महिला दिवस पर भारत की पहली अध्यापिका को नमन

Edited By Updated: 07 Mar, 2017 02:21 PM

savitribai phule

हम भारत की पहली शिक्षिका के बारे में क्या और कितना जानते हैं? उस युग में जब भारत में महिलाओं के लिए शिक्षा एक कपोल कल्पना भर थी तो महात्मा ज्योतिबा

हम भारत की पहली शिक्षिका के बारे में क्या और कितना जानते हैं? उस युग में जब भारत में महिलाओं के लिए शिक्षा एक कपोल कल्पना भर थी तो महात्मा ज्योतिबा फुले ने महिला सशक्तिकरण में उनकी शिक्षा का मूल्य समझा। उन्हें अपना यह उद्देश्य पूरा करने हेतु कुछ अध्यापकों की आवश्यकता थी। ऐसे में उन्होंने अपनी अर्धांगिनी सावित्रीबाई फुले को बतौर शिक्षिका प्रशिक्षित किया। सावित्रीबाई पहली भारतीय शिक्षिका थीं जिन्होंने देश के शोषित वंचित वर्ग की कन्याओं को शिक्षा उपलब्ध करवाने के आंदोलन की शुरूआत की थी। सन् 1852 में उन्होंने अछूत कही जाने वाली कन्याओं के लिए एक स्कूल खोला था। आश्चर्य की बात है कि इतिहास की पुस्तकों में उनके बारे में नाममात्र ही उल्लेख मिलता है। कई अन्य समाज सुधारकों के साथ ही संभवत: उनका नाम भी इतिहास की पुस्तकों से गायब है।

 

लंदन यूनिवर्सिटी से एम.ए. तथा ब्रिटिश शेवेनिंग फैलोशिप अवार्डी अभिनय रमेश कहते हैं, ‘‘उस समय शिक्षा पर उच्च जातियों का ही वर्चस्व था, इसलिए उन्होंने सावित्री बाई तथा ज्योतिबा फुले के शैक्षिक कार्यों बल्कि उनके अस्तित्व को ही लोगों की यादों से मिटाने का प्रयास किया था। 18वीं शताब्दी के दौरान मात्र 17 वर्ष की आयु में सावित्रीबाई फुले भारत की सर्वाधिक कम आयु वाली अध्यापिका बनी थीं। कई लोगों का विचार है कि देश में अध्यापक दिवस उनके जन्मदिन पर मनाया जाना चाहिए क्योंकि उन्होंने उस दौर में शिक्षा व्यवसाय अपनाया जब सामाजिक दबाव के चलते कोई अध्यापक बनने की हिम्मत नहीं करता था।

 

सोसायटी फार सस्टेनेबल डिवैल्पमैंट आफ इनडिजिनैस वूमैन की प्रैजीडैंट छाया खोबरागड़े कहती हैं, ‘‘डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जीवन वृत्त का अध्ययन करने के बाद हमें उनके द्वारा शिक्षा में दिए गए योगदान के बारे अधिक कुछ नहीं मिला। सावित्रीबाई फुले एक वास्तविक शिक्षक के तौर पर पहचाने जाने की अधिकारी हैं। साथ ही उनके पति भी 19वीं शताब्दी के मध्य में शिक्षा का प्रचार-प्रसार करने में अग्रणी थे। यकीनन सावित्रीबाई का जन्मदिन अध्यापक दिवस के तौर पर मनाया जाना चाहिए।’’ अभिनय रमेश आगे कहते हैं, सावित्रीबाई ने जो अथक संघर्ष किया, उसे शिक्षा प्रणाली की शुरूआती कक्षाओं के सिलेबस का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। ग्रैजुएशन तथा पोस्ट ग्रैजुएशन का भी यह हिस्सा होना चाहिए। महिलाओं को शिक्षित करने तथा सशक्त बनाने में उनके तौर-तरीकों को महिलाओं की शिक्षा के सिलेबस में शामिल किया जाना चाहिए। इस पर और शोध भी होनी चाहिए। महाराष्ट्र सरकार को सावित्रीबाई के प्रयासों को पहचानने में वर्षों लग गए थे। साथ ही उनकी उपलब्धियों से मराठी लोग लम्बे समय तक अनभिज्ञ रहे जबकि उन्हें विशेष सम्मान दिया जाना चाहिए था।

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