Edited By vinod kumar, Updated: 17 Jan, 2020 04:39 PM
इस बार रबी सीजन में सरसों की रकबा लक्ष्य से करीब साढ़े 73 हजार हैक्टेयर कम रह गया है। सरसों की बिजाई में अग्रणी रहने वाले जिले हिसार, चरखी दादरी, भिवानी, महेंद्रगढ़, रेवाड़ी, सिरसा में निर्धारित लक्ष्य से कम पर बिजाई हुई है। पिछले करीब 3 बरस से...
सिरसा(नवदीप): इस बार रबी सीजन में सरसों की रकबा लक्ष्य से करीब साढ़े 73 हजार हैक्टेयर कम रह गया है। सरसों की बिजाई में अग्रणी रहने वाले जिले हिसार, चरखी दादरी, भिवानी, महेंद्रगढ़, रेवाड़ी, सिरसा में निर्धारित लक्ष्य से कम पर बिजाई हुई है। पिछले करीब 3 बरस से सरसों का टारगेट पूरा नहीं हो रहा है। इस बार कृषि विभाग की ओर से 6 लाख 36 हजार हैक्टेयर रकबे में सरसों की बिजाई का लक्ष्य निर्धारित किया गया था, पर बिजाई 5 लाख 62 हजार 440 हैक्टेयर रकबे पर हुई है। इस तरह से निर्धारित लक्ष्य से 73 हजार 560 हैक्टेयर रकबे पर कम बिजाई हुई है।
दरअसल, हरियाणा में करीब 37 लाख हैक्टेयर रकबा कृषि क्षेत्र में आता है। रबी सीजन में अब गेहूं के अलावा सरसों मुख्य फसल है। इसके अतिरिक्त चने, जौं एवं तिलहन की खेती भी की जाती है। इस बार रबी सीजन में सरसों की फसल का लक्ष्य पूरा नहीं हुआ है तो चने के खेत भी सिमट गए हैं। कृषि विभाग की ओर से 1 लाख 4 हजार हैक्टेयर पर चने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन बिजाई हुई है महज 45 हजार 500 हैक्टेयर पर। यानी निर्धारित लक्ष्य से 50 फीसदी पर भी चने का रकबा कवर नहीं हो पाया है।
खास बात यह है कि सरसों का रकबा उन्हीं क्षेत्रों में कम हो रहा है, जहां पर सरसों की पैदावार अधिक होती है। भिवानी में 1 लाख 32 हजार हैक्टेयर की तुलना में 1 लाख 14 हजार हैक्टेयर, महेंद्रगढ़ में 95 हजार हैक्टेयर की तुलना में 79 हजार 300 हैक्टेयर रकबे पर, हिसार में 66 हजार हैक्टेयर लक्ष्य के आगे 69 हजार 400 हैक्टेयर में जबकि चरखी दादरी में 60 हजार हैक्टेयर की तुलना में 53 हजार 300 हैक्टेयर रकबे पर सरसों की बिजाई हुई है। किसानों का मानना है कि सरसों की सरकारी खरीद का सिस्टम अधिक जटिल होने एवं समर्थन मूल्य न मिलने से किसान सरसों से दूर हो रहे हैं।
हरियाणा में सरकार की ओर से सरसों का समर्थन मूल्य 4425 रुपए प्रति किं्वटल निर्धारित किया गया है। पहले यह 4200 रुपए प्रति किं्वटल था। पर खरीद प्रक्रिया में जटिल नियमों के चलते किसानों को पिछले दो बरस से सरसों का समर्थन मूल्य नहीं मिला। सरसों बेचने में दिक्कत हुई। जिन किसानों ने सरकारी खरीद पर सरसों बेची, उन्हें फसल का भुगतान भी विलम्ब से हुआ है। यही वजह है कि खरीद प्रक्रिया में जटिलता के चलते सरसों की खेती से किसान दूर हो रहा है।