Edited By Punjab Kesari, Updated: 07 Dec, 2017 11:39 AM
हरियाणा के गांवों में शराब के खिलाफ फिर आवाज उठने लगी है, शायद इसकी भनक सरकार को भी लग गई है, जिस कारण मुख्यमंत्री ने पहले ही उन गांवों में शराब की दुकानें नए वित्त वर्ष से नहीं खोलने को कहा है जहां ग्राम पंचायत सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर सरकार...
कैथल(पराशर):हरियाणा के गांवों में शराब के खिलाफ फिर आवाज उठने लगी है, शायद इसकी भनक सरकार को भी लग गई है, जिस कारण मुख्यमंत्री ने पहले ही उन गांवों में शराब की दुकानें नए वित्त वर्ष से नहीं खोलने को कहा है जहां ग्राम पंचायत सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर सरकार को भेजेगी। राज्य में शराबबंदी सियासी मुद्दा भी है। हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व. चौ.बंसी लाल ने 1996 का चुनाव राज्य में सम्पूर्ण शराबबंदी पर लड़ा था और वे सहयोगी दल भाजपा के साथ सत्ता में काबिज हो गए थे लेकिन बदली परिस्थितियों में शराबबंदी कामयाब नहीं हुई और फ्लॉप नीति के कारण राजनीतिक अस्थिरता का माहौल बना। 3 साल बाद ही उनकी सरकार भी गिर गई थी। अब अपराध पर नियंत्रण पाने के अपने प्रयासों में राज्य की भाजपा सरकार के मुखिया मनोहर लाल फिर एक ऐसी शराबबंदी राज्य में लाना चाहते हैं, जो सर्वसम्मत होगी।
जी हां, हर जगह नहीं बल्कि गांवों के बिगड़ रहे सामाजिक ताने-बाने को सुधारने के लिए ग्राम पंचायतों को कहा गया है कि जो भी ग्राम पंचायत सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर 31 दिसम्बर तक अपने संबंधित विभागीय अधिकारियों के माध्यम से सरकार को भेजेगी, उस गांव में शराब का ठेका नहीं खोला जाएगा। सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री की इस नई व सहमति से भरी पहल को गांवों में अच्छा खासा समर्थन मिलने की उम्मीद है फिलहाल मामला प्रारम्भिक स्टेज पर होने के कारण लोग जागरूक नहीं हुए हैं। बता दें कि कैथल जिले ने शराबबंदी के खिलाफ मुहिम को 23 साल पहले आवाज दी थी, जब गांव क्योड़क में शराब पीने वालों की खिलाफत करने के लिए महिलाएं लामबंद हो गई थीं। स्वयं चौ.बंसी लाल ने 1996 के विधानसभा चुनाव से पहले अपने चुनावी घोषणा पत्र में सत्ता में आने पर शराबबंदी लाने का वायदा किया था जो उन्होंने पूरा भी किया।
चुनावी सभाओं में बंसी लाल ने क्योड़क गांव का कई बार जिक्र भी किया और उन महिलाओं की तारीफ की थी, जो गांवों में पियक्कड़ों के आतंक से तंग होकर सम्पूर्ण शराबबंदी की मांग कर रही थी। आज सी.एम. मनोहर लाल के गोद लिए गांव क्योड़क में पंचायत प्रस्ताव पारित कर चुकी है लेकिन आबकारी नीति के चलते यहां से शराब के ठेके नहीं हट पाए हैं। मौजूदा मुख्यमंत्री भी शराब के प्रचलन के खिलाफ हैं, इसलिए उन्होंने उक्त फैसला लिया है। अब यह समय ही बताएगा कि सी.एम. की इस घोषणा का लाभ उठाने की पहल कौन सा जिला कब करता है और सवाल यह भी उठ रहा है कि सरकार पर हावी आबकारी विभाग की दादागिरी कब तक चलेगी क्योंकि विभाग का यह कहना है कि जब तक गांवों से अवैध बिक्री खत्म नहीं होती तब तक ठेके नहीं हट सकते बेशक पंचायत प्रस्ताव भी पारित कर दे।
शराब व अन्य नशों के जाल में फंसे हैं कई गांव
हरियाणा के सैंकड़ों गांवों में नशे का प्रचलन जोरों पर है। जिनमें शराब भी प्रमुख है। अपनी कमाई को लाल परी पर उड़ाने वाले पतियों व अन्य पुरुष जनों से महिलाएं प्राय: नाराज दिखती हैं, बेशक वे खौफ के कारण कुछ न कह पाएं लेकिन इतनी अवश्य बताती हैं कि घरों में झगड़े की जड़ शराब ही है। इसी प्रकार अन्य नशीले पदार्थों का प्रचलन युवाओं को पथभ्रष्ट कर रहा है।
पंचायतों को पुरस्कृत करे सरकार
क्योड़क गांव के सरपंच बलकार आर्य ने कहा है कि शराबबंदी का प्रयोग भले ही हरियाणा में 21 साल पहले विफल रहा हो लेकिन यदि आम जन को जागरूक करके इस मुहिम से जोड़ा जाए तो नीति कामयाब हो जाएगी। ऐसी पहल केवल गांवों में ही क्यों शहरी क्षेत्रों में भी की जानी चाहिए। सरकार को चाहिए कि पंचायतों को पुरस्कृत किया जाए जो अपनी ग्रामीण सीमा में शराबबंदी लागू करना चाहती हैं।
शराब ने विकृत की संस्कृति
कुतुबपुर गांव के पंच एवं जिला भाजपा किसान मोर्चा के उपाध्यक्ष सुरेश संधू ने कहा कि शराब का निरंतर प्रयोग करने वालों के संस्कार भी दूषित हुए हैं। अपराध को बढ़ावा देने में शराब सहित सभी प्रकार के नशों का बड़ा योगदान है। उन्होंने कहा कि इसलिए सरकार के ये प्रयास कारगर साबित हो सकते हैं कि पहले प्रयोग के तौर पर गांवों से सहमति ली जाए और उसके बाद वहां शराब की दुकान ही न खुले। हमारे गांव की पंचायत में हम विचार के लिए शीघ्र ही ऐसा प्रस्ताव लेकर आएंगे ताकि मुख्यमंत्री के सपने को पूरा किया जा सके
सी.एम. ने पटना में किया वायदा
हाल ही में पटना में अप्रवासी हरियाणवियों के एक सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने यह घोषणा की है कि जो गांव चाहेंगे वहां शराब की दुकान नहीं होगी। इस वायदे व घोषणा से निश्चित तौर पर उन ग्राम पंचायतों, जागरूक सामाजिक संगठनों व महिला समितियों को मजबूती मिलेगी जो शराब के खिलाफ हैं तथा नशे के खिलाफ गांवों में सक्रिय हैं।
सरकारी सहमति के बावजूद नहीं आया कोई प्रस्ताव
हालांकि सरकारी स्तर पर सैद्धांतिक तौर पर यह कहा गया है कि सर्वसम्मति प्रस्ताव पारित करने वाले गांवों में शराब की दुकान नहीं खुलेगी और इसके लिए 31 दिसम्बर तक आवेदन मांगे गए हैं परंतु अभी तक जिले के 277 गांवों में से एक ने भी ऐसा प्रस्ताव जिला पंचायत एवं विकास अधिकारी को नहीं भेजा है। जिससे स्पष्ट है कि सरकारी फरमान के बारे में अभी लोगों को पता ही नहीं चला। कुछ महीने पहले क्योड़क गांव ने ऐसा प्रस्ताव सरकार को भेजा था जिसके अनुरूप ठेका बंद नहीं हुआ।