पूर्व तक व यमुना नदी 16 हज़ार पूर्व तक सरस्वती नदी का हिस्सा थी और ग्लेशियर से निकली पबर,रूपीन सुपिन व टोंस नदिया सभी सरस्वती नदी सिस्टम का पार्ट रही हैं और आज भी ये सभी नदीया सरस्वती नदी के क्षेत्र में ही बह रही है। 

सरस्वती बोर्ड व बोर्ड के साथ जुड़ी सभी बड़ी एजेंसी जिनमे जीएसईआई,इसरो आदि जैसी प्रामाणिकता से कहती आयी है होलोसिन काल अनुसार माना गया कि सरस्वती नदी का जल विभिन्न नदीयो में बंट गया और वह आज भी जारी है इसी आधार पर अब सरस्वती बोर्ड इन सभी नदीयो को जोड़ कर सरस्वती नदी को रिवाइव करने में लगा है और उसने अभी तक हरियाणा में कामयाबी मिली है जिसने अभी तक हिमाचल के बॉर्डर आदिबद्री से राजस्थान बॉर्डर पर स्थापित सिरसा ओटू हैड तक क़रीब 400 किलोमीटर में विभिन्न नदियों के साथ मिलकर पानी चलाया है जो अभी बरसाती सीजन में ही संभव हो पाया है 

धूमन सिंह ने देहरादून में गैलेशियर पर रिसर्च करने वाले वाडिया इंस्टिट्यूट के अधिकारीयौ से भी मुलाक़ात की जिनके आंकलन में , सामान्य अवलोकन कर्ताओं के अनुसार व जल विज्ञान संबंधी परिकल्पना व शोधकर्ताओं का सुझाव है कि टोन्स नदी हिमालय से उत्पन्न हुई और पश्चिम की ओर बहकर संभवतः प्राचीन सरस्वती प्रणाली में विलीन हो गई व भू-आकृति विज्ञान संबंधी साक्ष्य: उपग्रह चित्रों और पुरा-जल निकासी मानचित्रण से टोंस के वर्तमान मार्ग से मिलते-जुलते पुराने चैनलों की पहचान हुई है।
 

आम धारणा यह है कि प्राचीन सरस्वती नदी का स्रोत हिमालय के हिमनद जल में रहा होगा। सिद्धांत के अनुसार टोंस नदी कुछ हज़ार साल पहले हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के पास शिवालिक पर्वतमाला में एक टेक्टोनिक घटना के बाद यमुना की सहायक नदी बन गई जो पहले सरस्वती सिस्टम का पार्ट थी 
लेकिन अब टोंस नदी उत्तराखंड में यमुना नदी की एक प्रमुख सहायक नदी है, जबकि सरस्वती नदी वैदिक ग्रंथों में वर्णित एक पौराणिक नदी है। भूवैज्ञानिक साक्ष्य बताते हैं कि वैदिक सरस्वती अतीत में यमुना/टोंस और सतलुज जैसी हिमालयी नदियों की मुख्य नदी थी। 
 


टोंस हिमालय के ग्लेशियर से निकलती है, विशेष रूप से उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र से यह उत्तराखंड से होकर फिर यमुना नदी में मिल जाती है।और अब टोंस यमुना नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है और हो सकता है कि यह प्राचीन सरस्वती नदी हो, जिसका उल्लेख वैदिक ग्रंथों में एक महत्वपूर्ण और शक्तिशाली नदी के रूप में किया गया है और पंजाब और हरियाणा में घग्गर-हकरा नदी को अक्सर प्राचीन सरस्वती नदी से जोड़ा जाता है अब सरस्वती बोर्ड इसी कार्य पर लगा है कि सरस्वती नदी का यह क्षेत्र पुनः प्रवाहित कर उत्राखण्ड ग्लेशियर से लेकर हिमाचल,हरियाणा,राजस्थान व गुजरात के रण ऑफ़ कच्छ तक सरस्वती नदी सिस्टम को जोड़ कर पानी चलाया जाये।

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