Edited By Updated: 01 May, 2016 02:20 PM
1 मई अर्थात मजदूर दिवस। जिन मजदूरों के लिए यह दिवस आयोजित किया जाता है, उनमें से अधिकांश इस दिन के महत्व से अनजान हैं। मजदूरों के लिए तो...
शाहाबाद मारकंडा / कुरुक्षेत्र: 1 मई अर्थात मजदूर दिवस। जिन मजदूरों के लिए यह दिवस आयोजित किया जाता है, उनमें से अधिकांश इस दिन के महत्व से अनजान हैं। मजदूरों के लिए तो रोजाना घर से रोटी का डिब्बा लेकर लेबर चौक पर आना और अगर दिहाड़ी मिल गई तो ठीक वरना तयशुदा मजदूरी से भी कम पैसों में छोटा-मोटा कार्य करके दिहाड़ी बनानी पड़ती है। यही सच्चाई है कि मजदूरी करके पेट पालने वाले मजदूरों की।
मजदूरों का हर कोई शोषण करने को तैयार खड़ा है। पहले तो ठेकेदार कम दिहाड़ी देता है। अगर कोई मजदूर अपना हक मांगता है तो उसकी छुट्टी कर दी जाती है। अगर किसी मजदूर को दिहाड़ी नहीं मिलती तो वह घंटे-2 घंटे के लिए बहुत कम पैसों में कार्य करने को तैयार हो जाता है क्योंकि उसने कम से कम घर जाकर बच्चों को खाना तो खिलाना ही है।
जहां सरकार ने 1 मई को मजदूर दिवस घोषित कर छुट्टी का ऐलान किया हुआ है, वहीं इस दिन भी लेबर चौक पर मजदूर दिहाड़ी पर जाने के लिए तैयार खड़े मिलते हैं। अधिकांश मजदूरों को यह भी नहीं पता कि आज मजदूर दिवस है और इस दिन सरकार ने छुट्टी की घोषणा कर रखी है। शाहाबाद के मजदूर चौक पर रोजाना सुबह 8 बजे काम की तलाश में मजदूरों का जमावड़ा लगना शुरू हो जाता है। इन मजदूरों में ज्यादातर संख्या निकटवर्ती गांवों के लोगों की होती है।
यह लोग साइकिल से शाहाबाद पहुंचते हैं और इनमें से कुछ तो मिस्रियों के साथ नियमित रूप से बंधे हुए हैं लेकिन नए मजदूर को दिहाड़ी करने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है और शोषण का शिकार होना पड़ता है। काम न मिलने से मजबूर कुछ लोग तो कम पैसों में भी मजदूरी करने को तैयार हो जाते हैं। रमेश, सुनील, तरसेम व पवन ने बताया कि वह 10वीं कक्षा पास हैं मगर रोजगार न मिलने के कारण उन्हें मजदूरी करनी पड़ती है। कई बार उन्हें काम नहीं मिलता और किराया भी घर से देना पड़ता है।
शाहाबाद में आने वाले ज्यादातर मजदूर चिनाई का कार्य करते हैं। इन मजदूरों में कुछ नाबालिग भी होते हैं जो मजबूरीवश परिवार का पेट पालने के लिए मजदूरी करते हैं। गिरीश कोहली, रमेश मित्तल, राकेश गोयल व विक्की सेठी का कहना है कि मजदूर दिवस की सार्थकता तभी है जब सभी मजदूर संगठन एक होकर मजदूर शोषण के खिलाफ आवाज उठाएं और प्रदेश सरकार भी उनके हितों के बारे में सोचे। धर्मनगरी में नहीं लेबर चौक हैरत की बात है कि मजदूरों के लिए शहर में अब तक स्थायी लेबर चौक स्थापित नहीं किया गया।