Edited By Gaurav Tiwari, Updated: 03 May, 2025 07:25 PM

सावित्री देवी डालमिया यानि ‘साबो’ का जीवन केवल पारिवारिक जिम्मेदारियों तक सीमित नहीं रहा ; वह एक सशक्त सोच की प्रतीक थीं। उन्होंने जिस तरह से शिक्षा को अपनाया, वैसा उस समय दुर्लभ था, विशेषकर महिलाओं के लिए।
गुडग़ांव, (ब्यूरो): ‘साबो’ नाम केवल एक माँ के स्नेहिल नाम का स्मरण नहीं है अपितु यह एक विचार है — कैसे एक महिला, जिनका जन्म बीसवीं सदी के आरंभिक दशकों में हुआ था, अपने समय से आगे सोचकर बेटियों की शिक्षा, स्वावलंबन और संस्कृति के बीच एक सेतु बन गईं। बनारस की गलियों में केवल इमारतें नहीं, बल्कि कहानियाँ सांस लेती हैं — परंपरा, प्रेम और परिवर्तन की कहानियाँ। इन्हीं कहानियों में एक नया अध्याय जुड़ रहा है: ‘साबो’। बनारस शहर की गहमा गहमी के बीच विकसित हो रहा ‘साबो होटल’ कोई आम होटल नहीं, बल्कि एक भावनात्मक विरासत है जिसे सावित्री देवी डालमिया की स्मृति में उनके पुत्र कुणाल डालमिया ने रचा है।
सावित्री देवी डालमिया यानि ‘साबो’ का जीवन केवल पारिवारिक जिम्मेदारियों तक सीमित नहीं रहा ; वह एक सशक्त सोच की प्रतीक थीं। उन्होंने जिस तरह से शिक्षा को अपनाया, वैसा उस समय दुर्लभ था, विशेषकर महिलाओं के लिए। अंग्रेजी माध्यम स्कूल में पढऩा, साहित्य से प्रेम, बागवानी और आत्मनिर्भरता जैसे शौक उन्होंने उस दौर में चुने जब स्त्रियाँ घर की चारदीवारी में ही परिभाषित होती थीं।
आज उन्हीं आदर्शों को मूर्त रूप दे रहा है होटल ‘साबो’ — वाराणसी के ऐतिहासिक भेलूपुर स्थित डालमिया भवन में। कुणाल डालमिया न केवल एक लक्जऱी हेरिटेज होटल बना रहे हैं, बल्कि एक संवेदनशील स्मारक भी, जो उनकी माँ की यादों, आदर्शों और बनारसी संस्कार को एक साथ पिरोएगा। होटल की छत पर सब्जय़िों की खेती करने की योजना इस बात का प्रतीक है कि कैसे एक माँ की छोटी-सी आदत, एक पीढ़ी के जीवनदर्शन का हिस्सा बन सकती है। ‘साबो’ उन यात्रियों के लिए एक आमंत्रण है, जो केवल ठहरने की जगह नहीं, बल्कि उस शहर की आत्मा को अनुभूत करना चाहते हैं, जहाँ घाटों पर भक्ति बहती है और गलियों में इतिहास गूंजता है। शाबो एक ऐसे कालखंड की पुनर्रचना है, जहाँ घरों में शिक्षा, गरिमा और जड़ों से जुड़े रहना, असली संपदा मानी जाती थी। सावित्री देवी का जीवन उस संतुलन का उदाहरण था जिसमें परंपरा और आधुनिकता सह-अस्तित्व में थे।
‘साबो’ एक माँ के सादगीपूर्ण परंतु प्रभावशाली जीवन को समर्पित है। यह हमें यह भी सिखाता है कि विरासत केवल दीवारों और जमीन से नहीं बनती, वह उन मूल्यों से बनती है जो हमें एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक आगे बढ़ाते हैं।