Edited By Updated: 29 Mar, 2017 04:42 PM
सरकारी स्कूलों में कार्यरत शिक्षकों द्वारा बगैर पैनल में शामिल अस्पतालों में इलाज करवाना महंगा पड़ सकता है।
सिरसा (राम माहेश्वरी):सरकारी स्कूलों में कार्यरत शिक्षकों द्वारा बगैर पैनल में शामिल अस्पतालों में इलाज करवाना महंगा पड़ सकता है। न केवल उनके इलाज खर्च की फाइलें अटक सकती हैं, बल्कि उन्हें विभागीय कार्रवाई का भी सामना करना पड़ सकता है। मौलिक शिक्षा विभाग के निदेशक की ओर से इस संदर्भ में प्रदेश के सभी मौलिक शिक्षा अधिकारियों को आदेश जारी किए जा चुके हैं। दरअसल, सरकारी स्कूलों के शिक्षक नियमों के मुताबिक सरकारी या पैनल में शामिल अस्पतालों में ही इलाज करवा सकते हैं। मगर अनेक शिक्षक अपनी आदतों से लाचार हैं।
वे नियमानुसार इलाज न करवाकर अपना ही नहीं, अपने परिजनों का भी इलाज निजी अस्पतालों में करवाते हैं। जबकि इसकी अनुमति शिक्षकों को विशेष परिस्थितियों में ही दी जा सकती है। प्राइवेट अस्पतालों में इलाज करवाने के बाद शिक्षक अपने खर्च की प्रतिपूर्ति के लिए विभाग में फाइल लगा देते हैं। इस प्रक्रिया के कारण विभागीय कर्मचारियों पर काम का अतिरिक्त बोझ बढ़ जाता है। शिक्षकों द्वारा इलाज खर्च के लिए लगाई गई फाइल कई कर्मचारियों के हाथों से गुजरती है। फाइल निपटाने में काफी समय भी लग जाता है। अन्य अस्पतालों में इलाज के बाद खर्च की प्रतिपूर्ति सरकार की ओर से पी.जी.आई. या एम्स के तय रेट के हिसाब से की जाती है। इस लम्बी प्रक्रिया से बचने के लिए सरकार ने यह सख्त हिदायत दी है कि शिक्षक नियमानुसार पैनल के अस्पतालों में ही इलाज करवाएं। मौलिक शिक्षा निदेशक ने प्रदेश के सभी जिलों में मौलिक शिक्षा अधिकारियों को निर्देश जारी कर सरकार की हिदायत का पालन सुनिश्चित करने को कहा है। इसके बावजूद अगर शिक्षक अपनी आदतों से बाज नहीं आए और प्राइवेट अस्पतालों में इलाज करवाकर इसके खर्च की प्रतिपूर्ति के लिए फाइल लगाई तो सरकार बिल हरगिज पास नहीं करेगी।