बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा देने वाली सरकार में बेटियों से हो रही है नाइंसाफी : मनीषा

Edited By Deepak Paul, Updated: 20 Jan, 2019 01:14 PM

beti bachao beti teaching is the daughter in government giving sloganeering

कबड्डी वल्र्ड कप विजेता खिलाड़ी 6 वर्ष बीत जाने के बाद भी रोजगार पाने के लिए इधर-उधर भटक रही है तथा सरकार की बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ नीति को बेटी विरोधी बताते हुए सरकार की खेल नीति को....

टोहाना (वधवा): कबड्डी वल्र्ड कप विजेता खिलाड़ी 6 वर्ष बीत जाने के बाद भी रोजगार पाने के लिए इधर-उधर भटक रही है तथा सरकार की बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ नीति को बेटी विरोधी बताते हुए सरकार की खेल नीति को कोस रही है। एक तरफ  तो सरकार बेटियों को शिक्षित करने व भ्रूण हत्या पर अंकुश लगाने के लिए अनेक कदम उठाकर करोड़ों रुपए का बजट खर्च कर रही है। 

वहीं, दूसरी ओर जो बेटियां खेलों के माध्यम से देश का नाम रोशन कर रही हैं उन्हें खेल नीति से वंचित रखा जाता है। ज्ञात रहे वर्ष 2012 में पंजाब में कबड्डी वल्र्ड कप का आयोजन किया गया जिसमें गांव समैन की 2 बेटियों ने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन दिखाते हुए भारत देश को विजय दिलवाई। बेटियों का गांव में पहुंचने पर भव्य स्वागत किया गया और विशाल समारोह के तहत ग्रामीणों द्वारा सम्मानित किया गया। परिजनों के अनुसार सरकार की तरफ  से नौकरी दिलवाने का आश्वासन दिया गया था। उस उपरांत खिलाड़ी मनीषा गिल आज भी सरकारी नौकरी पाने के लिए दर-दर की ठोकरें खा रही है।

क्या कहती है विजेता खिलाड़ी

जब इस बारे वल्र्ड कप विजेता खिलाड़ी मनीषा गिल ने बताया कि है पिछले लंबे समय से कबड्डी खेलकर समाज व देश का नाम रोशन कर रही है। उसने अनेक बार प्रदेश स्तरीय खेलों में परचम लहराया है। वहीं वर्ष 2012 में गांव समैन से वल्र्ड कप कबड्डी खेल प्रतियोगिता के लिए उनका चयन किया गया था, जिसमें उन्होंने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन दिखाते हुए वल्र्ड कप जीतकर भारत की झोली में डाला। सरकार द्वारा नौकरी का आश्वासन देने के बावजूद भी उसे आज तक नौकरी नहीं दी गई। उसने बताया कि वह गरीब परिवार संबंधित है, परिवार चलाने के लिए अपने परिजनों के साथ कार्य में हाथ बंटाकर माता-पिता का सहयोग कर रही है। सरकार की स्वच्छ खेल नीतियों के अनुसार उसने सोचा था कि अब उसके परिवार के ऊपर से दुखों के बादल छंट जाएंगे, लेकिन उसे क्या पता था कि लंबे अंतराल के बाद भी सरकार उसकी कोई सुध नहीं लेगी। जिस कारण उन्हें मजबूरन न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा। उसने बताया कि सरकार द्वारा बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा इस तरह से खोखला साबित होता दिखाई दे रहा है।

क्या कहते हैं खिलाड़ी के माता-पिता

जब इस बारे विजेता खिलाड़ी के पिता धर्मवीर व माता से बात की गई तो उन्होंने बताया कि ग्रामीण सत्र के समाज में लड़कियों को घर से बाहर निकालना सही नहीं माना जाता। वहीं उन्होंने अपनी बेटियों को समाज व देश के नाम समॢपत करते हुए शिक्षा व खेलों के लिए प्रेरित किया। हर सफ ल प्रयास करते हुए उनकी बेटियां देश का नाम रोशन करने में सफल हुईं। खेल नीतियों के तहत सरकार अपने कत्र्तव्य को बेटियों के प्रति सही निभा नहीं पा रही है। 6 साल के लंबे अंतराल के इंतजार के बाद उपरांत उन्हें मजबूरन कोर्ट में दस्तक देनी पड़ी।

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