यह कैसी खेल नीति? इंटरनेशनल जूनियर महिला पावर व स्ट्रेंथ वेटलिफ्टर गरीबी में बदहाली जीने को मजबूर

Edited By Isha, Updated: 18 Jun, 2021 02:00 PM

strength weightlifter forced to live in poverty

देश में ऐसे भी खिलाड़ी है जिनके घर में शायद खाने के लिए रोटी ना हो लेकिन फिर भी वह हर स्थिति में देश और प्रदेश का नाम रोशन करने के लिए अपना जी जान लगा देते हैं। रोहतक जिले के सीसर खास गांव की ऐसी ही एक

रोहतक(दीपक): देश में ऐसे भी खिलाड़ी है जिनके घर में शायद खाने के लिए रोटी ना हो लेकिन फिर भी वह हर स्थिति में देश का नाम रोशन करने के लिए अपना जी जान लगा देते हैं। रोहतक जिले के सीसर खास गांव की ऐसी ही एक खिलाड़ी सुनीता है जो जूनियर पावर व स्ट्रेंथ वेटलिफ्टिंग में इंटरनेशनल पदक जीतने के बावजूद भी सरकार की खेल नीति के तहत मिलने वाली सुविधाओं से वंचित है।

यही नहीं पिता मजदूरी कर परिवार का पेट पाल रहे तो। वही सुनीता भी मां के साथ विवाह शादियों में रोटियां बनाने के लिए जाती है। अभी यूरोपियन प्रतियोगिता में सुनीता का सिलेक्शन हो चुका है, लेकिन एंट्री फीस के पैसे भी उनके पास नहीं है। अभी तक जितनी प्रतियोगिताओं में भाग लिया है, वहां पिता ने कर्ज लेकर ही बच्चे को खेलने के लिए भेजा है। अब उन्हें सरकार से ही उम्मीद है कि कुछ मदद मिलेगी।

सीसर खास गांव में तालाब के किनारे पंचायती जमीन में बना जर्जर हालत का यह मकान एक अंतरराष्ट्रीय जूनियर पावर वेस्ट रेंट वेटलिफ्टर सुनीता का है, जिसने अभी हाल ही में थाईलैंड में आयोजित प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता था। यही नहीं सुनीता ने राष्ट्रीय व राज्य स्तर लेवल पर भी काफी पदक जीते हैं लेकिन इस खिलाड़ी की हालत हरियाणा सरकार की खेल नीति को ठेंगा दिखा रहे। आलम यह है कि पिता मजदूरी करते हैं तो सुनीता भी मां के साथ विवाह शादियों में जाकर रोटी बनाने का काम करती है लेकिन पिता ने ठाना है कि चाहे उन्हें कितना ही कर्ज क्यों ना लेना पड़े वे बेटी के खेल को नहीं रुकने देंगे और उसकी पढ़ाई भी जारी रखेंगे।

पिता ईश्वर कश्यप का कहना है कि महीने में 10 दिन के करीब उन्हें मजदूरी मिल जाती है। उसके अलावा वे फ्री ही रहते हैं , जो थोड़ा बहुत पैसा आता है । उससे परिवार का गुजारा चला लेते हैं उनके चार बच्चे हैं जिसमें एक सुनीता व तीन लड़के सुनीता को खेलों के इस मुकाम तक पहुंचाने के लिए उन्होंने काफी कर्ज भी लिया और उस कर्ज को वह हिम्मत करके चुकाएंगे लेकिन अगर और भी जरूरत पड़ी तो कर्जा लेने में पीछे नहीं होते क्योंकि वह अपनी बेटी को पढ़ाने के साथ-साथ खेल के बड़े मुकाम तक पहुंचाना चाहते अभी तक सरकार की तरफ से उन्हें कोई मदद नहीं मिली है।

सुनीता ने कहा कि उसने डिस्ट्रिक्ट ,स्टेट व राष्ट्रीय  वेट लिफ्टिंग खेल दर्जनों मेडल जीते है। हाल ही में थाईलैंड के बैंकाक में हुई प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता था। अब उसका सेलकेशन यूरोपियन प्रतियोगिता के लिए हुआ है।  लेकिन अभी उसकी डेढ़ लाख फीस भी वह जमा नही कर पायी हुई । पिछली बार भी मम्मी पापा ने कर्ज लिया था, अगर एंट्री फीस का इंतजाम नहीं हुआ तो फिर कर्ज लेना पड़ेगा। पापा मेनहत मजदूरी करते है और मैं भी मां में साथ शादी ब्याहों में रोटी खाना बनाने जाती हूँ। अभी तक हरियाणा सरकार ने कोई मदद नही की । अभी तक जो गरीबी के कारण हमने खुद अपने बलबूते पर किया है। सरकार से यही उम्मीद है कि अगर कोई सरकारी नौकरी मिल जाये तो वह परिवार की मदद करने के साथ साथ खेलो में भी अच्छा प्रदर्शन कर पाऊंगी।

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