बंधुआ मजदूरी के दलदल से निकला 15 वर्षीय बालक, काम करते आई चोट तो मालिक ने सुनसान जगह पर छोड़ा

Edited By Imran, Updated: 21 Aug, 2025 01:53 PM

15 year old boy rescued from bonded labour

हरियाणा मानव अधिकार आयोग ने एक राष्ट्रीय समाचार पत्र में प्रकाशित चिंताजनक रिपोर्ट का स्वतः संज्ञान लेते हुए जींद और नूंह जिलों से जुड़े 15 वर्षीय नाबालिग के बंधुआ मजदूरी एवं अमानवीय शोषण के मामले पर गंभीर चिंता व्यक्त की है।

चंडीगढ़ (चन्द्र शेखर धरणी ): हरियाणा मानव अधिकार आयोग ने एक राष्ट्रीय समाचार पत्र में प्रकाशित चिंताजनक रिपोर्ट का स्वतः संज्ञान लेते हुए जींद और नूंह जिलों से जुड़े 15 वर्षीय नाबालिग के बंधुआ मजदूरी एवं अमानवीय शोषण के मामले पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। 

रिपोर्ट के अनुसार, यह बालक बिहार के किशनगंज जिले का निवासी है, जिसे जिला जींद में उसके नियोक्ता द्वारा रोजगार का झूठा प्रलोभन देकर बंधुआ मजदूरी के लिए फंसाया गया। कहा गया है कि यह बच्चा, बहादुरगढ़ रेलवे स्टेशन पर अपने साथियों से बिछड़ने के बाद, एक अज्ञात व्यक्ति के संपर्क में आया जिसने उसे एक भैंस डेयरी में ₹10,000 मासिक वेतन पर काम का लालच दिया। परंतु, वैध रोजगार देने के बजाय, उक्त नाबालिग को दो महीने तक निरंतर जबरन मजदूरी और शारीरिक उत्पीड़न सहना पड़ा। 

स्थिति तब और खराब हो गई जब चारा काटते समय उसे गंभीर चोट लग गई, जिसके बाद नियोक्ता ने उसे बिना किसी सहायता या मदद के एक सुनसान जगह पर छोड़ दिया। किसी तरह, घायल बच्चा नूंह पहुंचा, जहां एक शिक्षक ने उसकी मदद की और उसे स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र ले गया तथा पुलिस को सूचना दी। 

 

अध्यक्ष श्री न्यायमूर्ति ललित बत्रा और सदस्यों श्री कुलदीप जैन एवं श्री दीप भाटिया को मिलकर बने पूर्ण आयोग इस बच्चे की स्थिति को अत्यंत गंभीरता और गहरी चिंता से देखता है। प्रस्तुत तथ्यों से न केवल शारीरिक क्षति और मानवीय गरिमा का हनन स्पष्ट होता है, बल्कि उन सुरक्षा तंत्रों की पूरी तरह विफलता भी सामने आती है, जो ऐसे शोषण से बच्चों की रक्षा करने के लिए बने हैं। बच्चे का कई दिनों तक बिना भोजन, पानी या चिकित्सकीय सहायता के जीवित रहना और अंततः एक संवेदनशील शिक्षक द्वारा बचाया जाना, पीड़ित की असहायता और उसकी अद्भुत दृढ़ता दोनों को दर्शाता है। 

 

न्यायमूर्ति ललित बत्रा की अध्यक्षता वाले पूर्ण आयोग ने यह नोट किया है कि नाबालिग के साथ किया गया ऐसा व्यवहार अंतर्राष्ट्रीय कानूनी दायित्वों का प्रत्यक्ष उल्लंघन है, विशेषकर संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार अभिसमय के अनुच्छेद 32 का, जो राज्य पक्षों को बच्चों को आर्थिक शोषण और ऐसे कार्यों से बचाने का निर्देश देता है, जो खतरनाक हों, उनकी शिक्षा में बाधा डालते हों या उनके स्वास्थ्य या विकास के लिए हानिकारक हों। उक्त कृत्य विभिन्न घरेलू कानूनों के भी prima facie उल्लंघन को दर्शाते हैं, जिनमें बंधुआ मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 तथा बाल एवं किशोर श्रम (प्रतिषेध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986 शामिल हैं। 

 

इसके अतिरिक्त, हरियाणा मानव अधिकार आयोग यह भी देखता है कि यदि यह आरोप सत्य पाए जाते हैं तो यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 और 23 के तहत प्रदत्त मौलिक मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन होगा, जो गरिमा के साथ जीवन जीने के अधिकार की गारंटी देते हैं तथा मानव तस्करी और जबरन मजदूरी को निषिद्ध करते हैं। इस घटना का समय रहते पता न लगना और उसे रोकने में विफलता, खासकर संवेदनशील प्रवासन गलियारों में निगरानी और बचाव तंत्र की पर्याप्तता पर गंभीर प्रश्न उठाती है। 

 

आरोपों की गंभीरता और पीड़ित की संवेदनशील स्थिति को देखते हुए अध्यक्ष श्री न्यायमूर्ति ललित बत्रा और दोनों सदस्यों श्री कुलदीप जैन एवं श्री दीप भाटिया का संयुक्त मत है कि यह मामला तात्कालिक और व्यापक जांच की मांग करता है। इसमें संबंधित व्यक्तियों की जवाबदेही सुनिश्चित करना तथा पीड़ित को उचित चिकित्सकीय, मनोवैज्ञानिक और पुनर्वास सहायता उपलब्ध 

कराना अनिवार्य है।

 

प्रोटोकॉल, सूचना एवं जन संपर्क अधिकारी डॉ. पुनीत अरोड़ा ने जानकारी दी कि पूर्ण आयोग के निर्देशों में मुख्य बिंदु सम्मिलत है:

 

  • 1.आरोपियों की पहचान, गिरफ्तारी और डेयरी प्रतिष्ठान में बंधुआ मजदूरी प्रथाओं की जांच।
  • 2. घायल बालक की संपूर्ण चिकित्सीय रिपोर्ट और पुनर्वास योजना।
  • 3. श्रम कानूनों के उल्लंघन की विस्तृत जांच।

 

इस मामले में अगली सुनवाई 4 नवंबर 2025 को होगी।

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