खट्टर सरकार और भाजपा दोनों के लिए कठिन चुनौती किसानों को साधना

Edited By Punjab Kesari, Updated: 30 Mar, 2018 11:03 AM

for the khattar government and the bjp

विधानसभा चुनावों से ठीक पहले किसानों को मनाकर अपने पक्ष में करना खट्टर सरकार और भाजपा दोनों के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। प्रदेश के किसान इस समय सरसों की फसल को सरकारी समर्थन मूल्य पर बेचने में कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। कई किसान मजबूरी...

चंडीगढ़(ब्यूरो): विधानसभा चुनावों से ठीक पहले किसानों को मनाकर अपने पक्ष में करना खट्टर सरकार और भाजपा दोनों के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। प्रदेश के किसान इस समय सरसों की फसल को सरकारी समर्थन मूल्य पर बेचने में कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। कई किसान मजबूरी में व्यापारियों को सस्ते दामों पर सरसों बेचने को मजबूर हैं। अभी 1 अप्रैल से गेहूं की सरकारी खरीद शुरू होने पर सरकार को एक और परीक्षा के दौर का सामना करना पड़ सकता है।

जिस तरह की परिस्थितियां प्रदेश में चल रही है। उससे यह नहीं कहा जा सकता कि सरकार किसानों को संतुष्ट करने में सफल रही है। सरकार के स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट गले की फांस बनती जा रही है। विपक्ष इसे लेकर सरकार पर जमकर निशाना साध रहा है। किसान यूनियन इसके लिए लगातार आंदोलन कर रही हैं। इस रिपोर्ट के अलावा 2 और चुनौतियां सरकार के सामने हैं। एक तो बिजली के बिल और दूसरे किसानों के लोन माफ करना। पड़ोसी राज्य पंजाब की ओर से इस बजट में इन दोनों मदों पर राशि का प्रावधान कर किसानों को खुश करने का काम किया है। इससे हरियाणा में भी सरकार पर ऐसा करने का दबाव बनता जा रहा है। 

सरकार ने किसानों को सरसों की फसल समर्थन मूल्य पर बेचने के लिए इस बार 15 दिन पूर्व ही खरीद शुरू करवाने की घोषणा की थी लेकिन खरीद की शर्तें किसानों को इसका लाभ नहीं दे पा रही हैं। नमी के कारण बड़ी संख्या में किसान सरकारी रेट पर सरसों नहीं बेच पा रहे हैं। मंडियों से सरसों वापस ले जाना आसान नहीं होता। इसी वजह से उन्हें सस्ते भावों में सरसों बेचनी पड़ रही है। इससे किसान सरकार से नाखुश नजर आ रहे हैं। 

अभी एक दिन बाद ही गेहूं की सरकारी खरीद शुरू होने वाली है। किसानों के लिए सरकारी समर्थन मूल्य पर गेहूं बेचने में फिर समस्या पैदा होने वाली है। बड़ी संख्या में किसान गेहूं की फसल कंबाइन मशीन से निकलवाते हैं। इस तरह निकाली गई गेहूं की फसल में नमी ज्यादा होती है जिसे खरीद एजैंसियां खरीदने से मना कर देती हैं। सरकार ने इस बार गेहूं की पर्याप्त कीमत किसानों को देने का वायदा किया हुआ है।

देखना यह होगा कि सरकार अपने वायदे पर किस हद तक खरा उतर पाती है। गेहूं की फसल कटने के बाद सरकार की परेशानी कम नहीं होगी। राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेशों को अमलीजामा पहनाने के लिए सरकार गेहूं के अवशेष जलाने पर रोक लगाएगी। ऐसा कई वर्षों से होता रहा है लेकिन बड़ी संख्या में किसान इन अवशेषों को जलाते हैं। इस बार इन अवशेषों को खरीदने की बात भी सरकार की ओर से कही गई थी। यह भी देखना होगा कि सरकार गेहूं के अवशेष जलाने से बचाने के लिए कैसी प्रक्रिया अपना पाती है।


 

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