साढ़े 5 माह दौरान किसान आंदोलन में आए कई उतार-चढ़ाव!

Edited By Manisha rana, Updated: 10 May, 2021 12:41 PM

farmers  movement during the last five and a half months

केंद्र सरकार द्वारा लागू तीन कृषि बिलों के खिलाफ पिछले करीब साढ़े 5 माह से चल रहे किसान आंदोलन के दौरान जहां कई उतार चढ़ाव देखने को मिले वहीं अब इस आंदोलन में एक ऐसा दौर आया...

चंडीगढ़ (संजय अरोड़ा) : केंद्र सरकार द्वारा लागू तीन कृषि बिलों के खिलाफ पिछले करीब साढ़े 5 माह से चल रहे किसान आंदोलन के दौरान जहां कई उतार चढ़ाव देखने को मिले वहीं अब इस आंदोलन में एक ऐसा दौर आया है जब इस आंदोलन की गति थोड़ी मंद पड़ी है, जिसका कारण साफ है कि किसान फसली सीजन में व्यस्त हैं चूंकि गेहूं कटाई के बाद किसान अपनी उपज को लेकर मंडी में पहुंचा तो साथ ही अगली फसल की तैयारी भी किसानों को करनी पड़ी और इसके अलावा इसी बीच कोरोना के संक्रमण ने भी काफी फैलाव किया जिस वजह से आंदोलन थोड़ा मंद दिखाई दिया। किसान नेताओं की मानें तो जुलाई माह में यह आंदोलन फिर से तेज होने की संभावना है। इस बीच इस दो माह के अंतराल में माना जा रहा है कि केंद्र सरकार भी इसका कोई हल निकाल सकती है ताकि किसान आंदोलन को समाप्त करवाया जा सके।

बहरहाल, किसानों का आंदोलन जारी है और दिल्ली के सीमांत  इलाकों टिकरी और सिंघू बॉर्डर पर किसान धरने पर बैठे हैं। यह अलग बात है कि अब पहले की तुलना में किसानों की संख्या थोड़ी कम जरूर हुई है। फसलीय सीजन में किसानों की व्यस्तता और कोविड के बढ़ते संक्रमण के बीच अब किसानों की महापंचायतों पर भी ब्रेक लग गया है तो अब किसान बॉर्डर इलाकों में कोरोना को लेकर उचित प्रबंध भी करते हुए नजर आ रहे हैं। किसान संगठनों की ओर से कोरोना संक्रमण को लेकर नियमित रूप से पूरे क्षेत्र को सैनेटाइज करवाया जाता है। हालांकि किसान गेहूं की कटाई और कढ़ाई कर अपनी फसल भी बेच चुके हैं। हरियाणा में फिलहाल मंडियों में गेहूं की खरीद का कार्य कोविड के चलते बंद है। पंजाब और हरियाणा दोनों ही राज्यों में धान की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। इस बार हरियाणा में 13 लाख जबकि पंजाब में 29 लाख हैक्टेयर में धान की काश्त का लक्ष्य रखा गया है। चूंकि धान की काश्त का काम जून माह में शुरू होता है जबकि फिलहाल किसान नरमे की बिजाई में जुटे हैं। ऐसे में संभावना है कि किसानों का आंदोलन फसलीय सीजन के बाद जुलाई माह में फिर से तेज हो सकता है।

आंदोलन के अब तक ऐसे रहे रंग
गौरतलब है कि पिछले करीब साढ़े 5 माह से किसानों का आंदोलन जारी है। 26 नवम्बर को किसानों ने दिल्ली की ओर कूच किया था। इस अवधि में किसान आंदोलन के अलग-अलग रंग देखने को मिले है। पंजाब के किसान नेताओं के हाथ से किसान आंदोलन की कमान उत्तरप्रदेश के राकेश टिकैत के हाथों में आई। फरवरी और मार्च के महीनों में किसानों ने हरियाणा, राजस्थान में महापंचायतों का आयोजन किया। 29 अप्रैल को भिवानी महापंचायत हुई। कोरोना के बढ़ते संक्रमण के बीच हुई इस महापंचायत पर सवाल उठे तो किसान संगठनों ने अभी महापंचायत न करने का निर्णय लिया।

इस बीच कोविड के बढ़ते संक्रमण और किसानों की ओर से नरमा और अन्य फसलों की बिजाई में व्यस्त होने के चलते अभी किसान आंदोलन की धार धीमी पड़ी हुई है। हरियाणा में इस बार 6 लाख 97 हजार हैक्टेयर में जबकि पंजाब में साढ़े 5 लाख हैक्टेयर में कॉटन की खेती करने का लक्ष्य रखा गया है। पूरे मई माह में बिजाई का सिलसिला चलने की उम्मीद है। उसके बाद जून के महीने में धान की रोपाई का सिलसिला तेज हो जाएगा। इस समय किसान लेबर का प्रबंध करने के अलावा धान की पनीरी तैयार करने में जुटा है। ऐसे में जून के बाद ही किसान आंदोलन के तेज होने की संभावना है। अब तक साढ़े पांच माह में किसान आंदोलन के रंग समय-समय पर बदलते रहे हैं। सामुदायिकता, सेवा और सौहार्द के रंग दिखे। 26 जनवरी को ङ्क्षहसा के भी कुछ रंग नजर आए तो 28 जनवरी को भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत के आंसू निकलने के बाद आंदोलन ने सियासी रंग भी लिया।

अब तक ऐसे चला आंदोलन
हरियाणा में सितम्बर माह से ही तीन कृषि कानूनों को लेकर किसानों की ओर से विरोध शुरू हो गया था। 10 सितम्बर को हरियाणा के पिपली में किसानों ने रैली रखी। इस दौरान किसानों पर लाठीचार्ज हुआ। इसके बाद 6 अक्तूबर 2020 को किसानों ने सिरसा में रैली की। इस रैली में कई किसान नेता व पंजाब के कलाकारों ने शिरकत की। इस रैली के बाद जैसे ही किसानों ने सिरसा के बरनाला रोड पर उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला व बिजली मंत्री रणजीत सिंह की कोठी की ओर कूच किया तो पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे और वाटर कैनन का इस्तेमाल किया। बाद में सिरसा में किसान शहीद भगत सिंह स्टेडियम में पड़ाव डालकर बैठे रहे।

विपक्षी दलों की ओर से भी इसे मुद्दा बनाया गया। इसी दिन कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी किसानों के समर्थन में ट्रैक्टर यात्रा लेकर हरियाणा पहुंचे। नवम्बर माह के दूसरे पखवाड़े में पंजाब के किसान हरियाणा के सीमावर्ती इलाकों में बैठ गए और इसके बाद पंजाब के किसान संगठनों ने 26 नवम्बर को दिल्ली कूच का ऐलान कर दिया। पंजाब के किसानों ने दिल्ली कूच के लिए हरियाणा के बॉर्डर इलाकों से होकर जाना था। हरियाणा सरकार ने 25 नवम्बर तक सभी बॉर्डर इलाकों को सील कर दिया। बड़े-बड़े पत्थर लगाए गए। कई लेयर की बैरिकेडिंग की गई। पर किसान नहीं रुके। सब कुछ हटाते हुए दिल्ली के ङ्क्षसघू, टिकरी, गाजीपुर बॉर्डर पर पहुंचे और वहां पर पड़ाव डाल लिया। इसके बाद हरियाणा के किसान भी यहां पहुंचने लगे। बाद में राजस्थान और पश्चिमी उत्तरप्रदेश के किसान भी आने लगे।

11 दौर की वार्ताओं में भी नहीं निकला कोई हल
किसान नेताओं के साथ केंद्र सरकार ने 4 दिसम्बर 2020 को पहली वार्ता की। अब तक 11 दौर की वार्ताएं हुई मगर अभी तक इस दिशा में कोई हल नहीं निकल पाया है। 30 दिसम्बर 2020 को हुई वार्ता में केंद्र सरकार ने किसानों की 4 में से दो मांगों को मंजूर कर दिया। 21 जनवरी को कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर की ओर से किसानों को 18 माह तक तीनों कानून लागू न करने की भी बात कही। किसान नेता नहीं माने। 26 जनवरी को किसानों की ओर से दिल्ली में ट्रैक्टर परेड निकाली गई। इस दौरान कई जगहों पर हिंसा की घटनाएं हुई। पुलिस के साथ झड़प हुई। लाल किले पर काफी भीड़ पहुंच गई। वहां पर निशाना साहिब फहराया गया। दिल्ली पुलिस ने लाल किले प्रकरण को लेकर 200 से अधिक किसानों पर मामले दर्ज किए। पंजाबी फिल्म अभिनेता दीप सिद्धू सहित करीब 120 लोगों को गिरफ्तार किया गया। इस घटना के बाद आंदोलन का रुख ही बदल गया। किसान नेताओं ने भी लाल किले की घटना से स्वयं को दूर बताते हुए इसे साजिश बता दिया।

दिल्ली की घटना को छोड़ शांतिपूर्ण रहा है आंदोलन
पिछले करीब साढ़े पांच माह से चल रहे किसान आंदोलन में कई उतार-चढ़ाव रहे हैं। 26 जनवरी की दिल्ली की घटना को छोड़ दें तो यह आंदोलन अब तक पूरी तरह से शांतिमय तरीके से चला है। आंदोलन को लेकर किसान नेताओं पर मुकद्दमे हुए। फिर राकेश टिकैत ने 28 जनवरी को रोते हुए अपना दर्द जाहिर किया तो आंदोलन की धार फिर से तेज हो गई। किसान नेताओं का भी मानना है कि फसली सीजन पूरा होने के बाद जुलाई में आंदोलन फिर से तेज गति पकड़ेगा। इस समय किसान नरमे की फसल की बुआई में जुटे हैं। जबकि 15 जून के बाद बासमती और मुच्छल धान का सीजन है। इसके बाद किसान थोड़ा काम से फ्री हो जाएंगे। इस बीच इन दो से अढ़ाई माह की अवधि में केंद्र सरकार भी किसी तरह से आंदोलन को समाप्त करवाने की पहल कर सकती है। किसानों के इस लम्बे होते आंदोलन का भाजपा को राजनीतिक नुक्सान तो हो ही रहा है, इससे दिल्ली के सीमांत इलाकों में सुरक्षा प्रबंधों पर भी पैसा खर्च हो रहा है।

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