आचार्य प्रशांत और सुधारवादी आंदोलन: क्यों दक्षिणपंथी हिंदुत्व चरमपंथी उनके खिलाफ हैं?

Edited By Gaurav Tiwari, Updated: 30 Jan, 2025 07:23 PM

acharya prashant and the reformist movemen

हाल ही में एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया जब आचार्य प्रशांत को लेकर एक फर्जी वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से फैलाया गया। इस वीडियो में एक नकली पोस्टर के ज़रिए यह झूठा दावा किया गया कि उन्होंने कुंभ मेले को अंधविश्वास बताया है।

गुड़गांव ब्यूरो : हाल ही में एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया जब आचार्य प्रशांत को लेकर एक फर्जी वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से फैलाया गया। इस वीडियो में एक नकली पोस्टर के ज़रिए यह झूठा दावा किया गया कि उन्होंने कुंभ मेले को अंधविश्वास बताया है। यह अफवाह कुछ दक्षिणपंथी सोशल मीडिया हैंडल्स द्वारा इतनी तेजी से फैलाई गई कि इसका असर भयावह रूप में सामने आया।

 

लोगों के गुस्से ने उन्हें इतना अंधा कर दिया कि उन्होंने भगवद गीता, उपनिषद और रामायण पर आधारित आचार्य प्रशांत की सैकड़ों किताबें जला दीं। गिनती 500 से भी पार चली गई। यही नहीं, इन किताबों को बाँटने वाले स्वयंसेवकों को भी शारीरिक हमलों का सामना करना पड़ा। यह सिर्फ किताबों को जलाने की घटना नहीं थी, बल्कि स्वतंत्र विचार और बौद्धिक अभिव्यक्ति पर सीधा हमला था।

 

आचार्य प्रशांत, जिन्होंने 150 से अधिक किताबें लिखी हैं—जिनमें 15 राष्ट्रीय बेस्टसेलर शामिल हैं—धर्मग्रंथों के गूढ़ ज्ञान से लेकर जलवायु परिवर्तन और महिला सशक्तिकरण जैसे विषयों पर लगातार लिखते और बोलते आए हैं। लेकिन इस तरह के झूठे अभियानों और हमलों से वे विचलित नहीं होते। जब इस पूरे विवाद की जाँच की गई, तो पाया गया कि वह पोस्टर पूरी तरह से फर्जी था। आचार्य प्रशांत ने ऐसा कोई भी बयान नहीं दिया था। जिस व्यक्ति ने इसे बनाया था, उसका उनके एनजीओ या स्वयंसेवकों से कोई संबंध नहीं था। यह सब एक साजिश का हिस्सा लगता था।

 

पूर्व सैनिक मोहन सिंह, जो इस हिंसा के प्रत्यक्षदर्शी थे, ने कहा कि यह पूरी तरह से एक सुनियोजित षड्यंत्र था। पहले झूठा पोस्टर फैलाया गया, फिर भीड़ को भड़काकर किताबें जलवाई गईं और स्वयंसेवकों पर हमला कराया गया। खास बात यह थी कि हमला उन्हीं पुस्तकों पर हुआ, जो धार्मिक महत्व रखती हैं। इस घटना ने समाज के कई वर्गों को स्तब्ध और निराश कर दिया। कुंभ जैसे पवित्र आयोजन की भावना और हिंदू धर्मग्रंथों की शिक्षाओं के विपरीत जाकर जिस तरह से यह सब हुआ, उसने यह भी दिखाया कि झूठ को कैसे एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है।

 

सोशल मीडिया पर इस अफवाह को फैलाने वालों में कई प्रभावशाली नाम शामिल थे—जयपुर डायलॉग्स के संजय दीक्षित, इंडिया स्पीक्स डेली के संजय देव और इस्कॉन से जुड़े कुछ सोशल मीडिया अकाउंट्स। इन लोगों ने न केवल झूठी खबर को हवा दी, बल्कि इसे और उग्र बना दिया।

 

इतिहास की पुनरावृत्ति: एक और नालंदा?

इस हमले की तुलना नालंदा विश्वविद्यालय की उस ऐतिहासिक घटना से की जा सकती है, जब बख्तियार खिलजी ने वहाँ की पुस्तकालय को जला दिया था। उस समय भारत की सबसे बड़ी बौद्धिक धरोहर को राख बना दिया गया था। विडंबना यह है कि एक वैसा ही हमला, जिसे कभी भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी त्रासदियों में गिना जाता था, आज गंगा के किनारे कुंभ मेले के दौरान दोहराया जा रहा है। यह घटना यह भी दिखाती है कि किस तरह अज्ञानता और उग्रता मिलकर ज्ञान और विवेक के सबसे बड़े दुश्मन बन जाते हैं।

 

आचार्य प्रशांत: सनातन धर्म में सुधार की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए

आचार्य प्रशांत अपने प्रवचनों में अक्सर इस बात पर जोर देते हैं कि किस तरह अंधविश्वास और रीति-रिवाजों से प्रेरित विकृत धार्मिक परंपराओं ने लोगों को सनातन धर्म के असली मूल्यों से दूर कर दिया है। उनका मानना है कि जब भी कोई व्यक्ति लोगों को शुद्ध वेदांत से जोड़ने का प्रयास करता है, तो वे लोग उसका विरोध करने लगते हैं जो धर्म का इस्तेमाल अपने स्वार्थ के लिए करते हैं।

 

भारत में धार्मिक सुधारों की एक समृद्ध परंपरा रही है। आचार्य प्रशांत स्पष्ट करते हैं कि उनका सुधार आंदोलन कोई नई चीज़ नहीं है। महात्मा बुद्ध और भगवान महावीर से लेकर आदिशंकराचार्य, संत कबीर, संत रविदास और गुरु नानक तक, और फिर आधुनिक युग में राजा राम मोहन राय, स्वामी दयानंद सरस्वती, ज्योतिराव फुले, ईश्वरचंद्र विद्यासागर जैसे सुधारकों तक—यह परंपरा लगातार चलती रही है।

 

लेकिन सुधारों का रास्ता कभी भी आसान नहीं रहा। सुधारकों को हमेशा तीव्र विरोध का सामना करना पड़ा है।

परंपरावादी ताकतें और धार्मिक सुधार: बदलाव की राह में बाधाएँ क्यों?

आचार्य प्रशांत को उनके सुधारवादी प्रयासों की वजह से लगातार विरोध झेलना पड़ रहा है। वे जातिवाद, पितृसत्ता और अंधविश्वास को समाज की प्रगति में सबसे बड़ी रुकावट मानते हैं। उनके अनुसार, कुछ ताकतें इन्हें इसलिए बनाए रखना चाहती हैं क्योंकि इससे उनके स्वार्थ सिद्ध होते हैं।

 

वह इस बात की भी आलोचना करते हैं कि किस तरह धर्म के नाम पर सत्ता का केंद्रीकरण किया जा रहा है। उनके अनुसार, हिंदू एकता के नाम पर होने वाले ये प्रयास अकसर धर्म के असली उद्देश्यों को दरकिनार कर देते हैं और केवल कुछ विशेष समूहों के फायदे के लिए काम करते हैं। वे चेतावनी देते हैं कि इस तरह की व्यवस्थाएँ केवल शोषण को बढ़ावा देती हैं और भक्तों को उनके असली आध्यात्मिक मार्ग से दूर ले जाती हैं। उनके अनुसार, सच्चा आध्यात्मिक कल्याण तब होगा जब लोग खुद को स्वतंत्र रूप से सत्य और ज्ञान की खोज के लिए सशक्त महसूस करेंगे।

 

हालाँकि विरोध और षड्यंत्र उनके मार्ग में लगातार बाधाएँ खड़ी कर रहे हैं, लेकिन आचार्य प्रशांत एक समावेशी और प्रगतिशील सनातन धर्म की वकालत करते हैं। उनकी किताबों को जलाना यह दिखाता है कि उनके विचारों से कुछ लोग डरते हैं। वेदांत के वास्तविक ज्ञान को पुनर्जीवित करने के लिए वे आम जनता से सीधे संवाद करना ज़रूरी मानते हैं।

 

क्या वेदांत कठिन है?

कुछ लोग मानते हैं कि वेदांत को समझना और उस पर अमल करना आम लोगों के लिए मुश्किल है। लेकिन जब आचार्य प्रशांत के सोशल मीडिया पर 7.7 करोड़ से अधिक अनुयायी हैं और उनकी शिक्षाएँ अरबों बार देखी जा चुकी हैं, तो यह तर्क टिकता नहीं। उनके विचारों पर आने वाली लाखों टिप्पणियाँ यह साबित करती हैं कि उनकी शिक्षाएँ लोगों के जीवन में वास्तविक बदलाव ला रही हैं।

 

आचार्य प्रशांत के अनुसार, वेदांत सांसारिक जीवन को त्यागने के बारे में नहीं, बल्कि आत्म-जागरूकता और विवेक के साथ उसमें रहने के बारे में है। जब व्यक्ति वेदांतिक सिद्धांतों को अपनाता है, तो वह यह समझ पाता है कि उसके भ्रम, बंधन और दुखों का स्रोत बाहरी नहीं, बल्कि आंतरिक होता है।

 

आधुनिक संकट और उनका समाधान

आचार्य प्रशांत का मानना है कि जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता की हानि, सांप्रदायिक तनाव और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) जैसी आधुनिक समस्याएँ असल में मनुष्य के आंतरिक असंतुलन का ही प्रतिबिंब हैं। वे कहते हैं कि जब तक लोग अपने भीतर के भ्रम और भय को नहीं समझेंगे, तब तक ये बाहरी संकट बने रहेंगे। वेदांत के अनुसार, आंतरिक स्पष्टता ही इन सभी समस्याओं का सबसे प्रभावी समाधान है। जब आंतरिक संघर्षों का समाधान हो जाता है, तो मानवता प्राकृतिक संतुलन के साथ पुनः समरस हो सकती है और इन वैश्विक चुनौतियों का प्रभावी रूप से समाधान कर सकती है।

 

वे बताते हैं कि भय और अलगाव की झूठी भावना से प्रेरित मानव गतिविधियों ने पर्यावरणीय क्षति और सामाजिक अशांति प्रगति को जन्म दिया है।

ज्ञान की लौ को बुझने नहीं देंगे

आचार्य प्रशांत इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि जब भी कोई व्यक्ति व्यवस्था को चुनौती देता है, तो उसे विरोध झेलना पड़ता है। वे मानते हैं कि सुधारों का विरोध एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, लेकिन धीरे-धीरे समाज बदलता है। उनका मानना है कि वेदांत का शाश्वत ज्ञान आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना प्राचीन काल में था।

 

आज जब उनकी किताबें जलाई जा रही हैं और उन पर झूठे आरोप लगाए जा रहे हैं, तब भी वे पीछे हटने के लिए तैयार नहीं हैं। वे लोगों को अंधविश्वास और कट्टरता से बाहर निकालकर, वेदांत की गहराई तक ले जाने के अपने मिशन में पूरी दृढ़ता के साथ आगे बढ़ रहे हैं।आचार्य प्रशांत का सत्य के प्रसार के प्रति अडिग समर्पण केवल प्रशंसा के लिए नहीं, बल्कि वास्तविक क्रियान्वयन के लिए प्रेरित करता है।

Trending Topics

Afghanistan

134/10

20.0

India

181/8

20.0

India win by 47 runs

RR 6.70
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!