Edited By Gaurav Tiwari, Updated: 03 May, 2025 07:28 PM

आज की अनिश्चित दुनिया में एक बात बिल्कुल स्पष्ट है भारत को अपनी सुरक्षा स्वयं सुनिश्चित करनी होगी, अपने ही तरीक़े से। और यही आत्मनिर्भरता की असली भावना है। यह केवल एक नारा नहीं, बल्कि एक संकल्प है, एक मजबूत, सुरक्षित और आत्मनिर्भर भारत की ओर एक...
गुड़गांव ब्यूरो : आज की अनिश्चित दुनिया में एक बात बिल्कुल स्पष्ट है भारत को अपनी सुरक्षा स्वयं सुनिश्चित करनी होगी, अपने ही तरीक़े से। और यही आत्मनिर्भरता की असली भावना है। यह केवल एक नारा नहीं, बल्कि एक संकल्प है, एक मजबूत, सुरक्षित और आत्मनिर्भर भारत की ओर एक सशक्त यात्रा।
साहिल लूथरा, संस्थापक एवं प्रबंध निदेशक, विजयंत त्रिशूल डिफेंस सॉल्यूशंस प्रा. लि. ने बताया कि दशकों तक हमने रक्षा आवश्यकताओं के लिए बाहरी देशों पर निर्भरता रखी—चाहे वे लड़ाकू विमान हों, पनडुब्बियां, हथियार या फिर छोटे-छोटे स्पेयर पार्ट्स। लेकिन हर बार इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी—देरी, निर्भरता और कई बार ऐसे समझौते जो हमारे सुरक्षा बलों को संकट के समय इंतज़ार करने पर विवश कर देते थे। आज परिदृश्य बदल रहा है। अंतरराष्ट्रीय तनाव बढ़ रहे हैं, तकनीक तीव्र गति से बदल रही है, और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं पर संकट के समय भरोसा करना जोखिमपूर्ण हो सकता है। अब भारत को रणनीतिक रूप से आत्मनिर्भर बनना ही होगा। यह कोई विकल्प नहीं, समय की आवश्यकता बन चुका है।
इसीलिए भारत सरकार द्वारा आत्मनिर्भर भारत की दिशा में उठाए गए कदम अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। यह केवल खरीददारी की नीति नहीं, बल्कि एक नई सोच का प्रतीक है। अब भारत न केवल अपनी सीमाओं की रक्षा करेगा, बल्कि वह शक्ति और तकनीक भी स्वयं विकसित करेगा जिसकी उसे आवश्यकता है। डिफेंस एक्विज़िशन प्रोसीजर (DAP) 2020, इंपोर्ट बैन लिस्ट, और ‘मेक इन इंडिया’ जैसी पहल अब असर दिखा रही हैं। iDEX जैसे कार्यक्रमों ने स्टार्टअप्स और एमएसएमई को इस क्षेत्र में भाग लेने का अवसर प्रदान किया है, जहां पहले केवल कुछ बड़े नामों का वर्चस्व था।
आज देश की निजी कंपनियां आत्मनिर्भरता की इस मुहिम में सक्रिय भागीदारी निभा रही हैं—आधुनिक हथियार, ड्रोन, संचार प्रणालियाँ और युद्ध क्षेत्र की तकनीक को देश में ही विकसित कर रही हैं। यह बदलाव न केवल लागत में कटौती ला रहा है, बल्कि भारतीय प्रतिभा और नवाचार को एक नई पहचान भी दे रहा है। रक्षा ताकत की असली रीढ़ वे लोग हैं जो इस तकनीक को बनाते हैं—इंजीनियर, वैज्ञानिक, वेल्डर, डिज़ाइनर और टेक्नोलॉजिस्ट। उनका समर्पण हर उत्पाद, हर परीक्षण में झलकता है और वही हमारी सेनाओं की शक्ति में वृद्धि करता है।
निस्संदेह, चुनौतियाँ अब भी हैं—तकनीकी हस्तांतरण की बाधाएं, सीमित अनुसंधान एवं विकास संसाधन, और कुछ विदेशी पुर्जों पर निर्भरता। लेकिन हम इन अवरोधों को नीतियों, सहयोग और दूरदर्शिता से पार कर रहे हैं। साथ ही, भारत अब रक्षा उपकरणों का निर्यातक भी बन रहा है—मित्र देशों को सुरक्षा समाधान प्रदान कर रहा है, क्षेत्रीय स्थिरता में योगदान दे रहा है और वैश्विक मंचों पर अपनी भूमिका को सुदृढ़ कर रहा है।
आत्मनिर्भरता केवल रक्षा उपकरणों की बात नहीं है, यह राष्ट्रीय सम्मान और आत्मविश्वास का विषय है। यह उस संकल्प का नाम है जिसमें भारत संकट के समय किसी का इंतज़ार नहीं करता, बल्कि स्वयं नेतृत्व करता है। यह गर्व से कहता है: हम जो आवश्यक है, स्वयं बना सकते हैं—और जिसकी रक्षा करनी है, उसकी सुरक्षा स्वयं सुनिश्चित कर सकते हैं। यात्रा लंबी है, पर दिशा स्पष्ट है। इरादे दृढ़ हैं। भारत तैयार है—अपने ज्ञान से, अपने लोगों की शक्ति से, और इस अडिग विश्वास से कि असली ताकत हमारे भीतर है।