नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता की याचिका पर हाईकोर्ट का फैसला, 24 सप्ताह का गर्भ गिराने की दी इजाजत

Edited By Gourav Chouhan, Updated: 30 Nov, 2022 04:30 PM

high court gave permission of abortion to 24 weeks pregnent rape victim

न्यायालय ने कहा कि यदि यह बच्चा पैदा होता है, तो वह पीड़िता के लिए अच्छी याद नहीं बनेगा, बल्कि उसके साथ हुए अपराध की याद दिलाता रहेगा।

चंडीगढ़(चंद्रशेखर धरणी): 24 सप्ताह के गर्भ को गिराने की मंजूरी देते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि रेप के बाद पैदा हुआ बच्चा पीड़िता को उसके साथ हुए अपराध और पीड़ा का याद दिलाता है। न्यायालय ने कहा कि यदि यह बच्चा पैदा होता है, तो वह पीड़िता के लिए अच्छी याद नहीं बनेगा, बल्कि उसके साथ हुए अपराध की याद दिलाता रहेगा। हाईकोर्ट ने यह फैसला एक नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता की उस याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया, जिसमें उसने अपने गर्भ में पल रहे भ्रूण को गिराने की इजाजत मांगी थी।

 

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पीड़िता ने गर्भ गिराने की इजाजत के लिए लगाई थी याचिका

 

बता दें कि 17 साल की नाबालिग ने अपने पिता के जरिए हाईकोर्ट में याचिका दायर कर बताया था कि वह रेप की वजह से गर्भवती हुई है। उसने न्यायालय तो बताया था कि अगर उसे गर्भ गिराने की मंजूरी न मिली तो उसका भविष्य खराब हो जाएगा। कोर्ट में याचिका लगाने के समय पीड़िता के गर्भ में 21 हफ्ते का भ्रूण पल रहा था। पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने लड़की पक्ष की दलीलें सुनने के बाद नूंह के शहीद हसन खान मेडिकल कॉलेज को मेडिकल बोर्ड गठित करने के लिए कहा था। मेडिकल बोर्ड को पीड़िता के गर्भ की जांच करने का निर्देश दिया गया था। मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के आधार पर हाईकोर्ट ने पीड़िता को गर्भ गिराने की इजाजत दे दी है।

 

गर्भ गिराने की इजाजत देने के साथ हाईकोर्ट ने की अहम टिप्पणी

 

दुष्कर्म पीड़िता को गर्भ गिराने की मंजूरी देने के साथ ही हाईकोर्ट ने अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि रेप के बाद पैदा हुआ बच्चा पीड़िता के लिए उसके साथ हुई दरिंदगी की याद पूरी उम्र दिलाता रहेगा। यह गर्भ बच्ची के साथ हुए अपराध से बना है। यह उसके शरीर और आत्मा के साथ हुए निर्मम अपराध की एक गवाही है। इसी के साथ न्यायालय ने कहा कि दुष्कर्म के बाद पैदा हुए बच्चे का जीवन भी आम बच्चे की तरह नहीं हो सकता। ऐसे अनचाहे बच्चे का जीवन तानों से भरा रहने की संभावना रहती है। ऐसे में मां और बच्चे को सामाजिक कलंक झेलना पड़ता है और पूरी जिंदगी कैद में रहना पड़ता है। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि जिंदगी सिर्फ सांस लेने का ही नाम नहीं है, बल्कि सम्मान के साथ जीना असल में जिंदगी होता है।  

 

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