546 करोड़ रुपए की योजना कम करेगी थर्मल पावर प्लांट का प्रदूषण

Edited By Shivam, Updated: 19 Dec, 2019 04:22 PM

rs 546 crore scheme will reduce pollution of thermal power plant

गांव खेदड़ स्थित राजीव गांधी थर्मल पावर प्लांट थर्मल से प्रदूषण के स्तर में कमी लाने के लिए विशेष कार्य योजना के तहत प्लांट से एफजीडी (फ्लू गैस डि-सल्फराइजेशन) की मात्रा को कम करने के लिए 546 करोड़ रुपए की योजना पर कार्य चल रहा है।

हिसार/चंडीगढ़ (धरणी): गांव खेदड़ स्थित राजीव गांधी थर्मल पावर प्लांट थर्मल से प्रदूषण के स्तर में कमी लाने के लिए विशेष कार्य योजना के तहत प्लांट से एफजीडी (फ्लू गैस डि-सल्फराइजेशन) की मात्रा को कम करने के लिए 546 करोड़ रुपए की योजना पर कार्य चल रहा है। यह जानकारी प्लांट के चीफ इंजीनियर मोहम्मद इकबाल ने हरियाणा विद्युत विनियामक आयोग (एचईआरसी) के चेयरमैन डी एस ढेसी के प्लांट के निरीक्षण के दौरान दी। उन्होंने पर्यावरण प्रदूषण कम करने पर विशेष जोर दिया। 

चेयरमैन डीएस ढेसी ने थर्मल पावर प्लांट के अधिकारियों के साथ बैठक की और उनसे पावर प्लांट की कार्य योजना व विद्युत उत्पादन क्षमता के संबंध में विस्तार से जानकारी ली। चीफ इंजीनियर मोहम्मद इकबाल ने बताया कि इस वर्ष नवंबर 2019 तक पावर प्लांट में डीम्ड पीएलएफ (परसेंटेज लोड फैक्टर) 97.84 प्रतिशत रहा है यानी प्लांट की उत्पादन क्षमता संतोषजनक रही। 

चीफ इंजीनियर ने बताया कि राजीव गांधी थर्मल पावर प्लांट, खेदड़ में दो यूनिट 600-600 मेगावाट की  स्थापित की गई हैं। इसकी पहली यूनिट की स्थापना दिसंबर 2009 में जबकि दूसरी यूनिट की स्थापना अप्रैल 2010 में की गई थी। इस थर्मल पावर प्लांट की लागत लगभग 4500 करोड़ रुपए थी। उन्होंने बताया कि इस समय यूनिट-1 की मेजर ओवरहालिंग का कार्य चल रहा है जबकि दूसरी यूनिट से बिजली उत्पादन हो रहा है। चेयरमैन द्वारा पूछे जाने पर चीफ इंजीनियर ने बताया कि मुख्य अभियंता के अलावा पावर प्लांट में 7 अधीक्षक अभियंता और 38 कार्यकारी अभियंता की देखरेख में बिजली उत्पादन किया जा रहा है।

चेयरमैन ढेसी ने कहा कि उत्तर भारत में पर्यावरण प्रदूषण की समस्या में कमी लाने के लिए इस पावर प्लांट द्वारा भी लंबी अवधि की योजना बनाने की जरूरत है। इस पर चीफ इंजीनियर ने बताया कि पर्यावरण में सल्फर की मात्रा को नियंत्रित करने के लिए 583 करोड रुपए की अनुमानित लागत के मुकाबले 546 करोड़ रुपए में एक कंपनी को एफजीडी (फ्लू गैस डि-सल्फराइजेशन) का कार्य देने की बिड खोली गई है जिसका कार्य जल्द शुरू होने की उम्मीद है। उन्होंने बताया कि पावर प्लांट द्वारा प्रदूषण के उत्सर्जन की निगरानी के लिए यहां स्वयं की निगरानी प्रणाली कार्यरत है। इसके माध्यम से पर्यावरण में सल्फर की मात्रा में कमी आएगी।

उन्होंने बताया कि प्लांट की राख के प्रयोग के लिए भी अनेक कदम उठाए गए हैं। इसके अंतर्गत आसपास के 27-28 ईंट भ_ों में फ्लाई ऐश ईट बनाने के करार किए गए हैं। इसके अलावा चार सीमेंट कंपनियों से भी अनुबंध किए गए हैं जो सीमेंट निर्माण में प्लांट की राख का इस्तेमाल करेंगे। उन्होंने बताया कि प्लांट में राख से ईट बनाने वाली एक मशीन लगाई गई है जिसके माध्यम से ईंट बनाने वालों को राख से ईट बनाकर दिखाई जाती है ताकि वे इस कार्य के लिए प्रोत्साहित हों।

उन्होंने बताया कि राजीव गांधी थर्मल पावर प्लांट से प्रतिवर्ष लगभग 12 लाख मीट्रिक टन राख का उत्पादन होता है जिसमें से 90 प्रतिशत से अधिक राख के उपयोग का करार विभिन्न कंपनियों और ईट भ_ों से हो चुका है। इसके अलावा स्थानीय लोगों द्वारा भी 500-600 टन पोंड ऐश का उपयोग किया जा रहा है। गोरखपुर में लग रहे परमाणु पावर प्लांट की कॉलोनी में भी राख का उपयोग किया जाएगा।

चेयरमैन ढेसी ने बताया कि प्रदेश सरकार द्वारा यह नियम बनाया गया है कि पीडब्ल्यूडी बीएंडआर द्वारा विभिन्न भवनों के लिए बनाई जाने वाली चारदीवारी में थर्मल पावर प्लांट की राख से बनी ईंटो का ही इस्तेमाल किया जाए। उन्होंने कहा कि बिजली का उत्पादन एक महत्वपूर्ण कार्य है जिस पर आमजन की सुविधा व औद्योगिक उत्पादन निर्भर करता है।चेयरमैन ने प्लांट के अधिकारियों से कोयले की खपत, पावर परचेज एग्रीमेंट, एनुअल रिवेन्यू रिक्वायरमेंट, बिजली उत्पादन की प्रतिदिन की स्थिति सहित अनेक विषयों पर अधिकारियों से जानकारी ली और बिजली उत्पादन में सुधार तथा पर्यावरण प्रदूषण में कमी लाने के संबंध में व्यापक दिशा-निर्देश दिए।

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