तस्वीरों में देखें, कम उम्र में ही बुलंदियों को छूने वाले हरियाणा के खास टॉपर्स

Edited By Updated: 23 Jan, 2017 12:18 PM

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जिस प्रदेश की मिट्टी से यहां के लोगों की पहचान होती है जहां कि मिट्टी ने इस देश को कई बार शिखर पर पहुंचाया। आज हम उसी मिट्टी से तैयार हो रही युवाओं की पौध के बारे में आप को बताने जा रहे हैं।

हरियाणा:जिस प्रदेश की मिट्टी से यहां के लोगों की पहचान होती है जहां कि मिट्टी ने इस देश को कई बार शिखर पर पहुंचाया। आज हम उसी मिट्टी से तैयार हो रही युवाओं की पौध के बारे में आप को बताने जा रहे हैं। किसी ने क्या खूब कहा कि कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों। इन चंद लाइनों को हरियाणा की मिट्टी में पैदा हुए छोटे, हिम्मती, साहसिक पौध ने सार्थक कर दिखाया है। बात हो रही है उन जुनूनी लोगों की जो कुछ कर गुजरने की चाह रखते हैं। हम आज बात करेंगे ऐसी ही मिसालों की जिन्होंने छोटी उम्र में ही अलग-अलग क्षेत्रों मेंं बिना किसी सुविधाओं की हरियाणा की मिट्टी के साथ-साथ अपने जिले और अभिभावकों का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है। हम बात करेंगे अलग-अलग क्षेत्रों में उन टॉपर्स की जिन्होंने कम उम्र में ही बुलंदियों के आसमान पर अपना झंडा गाड़ दिया है। 

रोबो के नाम से जाने जाते हैं छात्र अर्श
पानीपत (राजेश सैनी):पानीपत डी.ए.वी. पब्लिक स्कूल थर्मल कालोनी के छात्र रहे अर्श शाह दिलबागी हाल ही में प्रिस्टन यूनिवसिर्टी, न्यूजर्सी यू.एस.ए. में कम्प्यूटर साईंस इंजीनियरिंग कर रहे हैं। जिन्हें 1 करोड़ 25 लाख की स्कोलरशिप दी गई है। साथ ही अर्श इंडियन स्टैंप फाउंडेशन, जो रबोटिक के कम्पीटिशन करवाती है उनके ब्रांड एम्बेस्डर भी है। बता दें कि अर्श शाह दिलबागी ने गूगल साईंस फेयर 2014 में वोटर च्वाईंस अवार्ड जीता और इंटल साईंस एजुकेशन फेयर में वन ग्रैंड अवार्ड और स्पैशल अवार्ड भी हासिल किए। इससे पूर्व अर्श इंडियन रोबोट ओलम्पियाड जीत चुका है और वर्ल्ड रोबोट ओलम्पियाड में भी मैडल हासिल कर चुका है। इसके अलावा मनथल डिजीटल अवार्ड भी जीता है। 

मिट्टी में खेलने की ललक ने बना दिया अंतर्राष्ट्रीय पहलवान 
मिट्टी में खेलने की एक बालक की ललक ने उसे योगी से कुश्ती स्टार ओलिम्पियन योगेश्वर दत्त बना दिया। ये वे नाम हो जो कुश्ती का जिक्र आते ही किसी भी प्रशंसक की जुबान पर सबसे पहले आता है। हाल ही में विवाह बंधन में बंधे योगी ने खुद भी कभी नहीं सोचा था कि एक दिन वे कुश्ती में ऐसा नाम कमाएगा लेकिन उसके गुरु मास्टर सतबीर ने गांव के अखाड़े में पहले दिन ही भांप लिया था कि ये बालक आगे जाकर कुश्ती में जरूर कुछ बड़ा काम करेगा। योगेश्वर ने 2 साल के कड़े परिश्रम के बाद 1992 में उन्हें पहली बार प्रतियोगिता में हिस्सा लेने का मौका मिला। हरियाणा स्टेट प्राथमिक स्कूल कुश्ती प्रतियोगिता में योगी ने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर सबको चकित कर दिया और पहला स्थान हासिल किया। इसके बाद यह क्रम निरंतर जारी रहा और राज्य से देश और देश से विदेश तक की धरती पर इस पहलवान की धाक जमने लगी। कॉमनवैल्थ में 2 बार देश को सोना दिलवाने वाला ये पहलवान दर्जनों राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय स्तर के पदक अर्जित कर चुका है। ओलिम्पिक में शानदार प्रदर्शन करते कांस्य पदक जीता था। सरकार ने इसकी उपलब्धियों को देखते हुए पुलिस में डी.एस.पी. के पद पर भर्ती किया। अब योगेश्वर को कभी भी एस.एस.पी. बनाया जा सकता है। 

स्केटिंग में उभरता हुआ सितारा अर्पित खत्री 
स्टूडैंट ओलिम्पिक गेम्स में स्केटिंग प्रतियोगिता में अव्वल रहने वाला सोनीपत का अर्पित खत्री पुत्र बलदीप सिंह खत्री स्केटिंग जगत में उभरता हुआ सितारा है। अंडर-14 की प्रतियोगिताओं में अॢपत ने पिछले 6 माह में स्केटिंग में नए मुकाम हासिल किए। सोनीपत स्केटिंग रोल बॉल के कप्तान अर्पित खत्री ने जिला स्कूली खेलों में जहां पहला स्थान प्राप्त किया है। वहीं, सब-जूनियर स्टेट चैम्पियनशिप में दूसरा स्थान प्राप्त किया है। वहीं, अंडर 14 में शानदार स्केटिंग करने वाले अर्पित खत्री को बैस्ट परफॉर्मैंस अवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है। अर्पित खत्री का सपना स्केटिंग में विश्व स्तर पर देश के लिए बेहतर प्रदर्शन करना है। अर्पित के मामा अधिवक्ता सुरेश मलिक ने बताया कि अॢपत शुरू से ही होनहार रहा है और अब जिला स्तर से शुरू होकर नैशनल स्तर तक खेल चुका है। स्कूली स्तर पर उसकी प्रतिभा को देखते हुए उन्हें उम्मीद है कि अर्त्पि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर धूम मचाएगा। अर्पित वर्तमान में शहर के साऊथ प्वाइंट स्कूल का विद्यार्थी है। 

अमित की लगन और ललक ने दी विकलांगता को मात
बेहद साधारण परिवार से संबंध रखने वाले अमित सरोहा के भी दूसरे युवाओं की तरह सपने थे और इन्हें पूरा करने के लिए इच्छा शक्ति भी लेकिन नीयति उससे कुछ और ही करवाना चाहती थी। 2007 में एक कार दुर्घटना में अमित को स्पाइनल कोड इन्जरी हो गई। इसके बाद उसके शरीर का निचला हिस्सा (पैरों वाला भाग) काम करना छोड़ गया। साथ ही दोनों हाथों की उंगली भी जवाब दे गई। एक हृष्ट-पुष्ट युवा बेबस और लाचार की तरह व्हील चेयर पर आ गया। लेकिन हिम्मत ने जवाब नहीं दिया लेकिन अमित ने इस विषम परिस्थिति में ऐसा कर दिखाया कि आज देश और प्रदेश उस पर नाज करता है। व्हील चेयर रग्बी खेलते हुए अमित ने पहली बार 2009 में राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। ये प्रतियोगिता बेंगलूरु में हुई थी। इसमें उसे कोई पदक तो नहीं मिला लेकिन जो हौसला यहां से अर्जित हुआ, उसने इस युवा का जीवन ही बदल दिया। इसके बाद धीरे-धीरे अमित ने एथलैटिक्स में हाथ आजमाना शुरू किया। अमित बताते हैं कि कड़ी मेहनत और मांग की प्रेरणा ने उसे लगातार हौसला दिया। पैरा खिलाड़ी अरुण सोनी को अमित अपना आदर्श मानते हैं। 
 

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