कमल छोड़ हाथ थामने की तैयारी में भाजपा नेता

Edited By Deepak Paul, Updated: 16 Sep, 2018 10:40 AM

bjp leader in preparing to quit kamal

विधानसभा क्षेत्र से भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ चुके एक नेता इन दिनों भाजपा से बगावत कर फिर से कांग्रेस पार्टी का दामन थामने का मन बना चुके हैं। नेता जी इन दिनों अपने समर्थकों से रायशुमारी में व्यस्त हैं। समर्थक सोशल मीडिया पर अपने नेता जी की भाजपा...

पुन्हाना: विधानसभा क्षेत्र से भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ चुके एक नेता इन दिनों भाजपा से बगावत कर फिर से कांग्रेस पार्टी का दामन थामने का मन बना चुके हैं। नेता जी इन दिनों अपने समर्थकों से रायशुमारी में व्यस्त हैं। समर्थक सोशल मीडिया पर अपने नेता जी की भाजपा छोडऩे की घोषणा कर चुके हैं परंतु नेता जी हैं कि फिर से असमंजस में पड़ गए हैं। कभी प्रदेश के मुखिया की बुराई करते नजर आते हैं, तो कभी पार्टी के पक्ष में अखबारों की सुर्खियां बनते नजर आते हैं। नेताजी ने अपना चुनाव प्रचार शुरू कर दिया है। जनसभा के पोस्टर से कमल का फूल और भाजपा नेता हो चुके हैं। 
 

गौरतलब है कि नेताजी ने पार्टी सिंबल पर चुनाव लड़ा और हार गए। हार के बाद नेताजी को पार्टी में बड़े ओहदे की उम्मीद थी। परंतु पार्टी के नेताओं ने नेताजी को ज्यादा भाव नहीं दिया, यहां तक की पार्टी की रैलियों में नेताजी को उचित सम्मान नहीं मिला। पार्टी के रवैये से नेताजी को निराशा और हताशा हाथ लगी। अपने शांत स्वभाव के लिए मशहूर नेताजी ने उम्मीद नहीं छोड़ी और धैर्य बनाए रखा। पार्टी नेताओं के चक्कर काटते रहे और सभी पार्टी कार्यक्रमों में अपनी हाजिरी लगाते रहे। बीच में नेताजी के ज्यादा विरोध के कारण उन्हें संगठन में चेयरमैनी देकर खुड्डे लाइन लगा दिया गया और कुछ ग्रांटे भी दी गईं। नेताजी को पुन्हाना के मौजूदा विधायक से भारी चिढ़ थी। 

परंतु पार्टी आलाकमान ने नेताजी की परवाह न करते हुए विधायक को पहले चेयरमैन फिर राज्यमंत्री का दर्जा दे दिया। जिससे नेताजी के जले पर नमक भी पड़ गया। गांव की सरपंची जीतकर उन्हें थोड़ी राहत मिली। परंतु सरपंची के चक्कर में गांव के पुराने लोगों से बैैर बना बैठे। पार्टी के परम्परागत वोटों के दुख-दर्द में शामिल न होने के कारण जनता के बीच उनकी लोकप्रियता कम होती गई। लगातार हो रही अनदेखी व पार्टी में विधायक के बढ़ते प्रभाव के कारण नेताजी को अब अगली टिकट की भी कोई उम्मीद नहीं रही। 

छोड़ी हुई टिकट नेताजी लेना नहीं चाहते। ऐसे में नेताजी के पास पार्टी छोडऩे के अलावा कोई विकल्प नहीं। नेताजी ने कांग्रेस से संपर्क साधना शुरू कर दिया। एक-दो बार गुप्त बैठकें 
भी हुईं। 
 

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