पेट के लिए नहीं, बल्कि साइकिल खरीदने के लिए की खेत में दिहाड़ी-मजदूरी

Edited By vinod kumar, Updated: 30 Apr, 2020 04:32 PM

पेट की आग बुझाने के लिए अपने घरों से सैकड़ों किलोमीटर दूर पंजाब में रह रहे प्रवासी मजदूरों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि एक वक्त ऐसा भी आएगा जब उन्हें रोटी के लिए नही बल्कि साइकिल खरीदने के लिए खेत में दिहाड़ी-मजदूरी करनी पड़ेगी।

राेहतक(दीपक): पेट की आग बुझाने के लिए अपने घरों से सैकड़ों किलोमीटर दूर पंजाब में रह रहे प्रवासी मजदूरों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि एक वक्त ऐसा भी आएगा जब उन्हें रोटी के लिए नही बल्कि साइकिल खरीदने के लिए खेत में दिहाड़ी-मजदूरी करनी पड़ेगी।

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साइकिल पर कुछ खाने-पीने का सामान, कुछ कपड़े, हवा भरने का पंप और थोड़ा सा पानी लेकर करीब 750 किलोमोटर के सफर पर प्रवासी मजदूर निकल पड़े।लक्ष्य था किसी भी हालत में घर पहुंचना। मजदूरों का कहना है कि लॉकडाउन की वजह से पंजाब के बठिंडा में फंस गए थे। गांव पहुंचना था, इसलिए साइकिल खरीदने के लिए दिहाड़ी की थी।

पंजाब से झांसी(यूपी) तक करीब 750 किलोमीटर का सफर तय करने के लिए कुछ प्रवासी मजदूर साइकिल पर निकल पड़े। ये मजदूर सैकड़ों किलोमीटर का सफर साइकिल पर ही तय करेंगें। इससे पहले भी मजदूर बड़ी संख्या में लॉकडाउन के दौरान पैदल ही घर पहुंचे थे, लेकिन पंजाब के बठिंडा में गए इन मजदूरों ने दो वक्त की रोटी के लिए नहीं बल्कि साइकिल खरीदने के लिए खेतों में दिहाड़ी मजदूरी की थी, ताकि पैदल चलने की बजाए साइकिल से घर तक का सफर तय किया जाए।

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मजदूरों का कहना है कि लाॅकडाउन की वजह से बठिंडा में फंस गए थे, खाने पीने को लेकर काफी दिक्कतें आ रही थी। तभी हमने तय किया कि दिहाड़ी मजदूरी कर कुछ पैसे कमाए जाए। ताकि साइकिल खरीद कर घर जाया जा सके। उन्हाेंने कहा कि केवल साइकिल खरीदने के लिए दिहाड़ी मजदूरी की थी। अब सवाल ये उठता है कि मजदूरों की हर जरूरत पूरी करने का दावा करने वाली सरकार आखिर कहा है, यही  नहीं सीमाओं को सील करने वाला प्रसाशन भी इन मजदूरों को क्यों नहीं राेक पाया। 

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