चौटाला व हुड्डा के किले में सेंध की तैयारी में भाजपा

Edited By Punjab Kesari, Updated: 29 Nov, 2017 01:48 PM

bjp ready for dent in chautala and hooda

एक ही दिन में जाट नेता यशपाल मलिक व सांसद राजकुमार सैनी की समानांतर रैलियों के चलते प्रदेश की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। भाजपा ने इनैलो व हुड्डा के जाट वोट बैंक में सेंध लगाने की तैयारी कर ली है। हालांकि इसकी रणनीति गुजरात मतदान के बाद जाहिर की...

कैथल(रणवीर पराशर):एक ही दिन में जाट नेता यशपाल मलिक व सांसद राजकुमार सैनी की समानांतर रैलियों के चलते प्रदेश की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। भाजपा ने इनैलो व हुड्डा के जाट वोट बैंक में सेंध लगाने की तैयारी कर ली है। हालांकि इसकी रणनीति गुजरात मतदान के बाद जाहिर की जाएगी, लेकिन यह तय है कि पार्टी ने रणनीति को अंतिम रूप दे दिया है। वर्ष 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव के दृष्टिगत पार्टी प्रमुख अमित शाह व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जाटों व गैर जाटों के लिए खास मुद्दे तराशने की जिम्मेदारी केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह को सौंपी है। आने वाले दिनों में उनका कद बढऩे की सम्भावना है।

बीरेंद्र सिंह ऐसे राजनीतिज्ञ हैं, जिनकी हरियाणा में खासी पैठ है और भाजपा इसे भुनाने में कसर नहीं छोडऩे वाली। बीरेंद्र सिंह व अभय चौटाला की एक मंच पर उपस्थिति ने नए समीकरणों के संकेत दिए हैं, बेशक मंच सामाजिक ही था।सांसद राजकुमार सैनी की 26 नवम्बर की रैली के बारे में अफवाह थी कि रैली नहीं होगी व हुई तो लोग नहीं पहुंचेंगे, लेकिन रैली भी हुई और गैर जाटों में सैनी को दिग्गज रणनीतिकार नेता के रूप में स्वीकार किया गया।इस भीड़ के जो मायने निकाले गए हैं उसका गणित काफी हद तक सांसद सैनी के तयशुदा आंकड़ों से मेल खाता है। रैली में केंद्रीय राज्यमंत्री उपेंद्र कुशवाहा की उपस्थिति से सैनी के लोक सुरक्षा मंच को पंख लग गए हैं व रैली के 2 दिन बाद भी चर्चा है कि भाजपा के भीतर सांसद की घुसपैठ कम नहीं है, उनकी बोलबाणी को भाजपा का एक शीर्ष वर्ग खुला समर्थन भी दे रहा है।

यही कारण है कि जाट हार्ट-लैंड जींद में गैर जाटों की बड़ी रैली करके खुद सांसद राजकुमार सैनी ने अपने ही पार्टी नेतृत्व को यह संदेश दे दिया है कि जमात से बड़ा न तो कोई नेता है और न ही दल। दूसरी ओर जाट नेता यशपाल मलिक भी जाट राजनीति के दिग्गज साबित हुए हैं, उनकी रैली में केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह व अभय चौटाला की मौजूदगी ने साबित कर दिया कि जाटों के अधिकारों के लिए मलिक के संघर्ष पर अब विराम नहीं लगेगा। हालांकि विभिन्न वर्गों के नाम पर भूपेंद्र हुड्डा इससे किनारा कर गए। लेकिन राजनीतिक समीक्षक मानते हैं कि हुड्डा ने जसिया रैली में न जाकर जो संकेत दिए हैं, वह उसी प्रकार की रणनीति का हिस्सा माने जा रहे हैं जो कभी पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला सभी जातियों व बिरादरियों के लिए बराबरी का सम्मान व हक देने की वकालत करते थे।

हुड्डा को उम्मीद है कि उनके इस कदम से गैरजाटों में उनकी पैठ और मजबूत होगी, जबकि चौधरी बीरेंद्र सिंह का मानना है कि सामाजिक और राजनीतिक मंचों को समान दृष्टि से नहीें आंकना चाहिए, सामाजिक मसलों पर राजनीतिज्ञों को भटकना नहीं चाहिए। केंद्रीय मंत्री ने सम्पर्क करने पर कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करिश्माई व्यक्तित्व अगले चुनावों में भी अपना जलवा बिखेरेगा। समीक्षकों को इस तथ्य पर कोई ताज्जुब नहीं है कि एक ठोस रणनीति के तहत ही चौधरी बीरेंद्र सिंह को जाटों के इस सम्मेलन में भेजा गया, क्योंकि जाट आरक्षण के बाद की परिस्थितियां भाजपा के अनुकूल नहीं रही थी।
 

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