हनी ट्रैप में फंसा फर्जी पुलिस अधिकारी बन ठगे 36 लाख, HC का जमानत से इंकार

Edited By Manisha rana, Updated: 30 Mar, 2025 08:48 AM

caught in honey trap duped of rs 36 lakh by posing as fake police officer

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने साइबर धोखाधड़ी के एक मामले में आरोपी व्यक्ति को अग्रिम जमानत देने से इंकार कर दिया।

चंडीगढ़ (सुशील गम्भीर) : पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने साइबर धोखाधड़ी के एक मामले में आरोपी व्यक्ति को अग्रिम जमानत देने से इंकार कर दिया। इस मामले में एक व्यक्ति ने खुद की दिल्ली अपराध शाखा का पुलिस अधिकारी बताकर शिकायतकर्ता से कथित तौर पर 36 लाख रुपए से ज्यादा ठग लिए थे। जस्टिस मंजरी नेहरू कौल ने अपने आदेश में कहा कि वित्तीय जबरन वसूली और अधिकारियों का रूप धारण कर ठगी करने वाले अपराध जनता के विश्वास के लिए एक गंभीर खतरा पैदा करते हैं। अपराध की जटिलता और वित्तीय लेनदेन में याचिकाकर्ता की कथित भूमिका को देखते हुए, पूरी साजिश का पता लगाने, अन्य अपराधियों की पहचान करने के लिए हिरासत में पूछताछ जरूरी है। हाईकोर्ट आरोपी तबरेज की गिरफ्तारी पूर्व जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही था।

भिवानी में दर्ज किया था केस 

यह मामला साइबर क्राइम पुलिस स्टेशन भिवानी में दर्ज किया गया है। एफ. आई. आर. के अनुसार एक बुजुर्ग व्यक्ति धोखे से एक सुनियोजित जबरन वसूली में फंस गए थे। शिकायतकर्ता को कथित तौर पर एक अज्ञात महिला से एक वीडियो कॉल आया, जिसने उसे अनुचित कार्य में शामिल होने के लिए प्रेरित किया और साथ ही साथ इसे रिकॉर्ड भी किया। आरोप है कि बाद में शिकायतकर्ता को एक व्यक्ति से वीडियो कॉल आया, जिसने खुद को दिल्ली अपराध शाखा का अधिकारी बताते हुए बताया कि यू-ट्यूब पर उससे जुड़ा एक अश्लील वीडियो सामने आया है और कानूनी कार्रवाई की जाएगी। शिकायतकर्ता को विभिन्न बैंक खातों में कई लेन-देन में बड़ी रकम ट्रांसफर करने के लिए मजबूर किया गया था। अलग-अलग बहानों के तहत नई रकम की मांग की जाती थी। शिकायतकर्ता को कथित रूप से लगभग 36 लाख 84 हजार 300 रुपए की धोखाधड़ी का शिकार होना पड़ा। जांच से पता चला कि याचिकाकर्ता सहित कई लोग इस गिरोह में शामिल थे, जो डिजिटल और वित्तीय हेरफेर के माध्यम से पीड़ितों से पैसा ऐंठ रहे थे।

डर और सामाजिक कमजोरियों का उठा रहे फायदा

जस्टिस कौल ने अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप गंभीर हैं। आरोपी व्यक्तियों द्वारा अपनाई गई कार्यप्रणाली से पता चलता है कि वे डर और सामाजिक कमजोरियों का फायदा उठाकर अनजान लोगों को शिकार बना रहे थे। आरोपी के वकील का यह तर्क कि याचिकाकर्ता का नाम एफ. आई. आर. में नहीं है, अपने आप में उसे अग्रिम जमानत की असाधारण रियायत का हकदार नहीं बनाता है।

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