दिल्ली जाने की जिद्द पर अड़े किसान तो सरकार भी हुई सख्त, हरियाणा में खुफिया तंत्र हुआ अलर्ट

Edited By Shivam, Updated: 25 Nov, 2020 11:50 PM

farmers adamant to go to delhi government too strict

केंद्र सरकार की ओर से कृषि के संदर्भ में बनाए गए तीन कानूनों को लेकर निरंतर हरियाणा में किसानों का आंदोलन तेज होता जा रहा है। पंजाब और हरियाणा की जत्थे बंदियों द्वारा बुधवार को दिल्ली की तरफ कूच करने की रणनीति के बाद जहां प्रदेश सरकार का खुफिया...

चंडीगढ़ (संजय अरोड़ा): केंद्र सरकार की ओर से कृषि के संदर्भ में बनाए गए तीन कानूनों को लेकर निरंतर हरियाणा में किसानों का आंदोलन तेज होता जा रहा है। पंजाब और हरियाणा की जत्थे बंदियों द्वारा बुधवार को दिल्ली की तरफ कूच करने की रणनीति के बाद जहां प्रदेश सरकार का खुफिया तंत्र पूरी तरह अलर्ट हो गया तो वहीं हरियाणा सरकार भी कानून व्यवस्था की स्थिति बनाए रखने के लिए पूरी तरह संजीदा व सख्त नजर आ रही है। 

खास बात यह है कि तीन कृषि बिलों को लेकर हरियाणा के किसान लगातार आंदोलन कर रहे हैं और इन कानूनों को काला कानून बताते हुए इन्हें वापस लेने की जिद्द पर अड़े हैं तो वहीं सरकार भी अब स्थिति से निपटने के लिए सख्त हो गई है। आज हरियाणा के अंबाला कुरुक्षेत्र, कैथल सहित अनेक इलाकों में किसानों ने हाईवे मार्ग अवरुद्ध कर दिए। अंबाला में तो किसानों ने बैरिकेड तोड़ दिए और दिल्ली की तरफ बढ़ गए जबकि सिरसा में किसानों ने नेशनल हाईवे 9 पर धरना दे दिया। इस दौरान पुलिस की ओर से बैरिकेड लगाकर रास्ता बंद कर दिया गया। 

गौरतलब है कि इसी साल 5 जून को केंद्र सरकार की ओर से तीन नए कृषि अध्यादेश लाए गए थे जिन्हें बाद में कानून का रूप दे दिया गया, जिन्हें किसानों ने कृषि के विरुद्ध मानते हुए पूरे किसान वर्ग पर केंद्र सरकार का कुठाराघात माना। यही वजह है कि पिछले करीब तीन माह से हरियाणा के किसान आंदोलन कर रहे हैं। 10 सितंबर को हरियाणा की किसानों ने पिपली में किसान रैली की उस दौरान किसानों पर लाठीचार्ज भी हुआ। 

इसके बाद 20 सितंबर को हरियाणा के किसानों ने तमाम जिलों में हाईवे पर जाम लगाया। विपक्ष भी किसानों के आंदोलन के साथ खड़ा नजर आया और 21 सितंबर को कांग्रेस ने सभी जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन किया। 6 अक्तूबर को सिरसा में हरियाणा के किसान इकट्ठे हुए और इस दौरान उप मुख्यमंत्री की कोठी का घेराव करने जा रहे किसानों पर आंसू गैस के गोले दागे गए। 7 अक्तूबर को सिरसा में 93 किसानों को हिरासत में लिया गया। इसी तरह से इनैलो ने भी सभी जिलों में प्रदर्शन किए और यह पहला मौका था जब कृषि बिलों के खिलाफ विभिन्न किसान संगठन एकजुट होकर एक मंच पर आ गए हैं। 

किसानों के दिल्ली कूच से पहले ही हरकत में आई पुलिस
उल्लेखनीय है कि किसान आंदोलन को गति देने के लिए किसान संगठनों की ओर से 26 व 27 नवंबर को दिल्ली में पड़ाव डालने का ऐलान किया हुआ है और इसी कड़ी में बुधवार को हरियाणा के विभिन्न जिलों में किसान दिल्ली की तरफ कूच करने के लिए बढऩे लगे किसानों के दिल्ली कूच से पहले ही सरकार की ओर से भी सख्त कदम उठाने शुरू कर दिए गए। सरकार की ओर से दिए गए आदेशों के बाद हरियाणा भर से 50 से अधिक किसानों को हिरासत में लिया गया। पुलिस द्वारा हरियाणा के विभिन्न सीमावर्ती मार्गों पर बैरिकेड लगाने के अलावा काफी संख्या में पत्थर लगाकर मार्ग अवरुद्ध कर दिए गए। 

हरियाणा व पंजाब में हुई तीव्र प्रतिक्रिया
पंजाब व हरियाणा दोनों ही कृषि प्रधान राज्य कहलाते हैं और जैसे ही केंद्र सरकार द्वारा कृषि से संबंधित नए तीन बिल लाए गए तो इन बिलों को लेकर किसानों के साथ साथ किसान संगठनों की ओर से सबसे तीव्र प्रतिक्रिया इन दोनों राज्यों से ही शुरू हुई और धीरे धीरे विभिन्न राजनीतिक दलों ने भी किसान के रूप में एक बड़े वोट बैंक की सहानुभूति हासिल करने के लिए किसानों का समर्थन करना शुरू कर दिया। यहां तक कि पंजाब में तो शिरोमणि अकाली दल ने भाजपा से अपने बरसों पुराने सियासी गठबंधन को समाप्त कर दिया वहीं शिअद सांसद एवं केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा तक दे दिया। हरियाणा में भी सभी गैर भाजपा दलों ने किसानों के इस आंदोलन को अपना खुला समर्थन दिया। 

गेहूं व कपास के बड़े उत्पादक राज्य हैं हरियाणा व पंजाब 
हरियाणा व पंजाब दोनों राज्यों में जहां खरीद की प्रणाली एक जैसी है, वहीं दोनों प्रदेशों में खेती का पैटर्न भी एक जैसा ही है। दोनों ही राज्य देश के प्रमुख गेहूं, धान, कॉटन व सरसों उत्पादक प्रदेश हैं। पंजाब देश का सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक राज्य है। पंजाब में हर वर्ष रबी सीजन में 44.63 लाख हैक्टेयर में गेहूं की काश्त होती है तो खरीफ सीजन में करीब 30 लाख हैक्टेयर में धान एवं 6 लाख हैक्टेयर में कॉटन की खेती की जाती है। काफी रकबे में सब्जियों की खेती व बागवानी भी होती है।

इसी तरह से हरियाणा में रबी सीजन में यहां करीब 25 लाख हैक्टेयर में गेहूं, सवा 6 लाख हैक्टेयर में सरसों के अलावा कुछ रकबे पर जौं व चने की खेती की जाती है। खरीफ सीजन में करीब 12 लाख हैक्टेयर में धान, साढ़े 6 लाख हैक्टेयर में कॉटन, साढ़े 5 लाख हैक्टेयर में बाजरा एवं 70 हजार हैक्टेयर में ज्वार की खेती की जाती है। इसके अलावा करीब 60 हजार हैक्टेयर में बाग हैं। 4 लाख हैक्टेयर में सब्जियों की काश्त की जाती है। यही वजह है कि इन दोनों राज्यों के किसानों ने केंद्र सरकार के इन बिलों को किसानों के खिलाफ मानते हुए इन्हें वापस लेने की मांग को लेकर आंदोलन शुरू किया हुआ है।

सरकार के कफन में कील साबित होगी किसानों की गिरफ्तारी: गर्ग
अखिल भारतीय व्यापार मंडल के राष्ट्रीय महासचिव व हरियाणा प्रदेश व्यापार मंडल के प्रांतीय अध्यक्ष बजरंग गर्ग ने कहा कि तीन कृषि संबंधित काले कानून के विरोध में दिल्ली जाने वाले किसान नेताओं को रात के अंधेरे में घरों से बिना किसी वजह गिरफ्तार करना  कायरता पूर्वक कदम है, जिसकी जितनी भी निंदा की जाए कम है जबकि कृषि संबंधित काले कानून का विरोध कर रहे किसान, आढ़ती व मजदूर की आवाज दबाने में केंद्र व प्रदेश सरकार लगी हुई है। ऐसे में सरकार द्वारा रात के अंधेरे में किसान नेताओं की गिरफ्तारी करना कहां का इंसाफ है।

गर्ग ने कहा कि सरकार लाठी व डंडों के जोर से किसान व आढ़तियों की आवाज को दबाना चाहती है मगर देश व प्रदेश का किसान, आढ़ती व मजदूर डंडों के जोर से व गिरफ्तारियों से डरने वाला नहीं। राष्ट्रीय महासचिव बजरंग गर्ग ने कहा कि किसानों द्वारा फसल के उचित दाम मांगना कोई अपराध है क्या, क्यों बार-बार सरकार किसान व व्यापारियों पर जुल्म कर रही है। पिछले दिनों पीपली व सिरसा में किसानों पर लाठीचार्ज करना व किसानों पर झूठे केस बनाना सरकार की विफलता का जीता जागता सबूत है, जिसे किसी कीमत पर सहन नहीं किया जाएगा। सरकार को तुरंत प्रभाव से गिरफ्तार किए गए किसान नेताओं को रिहा करना चाहिए।

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