डाॅक्टर का कारनामा, मौत के मुंह से छीन लाए हार्ट पेशेंट की जिंदगी

Edited By Punjab Kesari, Updated: 30 Mar, 2018 02:00 PM

the doctor s job the life of a heart patient taken from the mouth of death

समाज में यूं ही डॉक्टरों को भगवान का दर्जा नहीं दिया जाता इसके पीछे सेवा भाव और रोगी के प्राण बचाने का इरादा होना चाहिए। ऐसा ही एक कारनामा कर दिखाया है फरीदाबाद के बीके सरकारी अस्पताल के वरिष्ठ कॉर्डियोलॉजिस्ट डॉ. ओम जीवन ने उनके लिए यूं तो हर केस...

फरीदाबाद(ब्यूरो): समाज में यूं ही डॉक्टरों को भगवान का दर्जा नहीं दिया जाता इसके पीछे सेवा भाव और रोगी के प्राण बचाने का इरादा होना चाहिए। ऐसा ही एक कारनामा कर दिखाया है फरीदाबाद के बीके सरकारी अस्पताल के वरिष्ठ कॉर्डियोलॉजिस्ट डॉ. ओम जीवन ने उनके लिए यूं तो हर केस खास होता है लेकिन पलवल निवासी हार्ट पेंशेंट रमेश सनेजा का केस औरों से बिल्कुल ही परे था। जिसमें उन्हें ईसीजी जांच के दौरान ही दो कॉर्डियक अटैक आ चुके थे और ब्लड प्रेशर सामान्य से कम होते हुए धड़कनें रूक सी गई थी

लेकिन डॉक्टर ने बिना कागजी औपचारिकताओं कर समय पर मरीज को गंभीर हालत में ऑपरेट करने का निर्णय लिया और काबिलीयत ऐसी की 15 मिनट में ही डॉक्टर मरीज की एंजियोप्लास्टी कर उसे मौत के मुंह से सकुशल निकाल लाए। सभी औपचारिकताएं एंजियोप्लास्टी के बाद पूरी की गई।  

दर्द इतना की छोड़ चुका था जीने की आस 
45 वर्षीय रमेश सनेजा बुधवार को पलवल से फरीदाबाद ऑटो से माल छोडऩे सैक्टर-7 आए हुए थे। उन्हें 10 बजे कॉर्डियक अटैक आया और दिल में तीखा दर्द शुरू हो गया। असहनीय दर्द और बीपी लो हो जाने की बजह से वह लडख़ड़ाते हुए जमीन पर गिर गए। वहां मौजूद दुकानदार श्याम खुराना रमेश को तत्काल लेकर ईएसआई डिस्पेंसरी गए और वहां से मरीज को बीके अस्पताल लेकर आए। साढ़े 10 बजे वह बेहोश हो गए। उन्हें लगा की वह बच ही नहीं पाएंगे और जीने की आस छोड़ चुके थे।

ऐसे दी नई जिंदगी 
डॉ. ओम जीवन ने बताया कि डॉक्टरों ने बताया कि मरीज को बिजली के करंट (शॉक) देकर दिल की धड़कन सामान्य करने का प्रयास किया गया। कोशिश के दौरान ही मरीज को दूसरा अटैक आ गया। एंजियोग्राफी से पता चला कि खून की सप्लाई देने वाली नाड़ी पूरी ब्लॉक हैं। तत्काल जान बचाने के लिए एंजियोप्लास्टी कर ब्लॉकेज की जगह सिंगल स्टेंट डाला गया। यदि यह ऑपरेशन तुरंत नहीं किया जाता तो मरीज की जान नहीं बच सकती थी। निजी अस्पतालों में इसका खर्च करीब पौने 2 लाख रुपए आता जो बीपीएल मद में मुफ्त में मिला है। 

मेरा सुहाग बचा लिया कैसे शुक्रिया करूं 
चार लोगों के परिवार में कमाने वाले सिर्फ रमेश सनेजा हैं। जो पिछले 22 सालों से ऑटो चलाकर अपने परिवार की गुजर बसर कर रहे हैं। उनके परिवार में 19 वर्षीय बेटी सीमरन, 15 वर्षीय बेटा टिंकू और पत्नी अनिता हैं। पति को हार्ट अटैक की सुनकर ही पत्नी का कलेजा निकल गया और उन्होंने पति रमेश सनेजा की जीने की आस ही छोड़ दी थी। पति को सकुशल देख उनके मुख से चंद शब्द और आंसू ही छलक पड़े और कहा कि.. मेरा सुहाग बचा लिया डॉक्टर साहब ने कैसे शुक्रिया करूं इनका।
 

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