पंजाब-हरियाणा में जलसंकट पैदा कर रहा धान

Edited By Deepak Paul, Updated: 21 Jan, 2019 12:49 PM

paddy producing water conservation in punjab and haryana

मक्का, चना, गन्ना, दलहन फसलों की बजाय पंजाब-हरियाणा में बढ़ रही धान की खेती ने बेशक यहां के किसान की किस्मत पलटी है, पर धान की खेती के चलते दोनों ही राज्यों में भूजल के लिहाज से स्थिति

सिरसा (नवदीप सेतिया): मक्का, चना, गन्ना, दलहन फसलों की बजाय पंजाब-हरियाणा में बढ़ रही धान की खेती ने बेशक यहां के किसान की किस्मत पलटी है, पर धान की खेती के चलते दोनों ही राज्यों में भूजल के लिहाज से स्थिति चिंतनीय हो गई है। पंजाब में 142 में से 110 ब्लॉक जबकि हरियाणा में 116 ब्लॉक में 71 डार्क जोन में आ गए हैं। पंजाब में 1960-61 की तुलना में धान का रकबा 2 लाख 27 हजार हैक्टेयर से बढ़कर साढ़े 28 लाख हैक्टेयर तक पहुंच गया है जबकि हरियाणा में 1966-67 की तुलना में धान का रकबा 1 लाख 92 हजार हैक्टेयर से बढ़कर 13 लाख 86 हजार हैक्टेयर तक पहुंच गया है। केंद्रीय जल संसाधन बोर्ड ने अभी इसी साल जारी एक रिपोर्ट में दोनों राज्यों में बढ़ रहे धान के रकबे और नलकूपों की संख्या पर ङ्क्षचता जाहिर की है। 

दरअसल पंजाब-हरियाणा में धान की खेती का बढ़ता रकबा भूजल के लिहाज से संकटप्रद बनता जा रहा है। पंजाब में करीब 13 लाख जबकि हरियाणा में 9 लाख ट्यूबवैल व दोनों राज्यों में 42 लाख हैक्टेयर धान का रकबा हर साल अरबों लीटर जल का दोहन कर रहा है। साल 1974 में हरियाणा में 9.19 मीटर पर भूजल उपलब्ध था जो अब 8.56 की गिरावट के साथ 17.75 मीटर तक पहुंच गया है। 

कुरुक्षेत्र जिले में भूजल 24.32 मीटर जबकि महेंद्रगढ़ में 28.85 मीटर तक नीचे चला गया है। नलकूपों की संख्या कई गुना बढ़ गई है। 1967 में हरियाणा में 7767 डीजल जबकि 20,190 बिजली नलकूप थे। साल 2016-17 में डीजल नलकूपों की संख्या 3,01,986 जबकि बिजली नलकूपों की संख्या 5,75,165 तक पहुंच गई। हरियाणा में भूजल के लिहाज से 71 ब्लॉक डार्क जोन में हैं। 15 में स्थिति क्रिटिकल जबकि 7 में सैमी-क्रिटिकल है। इसी तरह से पंजाब में भी पिछले 5 दशक में ट्यूबवैलों की संख्या 80 हजार से बढ़कर 13 लाख तक पहुंच गई है।

पंजाब में तो खरीफ सीजन में कुल कृषि भूमि में से 70 फीसदी पर धान बीजा जाने लगा है। इस वजह से पंजाब में कॉटन के ग्राफ में भारी गिरावट दर्ज की गई है। पंजाब में साल 1990-91 में कॉटन का रकबा 7 लाख 1 हजार हैक्टेयर था जो साल 2016-17 में 2 लाख 47 हजार हैक्टेयर रह गया। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान में कॉटन की रिसर्च करने वाले केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान के इंचार्ज व वैज्ञानिक डा. दलीप मोंगा बताते हैं कि पंजाब में कॉटन का विकल्प धान बन गया है। यह ङ्क्षचताजनक है। विशेषज्ञ मानते हैं कि प्रति किलोग्राम धान की पैदावार पर करीब 5300 लीटर जल का दोहन होता है। यह बहुत अधिक है। जाहिर है कि धान का बढ़ता रकबा जल संकट पैदा कर रहा है। खतरे की घंटी घनघना रही है, पर इन सब पर विशेषज्ञ, शोधकत्र्ता सब मौन हैं। यह भी जाहिर है कि यह मौन आने वाले समय में भारी पड़ सकता है।

Related Story

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!