आदमपुर में गेहूं खरीद में हो रहा गोलमाल, आढ़ती को लग रहा चूना तो अधिकारी की बल्ले-बल्ले

Edited By Rakhi Yadav, Updated: 30 Apr, 2018 08:31 AM

golmaal in wheat procurement in adampur

आदमपुर में गेहूं की खरीद में काफी गोलमाल चल रहा है। कुछ लोग अधिकारियों से सांठ गांठ करके जहां आढ़ती को चूना लगा रहे है वहीं अधिकारी चांदी कूट रहे है। बम्पर फसल पैदा होने से जहां किसानों के चेहरे खिले हुए हैं तो वहीं आढ़तियों .....

मंडी आदमपुर(भारद्वाज): आदमपुर में गेहूं की खरीद में काफी गोलमाल चल रहा है। कुछ लोग अधिकारियों से सांठ गांठ करके जहां आढ़ती को चूना लगा रहे है वहीं अधिकारी चांदी कूट रहे है। बम्पर फसल पैदा होने से जहां किसानों के चेहरे खिले हुए हैं तो वहीं आढ़तियों के चेहरों पर मायूसी साफ झलक रही है।

इसका एक ही कारण है उनको गेहूं की फसल का पूरा दाम नहीं मिल रहा है। कुछ बड़े व्यापारी, ठेकेदार व अधिकारी मिलकर इस खेल को खेल रहे हैं इससे जहां आढ़ती को प्रति क्विंटल 40 रुपए की चपत लग रही है। वहीं बड़े व्यापारियों व अधिकारियों के वारे-न्यारे हो रहे है। एक अनुमान के अनुसार करीबन डेढ़ करोड़ रुपए का खेल पूरे सीजन में खेला जा रहा जिसमें बड़े व्यापारी, विभाग के कर्मचारियों से लेकर जिले व ऊंचे अधिकारी तक शामिल बताए जा रहे हैं।

ऐसे चलता है खेल
मंडी में गेहूं की बढ़ती आवक के कारण अनाजमंडी में गेहूं डालने की जगह नहीं रहती। जिसके कारण बड़े व्यापारी किसी तरह फैक्टरी व अन्य जगह में गेहूं डालने के लिए किराए पर ले लेता है। जब गेहूं उठान नहीं हो पाता तो छोटे आढ़तियों को गेहूं में घटती का डर सताने लगता है एवं जब तक गेहूं का उठान नहीं हो जाता तब तक उनकी पेमैंट भी नहीं मिल पाती है। ऐसे में वे बड़े व्यापारी छोटे आढ़तियों के पास जाते हैं और उनकी फैक्टरी व जगह में गेहूं डालने के लिए कहते हैं। बड़े व्यापारी छोटे आढ़तियों को नकद भुगतान करने का भी प्रलोभन देते हैं, इस प्रकार उन आढ़तियों को मजबूर होकर 40 रुपए कम कीमत में उन लोगों के गेहूं डालनी पड़ती है।

इसके अलावा भी इन लोगों को कैसी भी गेहूं हो बेची जा सकती है। उसकी कोई क्वालिटी नहीं देखी जाती है। एक खास बात यह भी है कि इन फैक्टरियों में आदमपुर के आस-पास के किसानों की नहीं दूसरे राज्यों से भी गेहूं के ट्रक भरकर रातों रात आते हैं। इसके अलावा भी इन दड़ों में घटिया किस्म की गेहूं भी डाली जाती है जो बैगों में भरकर सीधे गोदामों में जाती है।

ऐसे करते कमाई
सरकार ने किसान के लिए गेहूं का सरकारी दाम 1735 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया हुआ है। इसके बाद आढ़ती को 1735 रुपए भाव के अलावा अढ़ाई प्रतिशत प्रति क्विंटल की दर से 43 रुपए और 17 रुपए मजदूरी मिलाकर 1795 रुपए के हिसाब से भुगतान करता है लेकिन गेहूं का उठान न होने से मजबूर होकर व्यापारियों को जो गेहूं के फैक्टरियों में दड़े बना रखे हैं बेचनी पड़ती है वह भी 1755 रुपए में। 

इस प्रकार छोटे आढ़ती को 40 रुपए का सीधे-सीधे नुक्सान होता है। बड़े व्यापारी उन छोटे आढ़ती की गेहूं पर एक किलोग्राम कांटा काटते हैं जो 17.35 रुपए बनता है इस प्रकार उन बड़े व्यापारियों को 1795+ 17.35= 1812.35 में गेहूं पड़ता है और आढ़ती को देते है 1755 रुपए का भाव। इस प्रकार 57 रुपए प्रति क्विंटल बड़े व्यापारी को बचता है। सूत्र बताते हैं कि इस 57 रुपए में से 16 रुपए व्यापारी को मजदूरी लग जाती है और मुनाफा बचता है 41 रुपए का। इस 41 रुपए में से 20 रुपए विभाग के अधिकारियों को और 21 रुपए बड़े व्यापारी या दड़े लगाने वाले को बचता है।

  

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