पूर्व CM हुड्डा की सरकार को चेतावनी, ‘किसानों की समस्याएं निपटाएं या गद्दी छोड़ें’

Edited By Punjab Kesari, Updated: 26 Jun, 2017 08:21 AM

hooda warns before the government

पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने रेवाड़ी में आयोजित किसान पंचायत में सरकार को खूब लताड़ा।

रेवाड़ी (मोहिमदर भारती):पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने रेवाड़ी में आयोजित किसान पंचायत में सरकार को खूब लताड़ा। उन्होंने कहा कि गत 3 वर्षों में किसान की जो दुर्गति हुई है, वैसी अंग्रेजों के राज में भी नहीं हुई। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कांग्रेस ने फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित किया जिससे न केवल उत्पादन बढ़ा अपितु किसान की माली हालत में भी काफी सुधार हुआ। अहीरवाल क्षेत्र आयोजित पंचायत में हुड्डा ने सरकार को चेतावनी दी कि या तो सरकार किसान की समस्याओं का समाधान करे या 
गद्दी छोड़े। 
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उन्होंने कहा कि वह सी.एम. बनने नहीं बल्कि मुद्दों की लड़ाई लड़ने मैदान में आए हैं। चुनाव के समय भाजपा ने किसानों से वायदा किया था कि उनकी सरकार बनते ही स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के आधार पर किसानों को फसल के लागत मूल्य पर 50 प्रतिशत बढ़ौतरी के हिसाब से फसलों के दाम तय किए जाएंगे। इसके विपरीत आज किसान को अधिकतर फसलों का कांग्रेस शासनकाल में मिले भाव से आधा भी नहीं मिल रहा। इस दौरान सांसद दीपेंद्र हुड्डा, राव धर्मपाल, राव दान सिंह, राव यादवेंद्र, सतपाल सांगवान, पूर्व विधायक अर्जुन सिंह, धर्म सिंह छौक्कर ने पंचायत को सम्बोधित किया। 
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सरसों की दुर्गति किसी से छिपी नहीं
हुड्डा ने कहा कि मंडियों में इस बार सरसों की जो दुर्गति हुई वह किसी से छिपी नहीं है। 15 दिन तक तो सरकार की ओर से कोई एजैंसी खरीद करने भी नहीं आई। किसानों को सरसों निर्धारित समर्थन मूल्य 3750 रुपए प्रति क्विंटल से 200 से 400 रुपए कम पर बेचनी पड़ी। बाजरे की खरीद के लिए तो इतनी शर्तें लगा दीं जितनी सरकारी नौकरियों की भर्ती में भी नहीं लगती। प्रति एकड़ खरीद की सीमा तय कर दी जबकि सामान्यता यह सीमा बाजरे की प्रति एकड़ पैदावार से आधी भी नहीं, बाकी के बाजरे को किसान कहां ले जाएं, इसका सरकार के पास जवाब नहीं है। हुड्डा ने किसान संगठनों व किसान हितैषी लोगों का आह्वान किया कि वे एकजुट होकर संघर्ष करें ताकि सरकार पर दबाव बनाया जा सके। किसानों से सीधा संवाद करते हुए हुड्डा ने पूछा कि क्या कभी उनके शासनकाल में फसलों की ऐसी दुर्गति हुई थी तो किसानों ने एक स्वर में कहा ‘कभी नहीं’।

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