हरियाणा में बढ़ रहे हैं स्टॉकिंग के मामले, पुलिस ने सिर्फ 200 दोषियों को किया गिरफ्तार

Edited By vinod kumar, Updated: 15 Dec, 2019 10:57 AM

stocking cases are increasing in haryana

हरियाणा में स्टॉकिंग (पीछा कर रोकना) के मामलों में भी बढ़ौत्तरी दर्ज की जा रही है। मनचले लड़के राह चलती लड़कियों से छेडख़ानी करने के लिए पीछा करते हैं और रास्ते में भी रोकते हैं। आंकड़े बयान कर रहे हैं कि महिलाओं के साथ ङ्क्षहसा में स्टॉकिंग भी उनके...

चंडीगढ़(अर्चना सेठी): हरियाणा में स्टॉकिंग (पीछा कर रोकना) के मामलों में भी बढ़ौत्तरी दर्ज की जा रही है। मनचले लड़के राह चलती लड़कियों से छेडख़ानी करने के लिए पीछा करते हैं और रास्ते में भी रोकते हैं। आंकड़े बयान कर रहे हैं कि महिलाओं के साथ हिंसा में स्टॉकिंग भी उनके उत्पीडऩ को बयान कर रही है। हरियाणा स्टेट क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों की मानें तो मौजूदा साल के 11 माह दौरान स्टॉकिंग के 468 मामले दर्ज किए गए हैं।

जनवरी में 30 मामले रजिस्टर किए गए। फरवरी में 29 महिलाओं ने पुलिस को शिकायत दी कि युवकों ने घर या ऑफिस जाते समय पीछा किया और रास्ता रोककर परेशान किया। मार्च में 28,अप्रैल में 45,मई में 36,जून में 53 महिलाओं ने स्टॉकिंग की शिकायत की। जुलाई में पुलिस ने 56 मामलों की रिपोर्ट बनाई। अगस्त में 57, सितम्बर में 62,अक्तूबर में 33 और नवंबर में 39 स्टॉकिंग के मामले रजिस्टर किए गए। 

आंकड़े कहते हैं कि 468 स्टॉकिंग के मामलों में से हरियाणा पुलिस ने सिर्फ 200 दोषियों को ही गिरफ्तार किया है। एक तरफ हरियाणा में महिलाओं के प्रति अपराधों के ग्राफ में इजाफा होता जा रहा है वहीं ऐसे मामले भी सामने आ रहे हैं जिसमें पुलिस ही इंसाफ दिलवाने की बजाए अपराधियों को बचाने में जुटी हुई मिली है। हालांकि महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए देश में कानून सख्त बनाए गए हैं,परंतु पुलिस कई मामलों में अपराधियों को मजबूत बनवा देती है। कभी अपराधियों के मोबाइल की टॉवर लोकेशन को हथियार बना लिया जाता है,कभी पोलोग्राफी टैस्ट के नाम पर केस को इधर-उधर मोड़ा जाता है।

पुलिस भी करती है अपराधियों को बचाने की कोशिश, कैसे मिलेगा महिलाओं को इंसाफ?  
हरियाणा स्टेट ह्यूमन राइटस कमीशन के सदस्य दीप भाटिया का कहना है कि ऐसे 4 से 5 मामले सामने आ चुके हैं जिसमें पुलिस ने ही अपराधियों का साथ दिया। पलवल के एक रेप केस में पुलिस ने कह दिया था कि लड़की के पड़ोसियों से पूछताछ की लेकिन ऐसा कोई हादसा हुआ ही नहीं था। कुछ अन्य मामलों में पुलिस ने कभी पोलोग्राफी तो कभी मोबाइल टॉवर लोकेशन के आधार पर अपराधियों को बचाने के प्रयास किए। भाटिया का कहना है कि यौन उत्पीडऩ जैसे मामलों में जहां सर्वोच्च न्यायालय कहता है कि लड़की के बयान ही अपराधी को गिरफ्तार करने के लिए काफी हैं। ऐसे में पुलिस जिम्मेदारी निभाने की बजाए महिलाओं के खिलाफ जाकर क्यों काम करती है। 

पुलिस ही ऐसे मामलों में संवेदनशीलता नहीं निभाएगी तो महिलाओं को न्याय कैसे मिलेगा? हाल ही में पंचकूला के सैलून से जुड़े मामले में लड़की ने पहले पुलिस के खिलाफ रिश्वतखोरी व छेडख़ानी के आरोप लगाए। सी.सी.टी.वी. फुटेज में भी साफ दिख रहा है कि पुलिस वाला लड़की से पैसे भी ले रहा है। उसके साथ छेडख़ानी भी कर रहा है लेकिन महिला ने किन्ही दबावों के चलते बाद में बयान बदल दिए। इसके पीछे वजह पुलिस का प्रैशर कहा जाए या क्या कहें? क्योंकि सी.सी.टी.वी.फुटेज पुलिस के कारनामे की सारी कहानी खुद ही बयान कर रही है। 

2 साल पहले स्टॉकिंग के केस में वॢणका ने दिखाई थी हिम्मत
2 साल पहले हरियाणा के वरिष्ठ आई.ए.एस. अधिकारी की बेटी वॢणका कुंडू स्टॉकिंग का मामला दर्ज किया गया था। वॢणका ने पुलिस को फोन कर खुद की जान बचाई थी। आरोपी की गिरफ्तारी भी हुई,लेकिन अब तक वॢणका को इंसाफ नहीं मिल सका है। उसके पिता वीरेंद्र कुंडू का कहना है कि 2 साल पुराना मामला अब भी ट्रायल फेज में ही है। उनकी बेटी उस दिन हिम्मत ना दिखाती तो कुछ भी अनहोनी हो सकती थी। देश में सख्त कानून जरूर बने हैं परंतु सही से लागू नहीं हो पाते हैं। निर्भया केस में दोषियों की सजा सालों से लटकती आ रही है।

ऐसे मामलों में महिलाओं को तुरंत इंसाफ मिलना चाहिए और दोषी बख्शे नहीं जाने चाहिए। दोषियों को जो भी सजा मिले वो कानून के दायरे में ही मिलनी चाहिए। अब तो फोरैंसिक साइंस भी बहुत ज्यादा विकसित हो चुकी है। अपराधियों को पकडऩा आसान हो चुका है। ऐसी तकनीकें विकसित हो चुकी हैं जो अपराध के खात्मे में कारगार साबित हो सकती हैं। महिलाओं के प्रति अपराधों को रोकने हेतु सबसे जरूरी है कि दोषियों को सख्त सजा मिले ताकि दूसरे लोगों को सबक मिल सके। लोगों को खौफ होगा कि लड़की के साथ गलत किया तो बख्शे नहीं जाएंगे तो कभी उत्पीडऩ बारे सोचेंगे नहीं। 

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