नोटबंदी का असर- बैंकों की बेक्रदी का शिकार बुजुर्गों को आया रोना (Pics)

Edited By Updated: 07 Dec, 2016 04:34 PM

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नोटबंदी की सबसे बड़ी प्रत्यक्ष मार बुजुर्गों को सहनी पड़ रही है। दिनभर कतार में लगने के बावजूद उन्हें अपने ही पेंशन खाते से नकदी नसीब नहीं हो रही है।

हिसार: नोटबंदी की सबसे बड़ी प्रत्यक्ष मार बुजुर्गों को सहनी पड़ रही है। दिनभर कतार में लगने के बावजूद उन्हें अपने ही पेंशन खाते से नकदी नसीब नहीं हो रही है। कुल मिला कर अव्यवस्था की मार से बुजुर्गों के आसूं तक झलक रहे है लेकिन इन्हें पोंछने वाला कोई नहीं है।

शहर के तमाम बैंकों तथा ए.टी.एम. की हालत यह है कि दिनभर कतार में लगने के बाद लोगों को शाम तक उम्मीद नहीं रहती है कि वे घर खर्च के लिए रुपये जुटा पाएंगे या आज फिर थक हार कर बिना कुछ हासिल किए लौटना होगा। बैंक अधिकारियों की मनमानी पर लगाम कसने के लिए कोई आगे नहीं आ रहा है। बेलगाम हो चुके बैंक कर्मी किसी को दो हजार तो किसी को 24 हजार तक का कैश दे रहे है। कोई पैमाना नहीं है। इस मनमर्जी के चलते करीब एक तिहाई लोग बैंक से बैरंग लौट रहे है।

शांति नगर निवासी सुभाष कहते है कि वे आलू की रेहड़ी लगा कर परिवार का पेट पालते है। अपनी पेंशन निकलवाने में भी असमर्थ है। दो दिन हो गए है लेकिन लंबी कतार में लगने के बाद एक ही जवाब मिलता है कि बैंक में कैश खत्म हो गया है। कृष्णा देवी कहती है कि उसे पहले से ही पांव में जोड़ों का दर्द रहता है। बावजूद इसके वे बैंक की कतार में लगी है। लाइन से हटकर बैठ भी नहीं सकती। एक बार लाइन से हटी तो दोबारा उसे लाइन तक में लगने नहीं दिया गया। इतनी बेकद्री बुढ़पें में कभी सोची नहीं थी।

ठसका गांव निवासी जयदेव का कहना था कि उन्हें आज दूसरा दिन है। 2 दिन से सुबह आ कर कतार में लगते है लेकिन पैसा नहीं मिल रहा है। कोई सुनवाई करने वाला नहीं है। रावलवास खुर्द निवासी रामकुमार कहते है कि दो दिन से बैंक आ रहे है लेकिन जब तक कतार में उनकी बारी आती है, इससे पहले ही यह कह दिया जाता है कि कैश खत्म हो चुका है। रामकुमार कहते है कि एक तो रुपया नहीं निकल रहा, दूसरा बैंक के गार्ड की बदतमीजी को झेलना पड़ रहा है।

कहने को तो सरकार सिटिजन चार्टर लागू करने के लिए बड़े बड़े दावें करती है। अब जब लोगों को बैंक से अपना ही पैसा निकालने में दिक्कतें आ रही है तो तमाम कायदे कानूनों को बॉक्स में बंद कर फेंक दिया गया है। बुजुर्ग कहते है कि वे शिकायत करें तो आखिर किससे करें। उन्हें कोई यह नहीं बता पा रहा है कि आखिर वे अपना ही पैसा किस दिन बैंक से निकाल पाएंगे।

यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व मैनेजर जगदीश मित्तल का कहना है कि जब तक बैंकों में पर्याप्त कैश नहीं होगा तब तक समस्या का हल नहीं निकल सकेगा। मित्तल कहते है कि कैशलैस होना अच्छा है लेकिन इससे पहले हमारे पास जरूरी इंफ्रास्ट्रक्टचर होना चाहिए। उपभोक्ताओं पर कोई चीज थोंपने की बजाए उसके लिए बेहतर माहौल तैयार किया जाए तो वाजिब होगा। सरकार को चाहिए कि पहले मशीनें सप्लाई करें।

लघु सचिवालय स्थित कई सरकारी दफ्तरों में मंगलवार को पीओएस मशीनें फिट की गई। दरअसल कैशलैस अभियान को गति देने के लिए भुगतान के वास्ते ऐसा किया जा रहा है। प्रशासन भी कैशलैस को लेकर बैठकें कर रहा है। लिहाजा इसे अमलीजामा पहनाने का प्रयास किया जा रहा है।
 

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