जींद की हार से सबक नहीं ले पाई कांग्रेस

Edited By kamal, Updated: 25 Apr, 2019 11:26 AM

congress does not take lessons from jind s defeat

कांग्रेस पार्टी के प्रति वैश्य समाज के लोगों में भारी रोष देखने को मिल रहा है। इसका कारण कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट से वैश्य...

फरीदाबाद(महावीर): कांग्रेस पार्टी के प्रति वैश्य समाज के लोगों में भारी रोष देखने को मिल रहा है। इसका कारण कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट से वैश्य की बजाय जाट प्रत्याशी को मैदान में उतारना है। दरअसल, कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट वर्ष 2004 से कांग्रेस वैश्य समाज को देती आ रही है लेकिन 2019 में अचानक यहां जाट प्रत्याशी को उम्मीदवार बनाकर कांग्रेस ने वैश्य समाज को नाराज कर लिया है। वैश्य समाज का मानना है कि हरियाणा में कांग्रेस एक सीट ही उन्हें देती थी लेकिन वह भी अब छीन ली गई है।

वैश्य समाज का यहां तक आरोप है कि जींद उपचुनाव में भी कांग्रेस जाट उम्मीदवार उतारकर गलती कर चुकी है जबकि इस सीट पर 12 चुनावों में से 8 बार वैश्य समुदाय के प्रत्याशी ने जीत दर्ज की है। जींद की गलती से सबक न लेते हुए कांग्रेस ने कुरुक्षेत्र में भी जाट उम्मीदवार को मैदान में उतार दिया है जबकि यह सीट पिछले 3 चुनावों से लगातार कांग्रेस वैश्य समाज को देती रही है।

7 फीसदी हैं वैश्य मतदाता
रियाणा में वैश्य मतदाता की संख्या लगभग 7 फीसदी है। अधिकतर शहरी क्षेत्र की सीटों पर कहीं कम कहीं ज्यादा वैश्य समाज का मतदाता मौजूद है। ग्रामीण क्षेत्र में हालांकि तुलनात्मक वैश्य समाज की संख्या कम है लेकिन हर सीट पर वैश्य समाज का मतदाता मौजूद है। इसके बावजूद कांग्रेस ने जिस कदर वैश्य समाज को नजरअंदाज किया है,उसका नुक्सान उसे विधानसभा में हो सकता है।

आप-जजपा ने जताया भरोसा
आम आदमी पार्टी ने वैश्य समाज के मतदाता पर भरोसा जताते हुए करनाल से उम्मीदवार घोषित किया है। हालांकि यह सीट आम आदमी पार्टी के खाते में है और आम आदमी पार्टी के नेता केजरीवाल स्वयं वैश्य समाज से संबंध रखते हैं इसलिए उन्होंने एक सीट वैश्य समाज को दिलवाई है। केजरीवाल द्वारा वैश्य समाज को एक सीट दिए जाने से वैश्य समाज आम आदमी पार्टी की तरफ भी अपना झुकाव बना सकता है। 

जाट प्रत्याशी नहीं बना सांसद
कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट पर 1977 में हुए नए परिसीमन के बाद पहली बार सरदार रघुवीर सिंह सांसद बने। 1980 में मनोहरलाल सैनी,1984 में सरदार हरपाल सिंह,1989 में गुरदयाल सिंह सैनी,1991 में सरदार दारा सिंह, 1996 में ओमप्रकाश जिंदल,1998 व 1999 में कैलाशो सैनी,2004 व 9 में नवीन जिंदल तथा 2014 में राजकुमार सैनी ने जीत दर्ज की थी। इस सीट पर कभी भी जाट प्रत्याशी ने जीत दर्ज नहीं की है। इसके बावजूद कांग्रेस द्वारा जाट प्रत्याशी को मैदान में उतारना लोगों के गले नहीं उतर रहा है। 

जींद में भी रहा वैश्य समाज का जलवा
जींद विधानसभा सीट पर हुए 12 चुनावों में 8 बार वैश्य समाज के प्रत्याशी ने जीत दर्ज की है। जबकि 1 बार जाट,1 बार बी.सी. और 2 बार पंजाबी समुदाय के प्रत्याशी ने जीत हासिल की है। जींद विधानसभा सीट पर भी वैश्य समाज के कब्जे के बावजूद कांग्रेस ने जाट उम्मीदवार को उपचुनाव में उतारा था जिससे वैश्य समाज में उस वक्त भी भारी नाराजगी थी।  

कुरुक्षेत्र से 3 बार सरदार, 3 बार वैश्य व 5 बार सैनी समाज के प्रत्याशी ने जीत दर्ज की 
कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट से नवीन जिंदल के इंकार के बाद कांग्रेस ने निर्मल सिंह को उम्मीदवार बनाया है। निर्मल सिंह जाट समुदाय से संबंध रखते हैं जबकि यह सीट वर्ष 2004 से कांग्रेस लगातार वैश्य समाज को देती आ रही है। वर्ष 2004,2009 व 2014 में नवीन जिंदल यहां से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़े और 2 बार सांसद बने। इससे पूर्व 1996 में ओमप्रकाश जिंदल हरियाणा विकास पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़े और सांसद बने।

1998 में भी ओमप्रकाश जिंदल को उम्मीदवार बनाया गया था लेकिन वे कैलाशो सैनी से हार गए थे। यदि लोकसभा के इतिहास की बात करें तो 1977 में हुए नए परिसीमन के बाद कुरुक्षेत्र सीट अस्तित्व में आई थी। यहां से 3 बार सरदार, 3 बार वैश्य और 5 बार सैनी समाज के प्रत्याशी ने जीत दर्ज की है। जाट समाज का प्रत्याशी इस सीट पर कभी भी सांसद नहीं बन पाया है। इसके बावजूद कांग्रेस का जाट प्रत्याशी पर दाव लगाना वैश्य समाज को अखर रहा है। वैश्य समाज इसके विरोध में कांग्रेस हाईकमान को शिकायत भेजेगा। 

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