कुरुक्षेत्र पुलिस के 43 याची पुलिसकर्मियों को जारी करें उनके वेतन लाभ:हाईकोर्ट

Edited By Punjab Kesari, Updated: 07 Jun, 2017 08:09 AM

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चौधरी भजन लाल की सरकार में अपनी मांगों को लेकर सैकड़ों हरियाणा पुलिसकर्मियों द्वारा 26 साल पहले स्ट्राइक करने को लेकर इन्हें...

चंडीगढ़ (बृजेन्द्र):चौधरी भजन लाल की सरकार में अपनी मांगों को लेकर सैकड़ों हरियाणा पुलिसकर्मियों द्वारा 26 साल पहले स्ट्राइक करने को लेकर इन्हें नौकरी से बर्खास्त कर वापस रखने के बाद नौकरी से निकाले गए समय को लेकर नियमित कर्मियों को 50 प्रतिशत वेतन वापसी के रूप में ‘बैक वेजिस’ देने और प्रोबेशन पर तैनात कर्मियों को उनका हक न देने के मामले में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने अहम सुनवाई करते हुए कुरुक्षेत्र पुलिस के 43 याची पुलिसकर्मियों को उनका हक जारी करने के आदेश दिए हैं। हाईकोर्ट ने समान उपचार के ‘समान बर्ताव के सिद्धांत’ को अपनाते हुए हरियाणा सरकार को यह आदेश दिए। कोर्ट ने कहा कि याचियों को भी 50 प्रतिशत वेतन वापसी का लाभ प्रदान किया जाए। 

याचियों के साथ भेदभाव करने के आरोपों वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट जस्टिस राजीव नारायण रैना की कोर्ट ने यह आदेश जारी किए हैं। याची पक्ष की तरफ से केस की पैरवी करते हुए एडवोकेट एस.एस. खरब ने दलील दी कि एक प्रकार के ही अनाचरण को लेकर सैकड़ों कर्मियों को नौकरी से बर्खास्त किया गया था। जिसके बाद नियमित कर्मियों को वापिस रखते हुए बिना दंडित किए 50 प्रतिशत वेतन जारी करने का लाभ दे दिया गया और प्रोबेशन पर कार्यरत कुछ कर्मियों को इस लाभ से वंचित रखा गया। 

दिसम्बर, 2004 में तत्कालीन डी.जी.पी. ने 50 प्रतिशत बैक वेजिस का लाभ जारी किया था मगर उनके बाद आए डी.जी.पी. ने उस आदेश को खारिज कर दिया था। याची पक्ष ने दलीलें दी कि रिकार्ड पर एक प्रकार की सामग्री होने के बावजूद विपरीत आदेश जारी नहीं किए जा सकते। इससे पहले याचियों की मांग को निचली अदालत ने खारिज कर दिया था, जिसे हाईकोर्ट में वर्ष 2015 में संविधान के अनुच्छेद 14 की उल्लंघना बताते हुए चुनौती दी गई थी जो समानता का अधिकार देता है। हरियाणा पुलिस संगठन की मांगों में राशन रकम, यूनिफार्म अलाऊंस, पुलिसकर्मियों के लिए ज्यादा मकान आदि की मांगें शामिल थी।

कोर्ट की टिप्पणी:-
जस्टिस रैना ने आदेशों में कहा कि दंडकारी प्राधिकारी ने एक प्रकार की स्थिति में अन्य पुलिसकर्मियों के समान ही याचियों से बर्ताव नहीं किया। जब मामले में अनुचित भेदभाव संदेह से परे साबित हो जाए तो सिविल कोर्ट को संविधान के अनुच्छेद 14 के सिद्धांत को लागू करने से इनकार करते हुए नहीं बैठ जाना चाहिए। अधीनस्थ अदालतें भी कानून की समान रक्षक हैं और मुख्य केस और अपीलों में समान रूप से अनुच्छेद 14 के संबंध में कार्रवाई करने के लिए प्रतिबद्ध है। ट्रायल कोर्ट ने सरेंडर करते हुए इसके अधिकार क्षेत्र में आती कार्रवाई करने से इंकार कर दिया। वहीं अपील कोर्ट ने समानता के सिद्धांत पर विचार नहीं किया और जांच को सही और निष्पक्ष कहते हुए अपना अधिकार क्षेत्र सीमित रख लिया।

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