अारोप: डॉक्टरों की लापरवाही से महिला की मौत, परिजनों को थमाया 18 लाख का बिल (VIDEO)

Edited By Punjab Kesari, Updated: 10 Jan, 2018 07:11 PM

श के निजी अस्पतालों में लूट खसोट के मामला रुकने का नाम नहीं ले रहे। ताजा मामला फरीदाबाद के एक निजी अस्पताल से सामने आया है। यहां एशियन अस्पताल में बुखार से पीड़ित एक गर्भवती महिला और 7 महीने की बच्ची की 22 दिन के इलाज के दौरान मौत हो गई। इतना ही...

फरीदाबाद(देवेंद्र कौशिक):देश के निजी अस्पतालों में लूट खसोट के मामले रुकने का नाम नहीं ले रहे। ताजा मामला फरीदाबाद के एक निजी अस्पताल का सामने आया है। यहां एशियन अस्पताल में बुखार से पीड़ित एक गर्भवती महिला और उसके गर्भ में पल रही 7 महीने की बच्ची की 22 दिन के इलाज के दौरान मौत हो गई। इतना ही नहीं, अस्पताल ने मृतक महिला के इलाज का 18 लाख रुपए का बिल उसके परिजनों को थमा दिया। वहीं, पीड़ित परिवार अस्पताल के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग कर रहा हैं।

फरीदाबाद के गांव नचौली के रहने वाले सीताराम ने बुखार होने पर अपनी बेटी श्वेता को 13 दिसंबर को एशियन हॉस्पिटल में भर्ती कराया था। उस वक्त वह सात माह की गर्भवती थी। तीन चार दिन इलाज करने के बाद डॉक्टरों ने कहा कि बच्चा महिला के पेट में ही मर गया है, जिसकी वजह से ऑपरेशन करना पड़ेगा।

पैसों के लालच में ली मासूम की जान
डॉक्टरों ने शुरू में इलाज करने के लिए परिवार से साढ़े तीन लाख रुपए जमा कराने को कहा। मृतक के पिता सीताराम का कहना है कि उन्होंने डॉक्टर से विनती की, कि जब तक वो पैसों का इंतजाम करें उनकी बेटी का इलाज शुरू कर दें। लेकिन अस्पताल ने पैसे जमा होने तक उसका ऑपरेशन नहीं किया। जिसकी वजह से श्वेता के पेट में इंफेक्शन हो गया और उसकी हालत और ज्यादा बिगड़ गई।
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परिवार को नहीं दिया गया मिलने 
गर्भ में ही बच्ची के मर जाने पर श्वेता की हालत बिगड़ने के बाद उसे आईसीयू में ले जाया गया। इस दौरान परिवार को बीमार बेटी से मिलने तक नहीं दिया गया। जब वह 5 जनवरी को आईसीयू में एडमिट श्वेता से मिलने गए तो उनकी बेटी बेसुध पड़ी हुई थी। उसकी सांसे भी नहीं चल रही थी।

अस्पताल मांग रहा था लगातार पैसे
जब श्वेता आईसीयू में भर्ती थी उस वक्त उसके परिवार को मिलाने के बजाय लगातार पैसे मांगे जा रहे थे। बेटी को बेसुध देखकर पिता को शक हुआ तो उन्होंने पैसे जमा करने से मना कर दिया। जिसके कुछ देर बाद ही डॉक्टर ने श्वेता को मृत घोषित कर दिया।
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अस्पताल प्रबंधन कर रहा आरोपों से इनकार
इस मामले में अस्पताल के क्वालिटी एन्ड सेफ्टी के चेयरमैन डॉ. रमेश चांदना का कहना है कि मृतक के पिता द्वारा लगाए गए सभी आरोप गलत है। उन्होंने कहा कि मरीज को टाइफाइड था, गुर्दे भी ठीक से काम नहीं कर रहे थे इसलिए मरीज को तुरंत आईसीयू में दाखिल कराया गया। इलाज में लगभग 18 लाख रुपए का खर्च आया है जिसमें से परिजनों ने करीब 10 लाख रुपए जमा भी करा दिए हैं। बाकी के पैसे माफ करके परिजनों को शव भी दे दिया गया है।
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पैसे देने से मना करने पर किया मृत घोषित
परिवार के सदस्यों ने बताया कि जब तक पैसे जमा कराते रहे तब तक वो बेटी को जिंदा बताते रहे। जिस दिन पैसे देने से इनकार कर दिया उसी दिन उसे मृत घोषित कर दिया। पिता ने कहा कि 1 दिन में 116 इंजेक्शन उनकी बेटी को लगाए गए हैं। साढ़े आठ लाख रुपए की दवाइयां दी गई हैं। इसके अलावा डिलीवरी का चार्ज 35,000 रुपए जबकि 18 यूनिट खून उन्होंने खुद दिया था। लेकिन उसका चार्ज भी अस्पताल वालों ने 1,80,000 रुपए के करीब लगाया है।

डॉक्टरों की सफाई से संतुष्ट नही परिजन
अस्पताल द्वारा लाख सफाई देने पर भी श्वेता के परिजन संतुष्ट नहीं है और अस्पताल के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की मांग कर रहे हैं। मृतका के पिता व चाचा की माने तो अस्पताल के डॉक्टरों की लापरवाही के चलते उनकी बेटी और उसके गर्भ में मौज़ूद बच्चे की मौत हुई है। उसको बुखार के चलते अस्पताल में भर्ती कराया था लेकिन अस्पताल में भर्ती कराते ही डॉक्टरों ने उसका रोग बढ़ाना शुरू कर दिया और आखिर में पैसों के लिए उसकी हत्या कर दी। परिवार की मांग है कि ऐसे अस्पतालों की जांच करके कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए जो पैसे के लिए लोगों को मार रहे है।


 

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