भूमि अधिग्रहण केस में जाली दस्तावेज पड़े याची पक्ष को भारी, HC ने दिए कार्रवाई करने के आदेश

Edited By Punjab Kesari, Updated: 02 Sep, 2017 09:57 AM

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भूमि अधिग्रहण को लेकर मुआवजे से जुड़े एक मामले में याची पक्ष द्वारा दस्तावेजों की जालसाजी करने पर पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने

चंडीगढ़(बृजेन्द्र): भूमि अधिग्रहण को लेकर मुआवजे से जुड़े एक मामले में याची पक्ष द्वारा दस्तावेजों की जालसाजी करने पर पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया। जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस गुरविंद्र सिंह गिल की बैंच ने सोमनाथ व अन्यों की तरफ से हरियाणा सरकार को पार्टी बनाते हुए दायर याचिका का निपटारा करते हुए पाया कि याची पक्ष ने जाली दस्तावेज रिकार्ड पर लगाए जो संभवत: अर्बन इस्टेट डिपार्टमैंट या हुडा कर्मियों की मिलीभगत से तैयार किए गए हों। हाईकोर्ट की सख्ती पर याची पक्ष ने मांग रखी कि उन्हें याचिका वापस लेने की अनुमति दी जाए। इस पर कोर्ट ने कहा कि याची पक्ष को याचिका वापस लेने की अनुमति दी जाती है, मगर इसके लिए 5 लाख रुपए की कॉस्ट भरनी पड़ेगी। यह रकम 3 महीने में कोर्ट रजिस्ट्री में जमा करवाने को कहा गया। कोर्ट ने यह भी कहा कि यह केस दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़ का बनता है, ऐसे में जिन डिपार्टमैंट्स/ऑफिसों में यह फर्जी दस्तावेज तैयार किए गए और डिस्पैच रजिस्टर के पन्ने गायब हुए, उनके द्वारा आपराधिक केस दर्ज करवाया जाए। 

मामले में पेश की गई फाइल में कुछ दस्तावेज जाली पाए गए, उन्हें भी जांच के दौरान ध्यान में रखा जाए या एफ.आई.आर. दर्ज करवाई जाए। हाईकोर्ट ने केस का निपटारा करते हुए कहा कि आदेशों की पालना को लेकर केस 30 अक्तूबर को सूची में शामिल किया जा सकता है। इससे पहले वर्ष 2012 में सोमनाथ व अन्य बनाम हरियाणा सरकार ने अधिग्रहण को चुनौती दी थी जिसे 50 हजार रुपए कॉस्ट के साथ हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था।

जांच में अफसरों को भी पाया दोषी
सैक्शन-4 के तहत 21 अप्रैल, 1987 की नोटिफिकेशन को चुनौती दी गई थी। यह नोटिफिकेशन बाद में अप्रैल, 1988 में एक्ट की सैक्शन 6 के तहत आगे बढ़ाई गई। याची ने लैंड एक्विजिशन ऑफिसर, अर्बन इस्टेट डिपार्टमैंट, पंचकूला द्वारा जुलाई 2014 में लिखे गए पत्रों का हवाला दिया जिनमें याचियों ने दावा किया कि हाईकोर्ट द्वारा मई, 2012 में जारी आदेशों के आधार पर मुआवजे की रकम वापस जमा करवा दी थी। वहीं प्रतिवादी पक्ष का कहना था कि भूमि अधिग्रहण के बाद याचियों को मुआवजा जारी कर दिया गया था बल्कि वर्ष 1993-94 में बढ़ा हुआ मुआवजा भी बाद में दिया गया था। हुडा को जमीन का कब्जा दिया गया था। प्रतिवादी पक्ष ने याची पक्ष के दस्तावेजों को जाली बताया था। वहीं इस्टेट ऑफिसर, हुडा, कुरुक्षेत्र द्वारा कथित रूप से याची पक्ष को लिखे पत्र भी प्रतिवादी पक्ष ने जाली बताए। याचियों द्वारा मुआवजा राशि भी वापस जमा करवाने की बात को गलत बताया गया। कोर्ट को बताया गया कि कुछ भू-मालिकों को स्टाफ द्वारा परेशान करने की शिकायत पर कार्रवाई के दौरान पाया गया कि कुछ पत्रों से जालसाजी हुई है और डिस्पैच रजिस्टर से कुछ पन्ने गायब हैं। इसमें 4 कर्मियों को दोषी पाया गया था। इन अफसरों/कर्मियों का अन्य धोखाधड़ी में भी दोषी पाया गया था। अगस्त, 2017 में जांच रिपोर्ट जमा करवाई गई थी और मामला वरिष्ठ अथॉरिटीज के पास लंबित है।

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