जिला लावारिस पशुओं से मुक्त नहीं, प्रशासन के दावे फेल

Edited By Punjab Kesari, Updated: 15 Nov, 2017 01:01 PM

district unclaimed animals  claims administration fails

हरियाणा और खासतौर पर जिला प्रशासन यह दावे करता नहीं थकता कि राज्य के अधिकांश जिलों को आवारा पशुओं से मुक्त करवा दिया गया है और लावारिस पशुओं को बाड़ों अथवा फाटकों में बंद कर दिया गया है परंतु लोगों ने सरकारी रिपोर्ट को सिरे से खारिज करते हुए...

कैथल (पराशर):हरियाणा और खासतौर पर जिला प्रशासन यह दावे करता नहीं थकता कि राज्य के अधिकांश जिलों को आवारा पशुओं से मुक्त करवा दिया गया है और लावारिस पशुओं को बाड़ों अथवा फाटकों में बंद कर दिया गया है परंतु लोगों ने सरकारी रिपोर्ट को सिरे से खारिज करते हुए प्रशासनिक कार्यप्रणाली पर ही सवाल उठा दिया है। राज्य की सड़कों पर आए दिन सड़क दुर्घटनाओं का कारण बन रहे यह आवारा पशु किसी समय में पालतू हुआ करते थे और स्वार्थवश लोगों ने उन्हें प्रयोग करके सड़कों पर छोड़ दिया है। अब दुर्घटना में वह मरें या इंसान इसे छोडऩे वालों को कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वह तो पशुओं को अपने ऊपर बोझ समझ बैठे हैं।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार कैथल जिले में 3 माह पहले की गई गणना के अनुसार कुल 2387 आवारा पशु थे जिनमें से 1200 को कैथल की नंदीशाला और 150 को गुहला स्थित नंदीशाला में भेजा गया है। जबकि सरकार को भेजी रिपोर्ट में केवल 2037 ऐसे पशु ही बताए गए। इन आंकडों से पता चलता है कि हजारों अब भी सड़कों व बाजारों में मौजूद हैं। हालांकि गैर सरकारी आंकड़ों के अनुसार जिले में यह संख्या 4250 के करीब आंकी गई है। लावारिस जानवरों के बारे में राज्य सरकार ने जो रिपोर्ट जारी की है उसके अनुसार 4 जिलों को कैटल फ्री कहा है जिनमें फतेहाबाद, करनाल, मेवात और यमुनानगर जिले शामिल हैं। वैसे हरियाणा में जब से भाजपा सरकार सत्ता में आई है तो लगातार यह मुद्दा बेहद संवेदनशील बना हुआ है।

मैडीकल सुविधाओं का अभाव
जहां-जहां सरकारी नंदीशाला अथवा बाड़ों में आवारा व लावारिस पशुओं को छोड़ा गया है वहां पर पशु स्वास्थ्य विभाग द्वारा उनका ख्याल रखने के लिए इंतजाम पर्याप्त नहीं हैं। जख्मी मवेशियों को खुले में ही रखा गया है जो उनके लिए बड़े इंफैक्शन का कारण बन सकता है। उधर, उपनिदेशक पशुपालन विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार हर नंदीशाला में पशु रोग सर्जन व वी.एल.डी.ए. की तैनाती की गई है ताकि जरूरत पडऩे पर समुचित इलाज किया जा सके।

उपयोगिता के कारण बने लावारिस व आवारा
वास्तव में साइंस ने ज्यों-ज्यों तरक्की की और मशीनी युग आगे बढ़ता चला गया जिस कारण बीते 3 दशकों में मवेशियों की जरूरत कम होती गई और लोगों ने पशुपालन से मुंह मोड़ लिया। वहीं, लोगों को वे ही पशु अच्छे लगते हैं जिनसे अच्छी कमाई होती है या मजबूरी में उन्हें प्रयोग करना पड़ रहा है। मसलन दुधारू पशु और बोझा ढोने वाले जानवर।

सर्वेक्षण के अनुसार 78 प्रतिशत अभी भी सड़कों पर
राज्यभर के मवेशियों की आवारा अवस्था में सड़कों पर उपस्थिति को लेकर जो गैर सरकारी सर्वे किया गया है। उसके अनुसार कुल जनसंख्या का 78 प्रतिशत पशु आज भी सड़कों व बाजारों में फिरने को विवश है। उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा गौवध के लिए स्लाटर हाऊस को बंद किए जाने के बाद स्थिति में यह बदलाव आया है क्योंकि पहले बड़ी खपत उस राज्य में ही होती थी।

क्या किया गया सरकारी दावा ?
राज्य सरकार की रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रदेश में कुल 1 लाख 14 हजार 107 लावारिस जानवरों को चिन्हित किया गया था जिनमें से 94 हजार 770 को गौशालाओं में भेजा जा चुका है तथा 19337 ही सड़कों पर हैं। रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया कि कैथल जिले के 98 प्रतिशत, सोनीपत के भी 98, रोहतक के 97.3 तथा कुरुक्षेत्र, करनाल, नारनौल और हिसार जिलों के 90 प्रतिशत पशुओं को बाड़ों अथवा नंदीशालाओं में भेज दिया गया है। वैसे सरकार ने राज्य में 76 नई गौशालाओं व पशु फाटकों का निर्माण भी करवाया है।

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