हरियाणा का हर किसान है कर्जदार!

Edited By Deepak Paul, Updated: 24 Dec, 2018 10:15 AM

every farmer in haryana is borrower

देश के अन्न भंडार को भरने वाले हरित प्रदेश का किसान कर्ज में डूबा हुआ है। आंकड़ों के अनुसार हरियाणा में इस समय 20 लाख 68 हजार किसान बैंकों के कर्जदार हैं। साहूकारों-आढ़तियों से कर्ज लेने वाले किसानों की भी बड़ी संख्या है। जमीन पर बढ़ती लागत,...

सिरसा (नवदीप सेतिया): देश के अन्न भंडार को भरने वाले हरित प्रदेश का किसान कर्ज में डूबा हुआ है। आंकड़ों के अनुसार हरियाणा में इस समय 20 लाख 68 हजार किसान बैंकों के कर्जदार हैं। साहूकारों-आढ़तियों से कर्ज लेने वाले किसानों की भी बड़ी संख्या है। जमीन पर बढ़ती लागत, डीजल-खाद-दवाइयों के बढ़ते दामों से न केवल किसान बल्कि उनके बीवी-बच्चों ने भी जमीन गिरवी रखकर बैंक से कर्जा उठाया हुआ है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय की वाॢषक रिपोर्ट के अनुसार हरियाणा में 20 लाख 68 हजार किसानों पर करीब 39,174 करोड़ रुपए का बैंक कर्ज है। वहीं कोढ़ में खाज यह भी है कि हरियाणा का किसान न केवल किसान दिवस बल्कि सरकारी योजनाओं से भी अनजान है।

डीजल के दाम ने तोड़ी कमर
सबसे चिंताजनक स्थिति यह है कि पिछले 2 दशक में डीजल के दाम 6 गुणा तक बढ़ गए हैं। पैट्रोलियम मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार मार्च 1998 में डीजल के दाम 10 रुपए 25 पैसे प्रति लीटर थे। इस समय दाम 64 रुपए से अधिक हो गए हैं। इसी अवधि में खाद के दाम में 5 गुणा, कीटनाशकों के दाम में 6 गुणा तक की बढ़ौतरी हो गई है। ट्रैक्टर, हल, कल्टीवेटर सहित तमाम उपकरणों के दाम में बेतहाशा वृद्धि हुई है जबकि फसलों के समर्थन मूल्य में अपेक्षित वृद्धि नहीं हुई है। 

धान चूस रहा जल
वहीं धान का बढ़ता रकबा राज्य में संकट पैदा कर रहा है। हरियाणा में कुल 8 लाख 12 हजार ट्यूबवैल हैं जिनसे 18 लाख 21 हजार हैक्टेयर भूमि सिंचित होती है। इस वजह से राज्य में करीब 65 ब्लॉक डार्क जोन में आ गए हैं। ङ्क्षचतनीय पहलू यह है कि साल-दर-साल धान का रकबा बढ़ रहा है। हरियाणा गठन के समय 1966 में 1 लाख 92 हजार हैक्टेयर पर धान की काश्त होती थी। 1970-71 में यह रकबा 2 लाख 69 हजार जबकि 1980-81 में 4 लाख 84 हजार हैक्टेयर हो गया। इसी तरह से साल 1990-91 में रकबा 6 लाख 61 हजार हैक्टेयर जबकि 2016-17 में 13 लाख 86 हजार हैक्टेयर तक पहुंच गया।

बंजर हो रही है जमीन
सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि उपजाऊ जमीन की सेहत बिगड़ रही है। भूमि बीमार है और उसे उपचार देने की दरकार है। राज्य की करीब 33 फीसदी भूमि में जिंक जैसा पोषक तत्व न के बराबर रह गया है। 12 लाख 47 हजार हैक्टेयर भूमि में जिंक, 10 लाख हैक्टेयर में आयरन एवं सवा 5 लाख हैक्टेयर भूमि में मैगनीज तत्व की कमी हो गई है। लगभग तमाम भूमि में नाइट्रोजन नहीं रहा। फास्फोरस व पोटाश जैसे पोषक तत्व कम हो रहे हैं। राज्य में 2001-02 में प्रति हैक्टेयर औसतन 151 कि.ग्रा. रासायनिक उर्वरकों की खपत हुई। 2006-07 में यह आंकड़ा 177 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर तो साल 2016-17 में यह 180 कि.ग्रा. तक पहुंच गया। 

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना भी किसानों को राहत नहीं दे सकी
रोचक पहलू यह है कि हरियाणा देश का प्रमुख गेहूं, धान, कपास व सरसों उत्पादित राज्य है। साल 2017-18 के आंकड़ों की बात करें तो इस साल रबी सीजन में 25 लाख 26 हजार हैक्टेयर में करीब 1 करोड़ 16 लाख 80 हजार टन गेहूं का उत्पादन हुआ। इसी तरह से 5 लाख 82 हजार हैक्टेयर में 9 लाख 49 हजार टन सरसों का उत्पादन हुआ। खरीफ सीजन में 14 लाख 22 हजार हैक्टेयर रकबे में 48 लाख 80 हजार टन धान का उत्पादन हुआ।

इसी तरह से 6 लाख 69 हजार हैक्टेयर रकबे पर 16 लाख 26 हजार गांठ नरमे का उत्पादन हुआ। वहीं प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना भी किसानों को राहत नहीं दे सकी। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की बात करें तो दिसम्बर 2017 तक हरियाणा में 13,35,986 किसानों का बीमा कर करीब 20,84,554 हैक्टेयर रकबा कवर किया गया। बीमा प्रीमियम राशि के रूप में बीमा कंपनियों ने किसानों से करोड़ों रुपए वसूले। इस योजना से महज 2 लाख 11 हजार किसानों को ही मुआवजा मिला। 

फसलों की लागत कई गुणा बढ़ी लेकिन दाम नहीं
केंद्रीय कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट अनुसार 1998 में कॉमन धान का रेट 440 जबकि ग्रेड ए धान का दाम 470 रुपए प्रति किं्वटल था। साल 2017-18 सीजन में कॉमन धान 1770 जबकि ग्रेड ए धान 1750 रुपए क्विंटल बिका। इसी तरह से साल 1998 में गेहूं का समर्थन मूल्य 550 रुपए था जो साल 2017-18 में 1735 रहा। साल 1998 में कॉटन का दाम 1440 रुपए क्विंटल था जो साल 2017-18 में 4020 रुपए रहा। फसलों की लागत कई गुणा बढ़ गई लेकिन दाम नहीं। ऐसे में किसान कर्ज में आकंठ डूबता चला गया। 

खेती एक नजर में कृषि योग्य भूमि        36,76,000
बुआई रकबा                                      35,20,000
नहरों से सिंचित                                11,53,000
ट्यूबवैलों से सिंचित                           18,21,000
खाद खपत प्रति हैक्टेयर                     205 किलोग्राम
ट्यूबवैलों की संख्या                           8,12,000
ट्रैक्टरों की संख्या                              2.79 लाख

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